कृषि उत्पादन में जैव उर्वरकों का महत्व

नई दिल्ली 15-Sep-2024 09:52 AM

कृषि उत्पादन में जैव उर्वरकों का महत्व

(सभी तस्वीरें- हलधर)

फसलों द्वारा भूमि से लिए जाने वाले प्राथमिक मुख्य पोषक तत्वों- नत्रजन, फास्फोरस और पोटाश में से नत्रजन का सर्वाधिक अवशोषण होता है। क्योंकि, इस तत्व की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इतना ही नहीं भूमि में डाले गये नत्रजन का 30-40 प्रतिशत ही फसल उपयोग कर पाते हैं और शेष 60-70 प्रतिशत भाग या तो पानी के साथ बह जाता है अथवा वायु मण्डल में डिनाइट्रीफिकेशन से बेकार हो जाता है या फिर जमीन में निक्षालन हो जाता हैं। दूसरे पोषक तत्वों की तुलना में भूमि में उपलब्ध नत्रजन की मात्रा सबसे न्यून स्तर की होती है। यदि प्रति किलो पोषक तत्व की कीमत की ओर ध्यान दें तो नत्रजन ही सबसे अधिक कीमती है। अत: नत्रजनधारी उर्वरक के एक-एक दाने का उपयोग मितव्ययता और सावधानी से करना वर्तमान की अनिवार्य आवश्यकता हो गई है। जीवांश पदार्थो की उपस्थिति, नमी, वायु संचार निरन्तर उदासीन के आसपास पी.एच मान यह चारों आवश्यकताओं एक मात्र कम्पोस्ट से पूरी की जा सकती है।
जैव उर्वरक जीवाणु खाद
सभी प्रकार के पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए मुख्यत: 17 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जिनमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश आवश्यक और प्रमुख पोषण तत्व है। यह पौधे में तीन प्रकार से उपलब्ध होती है। रासायनिक खाद द्वारा गोबर की खाद/ कम्पोस्ट द्वारा छिडकाव का उपयुक्त समय मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर है ा नाइट्रोजन स्थिरीकरण और फास्फोरस घुलनशील जीवाणुओं द्वारा भूमि मात्र एक भौतिक माध्यम नहीं है । बल्कि, यह एक जीवित क्रियाशील तन्त्र है। इसमें सूक्ष्मजीवी बेक्टिरिया, फफूंदी, शैवाल, प्रोटोजोआ आदि पाये जाते हैं । इनमें से कुछ सूक्ष्मजीव वायुमण्डल में स्वतंत्र रूप से पायी जाने वाली 78 प्रतिशत नत्रजन, जिन्हें पौधे सीधे उपयोग करने में अक्षम होते हैं, को अमोनिया और नाइट्रेट तथा फास्फोरस को उपलब्ध अवस्था में बदल देते हैं। जैव उर्वरक इन्हीं सूक्ष्म जो पौधों को नत्रजन और फास्फोरस आदि की उपलब्धता बढ़ाता है। जैव उर्वरक पौधों के लिए वृद्धि कारक पदार्थ भी देते हैं और पर्यावरण को स्वच्छ रखने में सहायक हैं। भूमि, जल और वायु को प्रदूषित किये बिना कृषि उत्पादन स्तर में स्थायित्व लाते हैं । इन्हें जैव कल्चर, जीवाणु खाद, टीका अथवा इनाकुलेन्ट भी कहते हैं।
जीवाणु खाद के प्रकार 

राइजोबियम कल्चर
यह एक नम चारकोल और जीवाणु का मिश्रण है, जिसके प्रत्येक एक ग्राम भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं। यह खाद केवल दलहनी फसलों में ही प्रयोग किया जा सकता है और यह फसल विशिष्ट होती है। अर्थात अलग-अलग फसल के लिए अलग-अलग प्रकार का राइजोबियम जीवाणु खाद का प्रयोग होता है। राइजोबियम जीवाणु खाद से बीज उपचार करने पर ये जीवाणु खाद से बीज पर चिपक जाते हैं। बीज अंकुरण पर यह जीवाणु जड़ की मूलरोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रन्थियों का निर्माण करते हैं। यह ग्रन्थियां नत्रजन स्थिरीकरण इकाईयां हैं और पौधों की बढ़वार इनकी संख्या पर निर्भर करती है। पौधे की जड़ में अधिक ग्रन्थियों के होने पर पैदावार भी अधिक होती है।
फसल विशिष्ट पर प्रयोग की जाने वाली राइजोबियम खाद अलग-अलग फसलों के लिए राइजोबियम जीवाणु खाद के अलग-अलग पैकेट उपलब्ध होते हैं। निम्न फसलों में प्रयोग किये जाते हैं
दलहनी फसल: मूंग, उडद, अरहर, चना, मटर, मसूर इत्यादि।
तिलहनी: फसलें मूंगफली, सोयाबीन।
अन्य फसल: रिजका, बरसीम, ग्वार आदि।
प्रयोग विधि
200 ग्राम राइजोबियम पैकेट से 10 किग्रा0 बीज उपचारित कर सकते हैं। एक पैकेट को खोलकर और 200 ग्राम राइजोबियम कल्चर लगभग 300-400 मिली लीटर पानी में डालकर अच्छी प्रकार घोल बना लें। बीजों को एक साफ सतह पर एत्रित कर जीवाणु खाद के घोल को बीजों पर धीरे-धीरे डालें। बीजों को हाथ उलटते पलटते जाये। जब तक कि सभी बीजों पर जीवाणु खाद की समान परत न बन जाये। इस क्रिया में ध्यान रखें कि बीजों पर लेप करते समय बीज के छिलके का नुकसान न होने पाये। उपचारित बीजों को साफ कागज या बोरी पर फैलाकर छाया में 10-15 मिनट सुखाये और उसके बाद तुरन्त बोयें।
राइजोबियम प्रयोग से लाभ
इसके प्रयोग से 15-25 किग्रा. रासायनिक नत्रजन की बचत होती है। इसके प्रयोग से वृद्धि वर्धक (साइटोंकानिन) हार्मोन्स भी पौधो को उपलब्ध होते है। इसके प्रयोग से पौधे हेतु जल की उपलब्धता बढता है।
जैव उर्वरकों प्रयोग मे सावधानियां
जीवाणु खाद को धुप व गर्मी से दूर दूर सूखे औरं ठण्डे स्थान पर रखे । इसके प्रयोग से फसल की उपज में 25-35 प्रतिशत की वृद्धि होती है। राइजोबियम जीवाणु हारमोन्स और विटामिन भी बनाते हैं, जिससे पौधो की बढ़वार अच्छी होती है और जड़ों का विकास भी अच्छा होता है। वर्तमान फसलों के बाद बोई वाली जाने आगामी फसलों में भी भूमि की उर्वरता और स्वास्थ्य सुधारने से अच्छी पैदावार प्राप्त होती है।
शिवम यादव, सैम हिगिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, प्रयागराज (यू.पी.)


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