कपास बुवाई के लिए खेत तैयार करना (सभी तस्वीरें- हलधर)
प्रदेश के कपास उत्पादक जिलों में किसानों ने फसल बुवाई हेतु खेत तैयार करना शुरू कर दिया है। वहीं, कृषि विभाग से अनुमति मिलने के साथ ही सहकारी और निजी बीज प्रदाता कंपनियों ने बीटी कपास बीज की बिक्री शुरू कर दी है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षो से बीटी कपास में सफेद मक्खी कीट का प्रकोप ज्यादा देखने को मिला है। किसान भाई कपास बुवाई से पूर्व ही प्रबंधन के उपाय अपनाकर फसल को कीटों से बचा सकते है। प्रस्तुत आलेख में कपास बुवाई से पूर्व की कृषि क्रियाओं पर पूरा-पूरा प्रकाश डाला गया है, जो हमारे कपास उत्पादक किसानों के लिए मददगार साबित होगा।
पौध का मरना (सीडलिंग मोर्टेलिटी)
उत्तम किस्म का बीज उपयोग करे। एसिडडिलेंटेड बीज और अच्छी अंकुरण क्षमता का बीज प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पूर्व बीजोपचार फफूंदनाशी-पारद फफूंदनाशी, थाइरम, कार्बेण्डाजिम और एन्टीबायोटिक्स-स्ट्रेप्टोसाइक्लीन से करना चाहिए।
जड़ गलन (रुटरोट)
> मई प्रथम पखवाड़े में बुवाई से जड़ गलन बीमारी कम होती हैं। ज्यो-ज्यो पिछेती बुवाई करते हैं बीमारी बढ़ती है।
> बीजोपचार ब्रासीकॉल 5 ग्राम प्रति किलोबीज अथवा कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से करना चाहिए।
> कपास, मोठ की मिश्रित खेती से बीमारी का प्रकोप कम होता है।
> बीज उपचार बायोएजेन्ट 'ट्राइकोडर्माÓ 4 ग्राम प्रति किलो बीज से करने पर रोग का प्रकोप कम होता हैं।
> भूमि उपचार जिंकसल्फेट 24 किलो प्रति हैक्टयर से बीमारी में कमी आती है।
> ट्राइकोडर्मा विरिडी मित्र फफूंद 2.5 किलो प्रति हैक्टयर गोबर खाद में मिलाकर बुवाई पूर्व भूमि में देने से रोग कम होता है।
उख्टा (विल्ट)
जिन क्षेत्रों में यह रोग होता हैं। वहां गोसिपियम आरबोरियम के स्थान पर गोसिपियम हिरसुटम कपास उगावें। जड़ गलन रोकथाम की सिफारिशें जैसे बीजोपचार कार्बेण्डाजिम से और भूमि उपचार जिंकसल्फेट से यह रोग कम होता है।
मूलग्रन्थि रोग
जिन खेतों में सूत्रकृमि प्रकोप देखने को मिले उसमें दुबारा कपास की बुवाई नहीं करें। ग्रीष्मकाल में खेत की गहरी जुताई करें। खेतों को धूप में तपाएं, जिससे सूत्रकृमि मर जाएं। फसल चक्र में ज्वार, घास, रिजका की बुवाई करें। बुवाई पूर्व रोग ग्रसित खेतों में कार्बोफ्यूरॉन 3 जी-45 किलो हैक्टयर का भूमि उपचार करें।
शकाणु झुलसा
अमेरिकन कपास की बुवाई 1 से 20 मई के बीच करनी चाहिए। कपास बीजों को 8 से 10 घंटे तक स्ट्रेप्टोसाइक्लीन 100 पीपीएम. घोल में डुबोकर उपचारित करना चाहिए। यदि डिलिटेड बीज हैं तो उसे केवल 2 घंटे ही भिगोना चाहिए।
पत्ती धब्बा रोग
बुवाई पूर्व बीजोपचार करें।
पत्ती मुडऩ (लीफ कर्ल)
खेतों में से पीलीभुटी, भिंडी, होली हॉक और जिनिया आदि पौधे का खरपतवार नियंत्रण करें। समय पर सिस्टेमिक कीटनाशी से वॉयरस फैलाने वाले कीट को नष्ट करें। जिससे रोग आगे नहीं फैल सके।