कृषि क्षेत्र में ड्रोन की भूमिका और उपयोग
(सभी तस्वीरें- हलधर)इसकी भविष्य में अति आवश्यकता है। इस तरह बहुआयामी क्षमताओं से परिपूर्ण ड्रोन कृषि उत्पादन में प्रबंधन के लिए बहुपयोगी और लाभप्रद साबित होगा। ड्रोन पर भारत के साथ-साथ कई देशों में गहन अनुसंधान लगातार जारी है। इसको कृषि के विभिन्न कार्यों में दक्षता व सरलता से प्रयोग में लाया जा सकेगा। वह दिन दूर नहीं जब ड्रोन का रिमोट किसान के हाथ में होगा और मोबाइल की तरह इसे अपने जीवन में तेजी से अपनाकर इससे भरपूर फ ायदे के लिए खेतों पर चलाते हुए नजर आयेंगे।
मृदा विश्लेषण
फसल चक्र के शुरूआती दौर से ही ड्रोन फसल उत्पादन प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। खेत की मृदा का त्रिआयामी (थ्री. डी.) मानचित्र भी ड्रोन की सहायता से बनाया जा सकता है। खेत के विभिन्न खंडों में मृदा के तत्वों के स्तर की जानकारी को वैश्विक स्थान निर्धारण प्रणाली बिन्दु (जी.पी.एस. पॉइंट) के साथ मिलाकर यदि त्रिआयामी मानचित्र की रूपरेखा तैयार की जाये तो तत्वों की विभिन्नता के आधार पर उर्वरक का छिड़काव किया जा सकता है। इसके साथ-साथ यदि मृदा की नमी का स्तर भी इसी त्रिआयामी मानचित्र में विलय कर दिया जाये तो भविष्य में पडऩे वाली सिंचाई की आवश्यकता की गणना करके बताया जा सकता है। इस तरह उचित प्रबंध करके कृषि उत्पादन लागत को कम किया जा सकेगा। इस तरह का प्रयोग अफ्रीका महाद्वीप में फसल की पैदावार में सुधार करने वाले डिजिटल मानचित्रों को तैयार करने में हो रहा है।
फ सल स्वास्थ्य मूल्यांकन
बुवाई के बाद पौधा वृद्धि के क्रमवार चरणों जैसे अंकुरण, पत्तों और टहनियों के विकास, फू लों के विकास से होकर गुजरता हुआ परिपक्वता के चरण तक पहुंचता है। इन विभिन्न चरणों में पौधे के विकास की जांच किसानों को निश्चित अंतराल में करते रहना पड़ता है। यदि खेत का क्षेत्रफ ल बड़ा हो तो यह किसानों के लिये मेहनत और थकान भरा कार्य होता है। इस स्थिति में ड्रोन द्वारा छायाचित्रों के माध्यम से फसलों का निश्चित समय अंतराल में निरीक्षण किया जा सकता है। पौधे में अपेक्षित परिवर्तन के विपरीत कोई लक्षण नजर आता है तो उसे पहचान कर दूर करने के संभावित उपायों का प्रयोग समय रहते किया जा सकता है।
छुट्टा पशुधन से फ सल का बचाव
किसानों को अन्न उत्पादन में हर कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है। मवेशी और जंगली जानवर जैसे हाथी, नीलगाय आदि फसलों की बर्बादी करते हैं। इससे किसानों को रात-रात भर जागकर खेतों की रखवाली करनी पड़ती है। इन जंगली जानवरों की निगरानी ड्रोन में थर्मल कैमरों को लगाकर की जा सकती है। इससे पशुओं के आने-जाने के रास्ते आदि पर नजर रखी जा सकती है। समय रहते किसानों को आगाह किया जा सकता है। अफ ्रीकी देशों जैसे युगांडा, तंजानिया और केन्या में ड्रोन का उपयोग किसान के मवेशियों को जंगली खतरनाक जानवरों से सुरक्षित रखने के लिए किया जा रहा है।
परागकों का छिड़काव
जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मात्रा में कीटनाशकों का प्रयोग, रोगजनक परजीवियों का संक्रमण, सिकुड़ते खेत, घटते जंगल और घटती जैव विविधता के कारण, मधुमक्खियों आदि परागणकर्ताओं के जीवन के लिए खतरे की घंटी है। यदि ऐसा ही रहा तो परागण क्रिया के लिए कृत्रिम माध्यमों का प्रयोग करना जरूरी हो जायेगा। कृत्रिम रूप से परागण के लिए सूक्ष्म आकार के ड्रोन का प्रयोग किया जा सकता है। इस तरह का प्रयोग जापान में वैज्ञानिकों द्वारा फूलों में परागण के लिए किया गया है।
कृत्रिम परागण में उपयोगी है ड्रोन
सिंचाई- हाइड्रोजेल का छिड़काव : हाइपरस्पेट्रलया थर्मल सेंसर वाला ड्रोन सूखे खेत के खंडों को पहचानकर उन पर पानी अथवा हाइड्रोजेल का छिड़काव कर सकता है। इससे फसलों को सूखने से बचाया जा सकता है। इस प्रकार खेत की मृदा जलधारण क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
जैविक रसायनों का छिड़काव
फसलों के अवशेष महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं। यह न केवल आगामी फसल के लिए पोषक तत्वों के स्रोत हैं बल्कि मृदा, पानी और वायु की बेहतर गुणवत्ता बनाये रखने में भी कारगर होते हैं। वर्तमान समय में अवशेषों का निपटारा एक बड़ी समस्या बन गया है। इसके परिणामस्वरूप किसान अवशेषों को जलाने को मजबूर हो जाते हैं। फसल के अवशेषों का बड़े पैमाने पर संग्रह और ढोना खर्चीला और बोझिल है। इसलिए अवशेष प्रबंधन अब भी एक आर्थिक रूप से व्यावहारिक विकल्प नहीं है। फसल अवशेषों के अपघटन को जैवीय तरल पदार्थों के छिड़काव से त्वरित किया जा सकता है। इस छिड़काव के लिए ड्रोन का प्रयोग एक सटीक विकल्प हो सकता है।
तरल और ठोस उर्वरकों का छिड़काव
फसलीय पौधों के पोषक तत्वों की आपूर्ति के लिए विभिन्न प्रकार के उर्वरकों का छिड़काव मानवीय तरीके से अथवा मशीनों के माध्यम से किया जाता है। पौधे, उर्वरकों को मृदा से जड़ों द्वारा और ऊपरी छिड़काव करने पर पत्तियों द्वारा अवशोषित कर लेते हैं। ऐसी फसलें जिनकी अधिक ऊंचाई होती है उनमें हाई क्लीयरेंस वाली मशीनों और ट्रैक्टरों का प्रयोग करना पड़ता है। इस तरह की मशीनों में असंतुलन की समस्या होती है। इसमें दुर्घटना की प्रबल आशंका बनी रहती है। ड्रोन को किसी भी नियंत्रित ऊंचाई पर उड़ाया जा सकता है। इसलिए फसल की ऊंचाई ड्रोन के लिए कोई समस्या नहीं होती और पौधों को यांत्रिक क्षति (मैकेनिकल डैमेज) से भी बचाया जा सकता है। ड्रोन का प्रयोग तरल और ठोस दोनों उर्वरकों के छिड़काव में किया जा सकता है।