कुष्माण्ड फसलों में रोग नियंत्रण - नर्सरी में ही पौध नष्ट (सभी तस्वीरें- हलधर)
दिव्या गुर्जर, पिंकी शर्मा,श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर, जयपुर
कद्दू वर्गीय सब्जियों में मुख्य रूप से खीरा, लौकी, काशीफल, करेला, खरबूज-तरबूज आते हैं। इन सबका मानव आहार में महत्वपूर्ण योगदान है। इनका उपयोग सब्जी और सलाद के रूप में किया जाता है। इन फसलों में विभिन्न प्रकार के रोग और कीड़े लगते हैं, जिनका प्रभावी नियन्त्रण कर उचित लाभ कमाया जा सकता है। आद्र्रपतन, मृदुरोमिल आसिता, फल विलगन, चूर्णिल आसिता, ष्यामवर्ण, मोजेक, आदि कद्दू वर्गीय फसलों के प्रमुख रोग हैं।
आद्र्रपतन:
यह रोग पिथियम कवक द्वारा होता है, जिसके कारण नर्सरी में ही पौध नष्ट हो जाती है। इस रोग में मुख्यत: बीज का अंकुरण नहीं होता है और अगर होता है तो भूमिगत बीजांकुर विगलन हो जाता है। भूमि की सतह पर आने पर पौधा अचानक गिर पड़ता है। कभी-कभी पौधे की पत्तियांॅ मुरझाकर सूख जाती हैं। इस कारण नर्सरी में खाली जगह बन जाती है।
नियंत्रण:
मृदा का कैप्टान अथवा कॉपर सल्ॅफेट अथवा फ ॉर्मेलीन (0.2 प्रतिशत)से उपचार करें। बीजों को गहरा नहीं बोए। बीजोपचार थाइरम 1.25 ग्राम अथवा टाईकोडरमा बीरीडी 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करे। बुवाई से पूर्व ट्राइकोडर्मा 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से 100 किग्रा. अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर भूमि में मिलावें।
मृदुरोमिल आसिता: रोग के लक्षण दिखाई देने पर 1 प्रतिशत बोर्डों मिश्रण के घोल का छिड़काव करना चाहिए। खीरे की पामैटो किस्म में यह रोग कम लगता है।
फल विलगन: खेत में पानी का भराव नहीं होना चाहिए। रोग के उग्र होने पर 1 प्रतिशत बोर्डों मिश्रण का छिड़काव करना चाहिए।
चुर्णिल आसिता: गंधक का भुरकाव एक हैक्टयर में 25-30 किलोग्राम की दर से करना चाहिए। कैराथेन का छिड़काव 0.1 प्रतिशत की दर से करने पर रोग रुक जाता है। 15-15 दिन के अंतराल पर 3-4 छिड़काव करने चाहिए।
मोजेक: मेटासिस्टॉक्स 0.1 प्रतिशत का छिड़काव 15-15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। फ ल आने पर छिड़काव नहीं करना चाहिए।