चना फसल में सूत्रकृमि की रोकथाम
(सभी तस्वीरें- हलधर)सीमा यादव, डॉ. बीएल बाहेती, पार्वती, रामनारायण कुम्हार, राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर
भारत के खाद्यान्नों में चना एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चने को दालों का राजा कहा जाता है। चने में पौष्टिकता भरपूर मात्रा में होती है। इसका उपयोग सब्जियों दालों दूसरी खाद्य सामग्री में होता है। देश में मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब आदि मुख्य चना उत्पादक राज्य है। राजस्थान में बीकानेर, चूरू, झुंझुनू, हनुमानगढ़, श्री गंगानगर, जयपुर, जैसलमेर, सीकर और अजमेर आदि मुख्य चना उत्पादक जिले है। भारत के प्रमुख चना उत्पादक क्षेत्रों में सूत्रकृमि की कई प्रजातियाँ मौजूद है और इनमें से कुछ प्रजातियाँ चना उत्पादन के लिए अत्यधिक हानिकारक है।
क्या है सूत्रकृमि
सूत्रकृमि छोटे पतले धागे नुमा प्राणी होते हैं जिन्हें नग्न आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता ,केवल सूक्ष्म दर्शी यंत्र के द्वारा ही देखा जा सकता है । यह सूत्रकृमि में पौधों की जड़ों और दूसरे भागों को प्रभावित करते हैं। जिससे पौधों की जीवन क्रिया बाधित हो जाती है इन सूत्रकृमि का प्रकोप से चने की फसल पर 22-25 प्रतिशत तक नुकसान पाया जाता है। चने में मूलग्रंथि सूत्रकृमि (मेलाइडोगाइनी), गुर्दाकार सूत्रकृमि (रोटीलेंकुलस रेनिफॉर्मिस), पुट्टी सूत्रकृमि (सिस्ट) और मूल विक्षित सूत्रकृमि (प्रेटिलेन्चस प्रजाति)के चलते उपज में हानि से आर्थिक नुकसान होता है। सूत्रकृमि प्रभावित पौधों में दूसरे रोगों के होने की संभावना रहती है जैसे फंगस जीवाणु आदि पौधों को संक्रमित करते हैं, सूत्रकृमि और रोकारकों के मिलने से आर्थिक नुकसान बहुत ज्यादा होता है।
सूत्रकृमि रोग के लक्षण
मूलग्रंथि सूत्रकृमि (मेलाइडोगाइनी प्रजाति)
जडग़्रंथि, जड़ों पर परजीवी होते है। यह विश्व भर में कृषि उत्पादन के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक सूत्रकृमि में से एक है। जडग़्रंथि सूत्रकृमि सूक्ष्मकृमि जैसे जीव है। वयस्क मादा नाशपाती के आकार के होते हैं
संक्रमण के लक्षण
संक्रमित पौधे अस्वस्थ और बौने दिखाई देते है। रोगग्रसित पौधों की वृद्धि रूक जाती है। सूत्रकृमि ग्रसित पौधे मुरझा जाते है। प्रभावित पौधे में फल देरी से आते है और फलियों का आकार छोटा रह जाता है। ग्रसित फसल की बीजों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। संक्रमित जड़ें खराब रूप से विकसित होती है। उनमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग नोड्यूल्स की कमी हो जाती है। पौधों में पोषक तत्वों को ग्रहण करने की क्षमता को प्रभावित करते है।
पुट्टी सूत्रकृमि (सिस्ट)
पुट्टी सूत्रकृमि जड़ों पर वयस्क मादाओं और सिस्ट की उपस्थिति है। वयस्क मादाएं जड़ों पर बहुत छोटे नींबू के आकार के शरीर के रूप में दिखाई देती है और शुरू में क्रीम रंग की होती है बाद में वह पीले हो जाते है और अंत में भूरे रंग के हो जाते है।
संक्रमण के लक्षण
चने की फसल का पीला पडऩा अथवा छोटा पडऩा संक्रमण का प्रारंभिक संकेत है। संक्रमित फसल में बौने पौधों के धब्बे भी दिखाई दे सकते हैं। चने के सिस्ट निमेटोड फसल की जड़ों पर गहरे रंग की धारियाँ अथवा घाव पैदा करते हैं। पौधों में कम फूल अथवा फलियाँ, बीज का आकार कम होना, पौधे का मरना अथवा पौधे का जल्दी मर जाना संक्र्रमण के अन्य लक्षण है।
गुर्दाकार सूत्रकृमि (रोटीलेंकुलस रेनिफ ॉर्मिस)
यह एक अर्ध-अंत:परजीवी है और चने की फसल के भूमिगत भागों को संक्रमित करता है। यह संभावित रूप से उनकी पैदावार को प्रभावित कर सकता है। सामान्यत: उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। मादा सूत्रकृमि का शरीर परिपक्व होने पर गुर्दे के आकार का हो जाता है।
संक्रमण के लक्षण
संक्रमित जड़ें खराब विकसित होती है। और उनमें नाइट्रोजन-फिक्सिंग नोड्यूल्स की कमी होती है। अवरुद्ध विकास: संक्रमित पौधों की वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। उनकी पत्तियां हल्के हरे रंग की हो जाती हैं, जो बाद में हरितहीन हो जाती है। विकृत फल और बीज: संक्रमित पौधे विकृत फल और बीज उत्पन्न कर सकते है। रंगहीन और परिगलित जड़ें जमीन के नीचे, जड़ें रंगहीन और परिगलित (मृत) होती है और उन पर सडऩ के क्षेत्र होते है।
मूल विक्षित सूत्रकृमि (प्रेटिलेन्चस प्रजाति)
मूल विक्षित सूत्रकृमि अंत:परजीवी होते हैं, जो भोजन के लिए जड़ में प्रवेश करते हैं और जड़ के ऊतकों के माध्यम से स्वतंत्र रूप से घूमते हैं। सभी जीवन अवस्थाएं पौधों को संक्रमित कर सकती हैं।
संक्रमण के लक्षण
जड़ों पर घाव गहरे लाल-भूरे अथवा काले धब्बों के रूप में दिखाई देते है। जैसे-जैसे संक्रमण आगे बढ़ता है, घाव मृत ऊतक में विलीन हो जाते है। जड़ें सूजी हुई, बौनी अथवा खराब शाखाओं वाली हो जाती है। पौधे बौने अथवा असमान रूप से विकसित दिखाई देते है। पत्तियां पीली अथवा हरितहीन हो जाती है। पौधों में फूलों और फलियों की संख्या कम हो जाती है। फलियों में बीज छोटे अथवा बिल्कुल नहीं होते है। पौधे जल्दी ही मर जाते है।
सूत्रकृमि रोग का प्रबंध
फसल चक्र विशेष रूप से प्रभावी है। क्योंकि, परजीवी सूत्रकृमि मेजबान-विशिष्ट होते हैं और केवल जीवित पौधों पर ही भोजन कर सकते हैं। फसल चक्र सूत्रकृमि के जीवन चक्र को तोडऩे का एक प्रभावी तरीका होता है।
गर्मियों के शुरू होने पर, सक्रमित खेत को डिस्क हल से जोता जाता है और तेज धूप में रखा जाता है, जिससे मिट्टी का तापमान बढ़ जाता है और सूत्रकृमि मर जाते हैं।
कार्बनिक खाद का प्रयोग सूत्रकृमि की संख्या को काम करती है और खरपतवार नियंत्रण करें।
नीम की खली का उपयोग करें, नीम की खली एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है।
खेत परती करके मौजूदा संक्रमण को कम कर सकते है।
मृदा सौरीकरण: मृदा सौरीकरण से मौजूदा संक्रमण को कम किया जा सकता है।
सूत्रकृमि विरोधी (सूत्रकृमि की संख्या कम करने वाली) फसलें उगाएं, विरोधी प्रजातियों में गेंदे का पौधा, सरसों और गुलदाउदी उगाएं।
सूत्रकृमि के प्रति प्रतिरोधी पौधों की किस्मों का चयन सूत्रकृमि के प्रबंधन के सबसे विश्वसनीय तरीका है। चने की जड़ गांठ सूत्रकृमि के विरुद्ध प्रतिरोधी किस्म आर एस जी 959, विजय, सी एस जे 824 आदि।