प्राकृतिक खेती का सतत कृषि में महत्व

नई दिल्ली 02-Oct-2024 11:52 AM

प्राकृतिक खेती का सतत कृषि में महत्व

(सभी तस्वीरें- हलधर)

विदिशा उमरेटिया, आशा कुमारी, कृषि विश्वविद्यालय, जूनागढ़, गुजरात 
प्राकृतिक खेती से न केवल उपज की गुणवत्ता बेहतर होती ह। बल्कि, यह हमें एक स्वस्थ और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जाने में भी सहायक है। किसानों को इस पद्धति के बारे में जागरूक और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार द्वारा योजनाएं चलाई गई है, जो प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए एक सकारात्मक कदम हैं। इन योजनाओं का मुख्य उद्देश्य किसानों की उत्पादन लागत को कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना और दीर्घकालिक कृषि उत्पादन को स्थिर बनाए रखना है। यदि इन योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए, तो यह न केवल किसानों के लिए आर्थिक रूप से लाभकारी सिद्ध होगी। बल्कि ,सतत कृषि के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी सहायक होगी कि वह प्राकृतिक खेती को अपनाएं।
प्रमुख योजनाएं
प्रधानमंत्री प्राकृतिक खेती मिशन - 2020 में शुरू किया गया मिशन का उद्देश्य देशभर में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देना है। इस योजना के तहत, किसानों को प्रशिक्षण और जागरूकता कार्यक्रम, वित्तीय सहायता और कृषि उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराना है। ताकि, किसान अपने उत्पादों को उचित मूल्य पर बेच सकें।
परंपरागत कृषि विकास योजना - इस योजना तहत, किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। यह योजना क्लस्टर आधारित खेती 50 एकड़ किसानों को समूहों में संगठित करती है और जैविक प्रमाणन प्राप्त करने के लिए सहयोग प्रदान करती है। प्राकृतिक खेती के तहत जैविक खाद, कम्पोस्ट, और जैविक कीटनाशकों का उपयोग करने के लिए किसानों को प्रेरित किया जाता है।
भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति - इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्राकृतिक खेती को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना है। इस योजना के अंतर्गत जीरो बजट प्राकृतिक खेती के प्रचार के साथ ही प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग शामिल है।
नेशनल मिशन ऑन सस्टेनेबल एग्रीकल्चर - इस का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में स्थायित्व और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करनाम के साथ सस्टेनेबल फ ार्मिंग प्रथाओं का प्रचार और जल प्रबंधन जैसी तकनीकों को प्रोत्साहित करना है। 
केंद्र सरकार और राज्य सरकारें प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियान शुरू करने के साथ किसानों को प्रोत्साहन राशि दे रही हैं। जिससे किसानों को प्राकृतिक खेती शुरू करने और उसे बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा, जैविक खेती से प्राप्त उत्पादों के लिए बाजार उपलब्ध कराने में भी सरकार सहयोग कर रही है।
प्राकृतिक खेती की विशेषताएँ
कृत्रिम रसायनों का त्याग: इसमें कृत्रिम रसायनों का उपयोग न के बराबर होता है, जिससे फसलें प्राकृतिक पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं।
मिट्टी में सुधार: प्राकृतिक खेती में जैविक खाद और कम्पोस्ट का उपयोग किया जाता है, जो मिट्टी की संरचना और उर्वरता को बढ़ाता है।
जैव विविधता संरक्षण:  इस पद्धति में मोनोक्रॉपिंग (एक ही फसल उगाना) के बजाय बहुफसली प्रणाली को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे खेतों में जैव विविधता बनी रहती है।
कीट- रोग प्रबंधन: प्राकृतिक खेती में नीम, गोमूत्र, और अन्य प्राकृतिक कीटनाशक का उपयोग किया जाता है, जो पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होते हैं।
प्राकृतिक खेती के लाभ
पर्यावरण संरक्षण: रसायनों का उपयोग न होने के कारण प्राकृतिक खेती से मिट्टी, जल और वायु प्रदूषण कम होता है।
कृषि लागत में कमी: रसायनिक खाद और कीटनाशकों की आवश्यकता नहीं होने के कारण किसानों की लागत घटती है।
स्वास्थ्यवर्धक फसल उत्पादन:  प्राकृतिक खेती से प्राप्त फसलें रसायनिक अवशेषों से मुक्त होती हैं, जो उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होती हैं।
जल संरक्षण: इसमें सिंचाई की आवश्यकता कम होती है, जिससे जल संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग होता है।
प्राकृतिक खेती की चुनौतियाँ 
रकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं ।
जागरूकता की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी रासायनिक खेती को प्राथमिकता दी जाती है, जिससे प्राकृतिक खेती का विस्तार सीमित है।
प्रारंभिक उत्पादन में कमी: प्राकृतिक खेती में शुरुआती चरण में उत्पादन में कमी हो सकती है, जो किसानों को हतोत्साहित कर सकती है।
लेकिन, अगर सरकार और किसान मिलकर इस दिशा में कार्य करें, तो प्राकृतिक खेती न केवल कृषि क्षेत्र में सुधार लाएगी, बल्कि पर्यावरण को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी


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