लगातार बढ़ती हुई जनसंख्या, सीमित भूमि और जल संसाधनों में कमी, मृदा की उर्वरता में गिरावट और जलवायु परिवर्तन ने पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपर्याप्त बना दिया है। इस परिस्थिति में फसल उत्पादन की निरंतर वृद्धि, खाद्य सुरक्षा और पोषण संतुलन बनाए रखना अत्यंत कठिन कार्य हो गया है। फसल उत्पादन की क्षमता को बनाए रखने के लिए अनुवांशिकी और पादप प्रजनन आधुनिक कृषि में आधार बनकर सामने आया हैं। यह तकनीक न केवल फसल उत्पादन की क्षमता को बढ़ाती हैं। बल्कि, फसलों में होने वाले रोगों के प्रति प्रतिरोधकता, पोषण सुधार और पर्यावरणीय तनाव सहनशीलता जैसी विशेषताओं का विकास में भी सहायक हैं। यही कारण है कि इन्हें हरित क्रांति और अब जीन क्रांति का आधार माना जा रहा है।
क्या है अनुवांशिकी
अनुवांशिकी जीवविज्ञान की वह शाखा है जो वंशानुक्रम, आनुवांशिक-जीन की संरचना, कार्य का गहनता से अध्ययन करती है। अनुवांशिकी हमें यह समझपने में सक्षम है कि पौधों में कौन- कौन से गुण किस प्रकार से नियंत्रित होते हैं और वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में कैसे स्थानांतरित होते हैं। इस प्रकार यह विज्ञान फसलों के वांछित गुणों की पहचान करने और उन्हें संरक्षित रखने में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
पादप प्रजनन
पादप प्रजनन एक अनुप्रयुक्त विज्ञान भी है जो अनुवांशिकी के सिद्धांतों और ज्ञान का व्यावहारिक जीवन में उपयोग करके किसानों और उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं के अनुसार नई फसल किस्मों का विकास करने में सहायता करता है। इसका उद्देश्य न केवल उत्पादन क्षमता को बढ़ाना है। बल्कि , ऐसी किस्में को विकसित करना है जो रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधकता, पर्यावरणीय तनाव जैसे सूखा, लवणीयता, अधिक तापमान को सहन करने के साथ ही पोषण में में भी वृद्धि कर सकें।
मुख्य तकनीक
आधुनिक दौर में आणविक अनुवांशिकी मार्कर, टिश्यू कल्चर और ट्रांसजेनिक तकनीक जैसे नवाचारों ने इस क्षेत्र को नई दिशा दी है। इसके अतिरिक्त, आधुनिक विज्ञान ने नई प्रजनन तकनीकों का भी विकास किया है, जिनमें मुख्य तकनीकें इस प्रकार हैं-
जीनोमिक्स- इसके अंतर्गत जीनों के पूर्ण अनुक्रम और कार्य का अध्ययन किया जाता है।
मार्कर-असिस्टेड सेलेक्शन- इसमें जीन स्तर पर शीघ्र चयन की तकनीक से अध्ययन किया जाता है।
जीन एडिटिंग - इस प्रकार की तकनीकें वांछित गुणों के लिए सटीक संशोधन संशोधन में सहायक है।
बायोफ ोर्टिफि केशन- इस तकनीक के अंतर्गत पोषण मूल्य से भरपूर किस्मों का विकास करना हैं।
इन सभी तकनीकों ने फसल सुधार की प्रक्रिया को न केवल तेज, सटीक और सरल बनाया है। बल्कि, फसलों को भविष्य की चुनौतियों के अनुकूल बनाने की दिशा में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अनुवांशिकी और पादप प्रजनन की भूमिका
अनुवांशिकी का मुख्य कार्य पौधों में वांछित गुणों की पहचान कर, उनके आनुवांशिक नियंत्रण को समझकर और इन गुणों को आगे की पीढिय़ों में स्थानांतरित करना है। इसमें निम्नलिखित मुख्य पहलू शामिल हैं।
जीन - पौधे के प्रत्येक गुण को नियंत्रित करने वाली मूलभूत इकाई है।
वंशानुक्रम के नियम- मेंडल के प्रथम और द्वितीय नियम के आधार पर गुणों का निर्धारण।
आनुवांशिक विविधता- जीनोम स्तर पर विविधता की पहचान करके, प्रजनन कार्यक्रमों में उपयोग करना।
मॉलिक्यूलर मार्कर -एसएसआर, एसएनपी, आरएपीडी, एएफ एलपी जैसे मार्करों से जीन की पहचान और
उनका चयन करना है।
यह है उद्देश्य
उच्च उपज देने वाली किस्मों का विकास। रोगों और कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता। प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों (सूखा, लवणीयता, ऊँचे तापमान) के प्रति सहनशीलता, पोषण गुणवत्ता में सुधार। परिपक्वता अवधि में कमी, गुणवत्ता विशेषताओं में सुधार (स्वाद, रंग, संरचना) और जलवायु अनुकूल किस्मों का विकास।
यह है विधियाँ
चयन की विधि -श्रेष्ठ पौधों का चयन कर नई किस्म विकसित करना।
संकरण विधि -दो अथवा अधिक पौधों के संकरण से नई संकर किस्म बनाना। इंटर-वेराइटी क्रॉस और इंटर-स्पेसिफि क क्रॉस।
यूटेशन प्रजनन - गामा किरण, एक्स-रे अथवा रासायनिक एजेंटों से जीन परिवर्तन कर नई किस्में विकसित करना (उदा.-शरबती सोना गेहूँ)।
पॉलीप्लॉइडी प्रजनन- गुणसूत्र संख्या बढ़ाकर आकार और उपज में वृद्धि।
टिश्यू कल्चर : रोग-मुक्त पौधे और माइक्रोप्रोपेगेशन के लिए उपयोग।
मार्कर-असिस्टेड सेलेक्शन- जीन स्तर पर सटीक चयन की आधुनिक तकनीक।
जीन एडिटिंग- क्रिस्पर-कैस 9 द्वारा जीन में सटीक परिवर्तन कर नई विशेषताएँ देना।
जीनोमिक्स -जीनोम की पूरी संरचना और कार्य का अध्ययन।
ट्रांसजेनिक - अन्य जीवों के जीन का समावेश।
क्रिस्पर-कैस 9 -जीन एडिटिंग का सटीक जीन संशोधन।
बायोफोर्टिफिकेशन-पोषक तत्वों से समृद्ध फसलें।
क्यूटीएल मैपिंग- गुणात्मक लक्षणों की पहचान।
जीडब्ल्यूएएस - जीन और गुणों के बीच संबंध।
महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ
फसल उपलब्धि विशेषता
गेहूँ कल्याण सोना, सोनाालिका उच्च उपज
धान आईआर-8, 64 हरित क्रांति की सफलता
मक्का संकर मक्का उत्पादकता वृद्धि
कपास बीटी कपास कीट प्रतिरोध
बाजरा बायोफोर्टिफ ाइड बाजरा जिंक, आयरन युक्त
सरसों डीएमएच-11 ज्यादा उत्पादन क्षमता
वर्तमान चुनौतियाँ
जलवायु परिवर्तन से उपज पर प्रभाव नई बीमारियाँ और कीट का विकास।
सीमित आनुवांशिक विविधता और जैव विविधता की हानि।
किसानों के लिए उच्च लागत वाली तकनीकें।
सामाजिक और नीति-गत मुद्दे फसलों पर विवाद।