पाले से फ सल सुरक्षा के उपाय (सभी तस्वीरें- हलधर)
डॉ. नरपत सिंह, डॉ. अशोक शर्मा, डॉ. वन्दना कुमारी, देवकी नंदन , आईसीएआर-राई-सरसों अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर
मौसम का प्रभाव फसल पर अंकुरण से लेकर उसके कटने तक होता रहता है। रबी की फसलों के लिए पाला (दाह) एक विकट समस्या है। पाले से सबसे अधिक प्रभावित होने वाली फसले है। आलू, टमाटर, चना, सरसों अफीम, अलसी, मटर आदि पाले से पौधे झुलस जाते है, पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और कभी-कभी पौधें शत - प्रतिशत मर भी जाते है
पाले का पौधे पर प्रभा
पला पडऩे पर पत्तियां और फूल मुरझा जाते है, झुलस जाते है और बदरंग हो जाते है। उनके दाने खासतौर से चने में काले पड़ जाते और सिकुड़ जाते है। पाले का सबसे अधिक प्रभाव फलों पर और सबसे कम प्रभाव तने पर होता है।
पला पडऩे पर मुलायम पत्तियों और शाखाओं वाले पौधों जैसे आलू, टमाटर, शकरकन्द आदि की पत्तियों और शाखाए कुछ समय बाद सूख जाती है।
गन्ने की फसल पर पाला पडऩे पर तने में उपस्थित शर्करा तेज धूप पडऩे पर एल्कोहल के रूप में बदलने लगती है। जिससे पानी से प्रभावित गूदे में शराब की तरह बदबू आने लगती है और पाले से प्रभावित गन्ने से अच्छा गुड़ और चीनी नही बन पाती।
सरसों, मटर आदि फसलों पर पाला पडऩे पर कच्ची फ लियों में उपस्थित दाने नष्ट हो जाते है। अरहर, चना, जीरा आदि की फसलों के पौधों की पत्तिया झुलस कर पर जाती है।
पाले से बचाने के उपाय
छाया करके:- छोटे फलों के पौधों एवं नर्सरी में उगाए गए पौधों को पाले से बचाने के लिए सुखी घास-फूस सरकण्डे अथवा गन्ने की पत्तियां, पुआल आदि से ढक सकते है। नर्सरी में हल्के छप्पर या पॉलीथीन की चादरों से भी छाया करके बचाव किया जा सकता है।
धुँआ:- अधिकाशंत: पाला रात्रि के तीसरे अथवा चौथे पहर में पड़ता है। इसलिए जिस रात पाला पडऩे की संभावना हो उस रात को 1-2 बंजे खेतों के किनारे पर और बीच में घास-फूस जलाकर धुंआ कर देवे। धुंआ खेतों पर छाया रहेगा जिससे रात को जमीन के आस-पास का तापमान इतना नीचे नही गिरेगा की पाला लगे।
सिंचाई:- सिंचाई करने से खेत की मिट्टी का तापमान अधिक नहीं गिर पाता। इसलिए पौधों की जड़ों पर शीत का बुरा-प्रभाव नहीं पड़ता।
पानी का छिड़काव करके:- जब कभी रात में पाला पड़े तो सवेरे ताजा और गुन-गुने पानी का छिड़काव कर देने से फसलों पर पाले का प्रभाव कम पड़ता है।
यूरिया का प्रयोग:- यूरिया के छिड़काव से कोशिकाओ में पानी आने-जाने की क्षमता बढ़ जाती है। अत: यदि पाला हल्का होता है तो ऐसे में यूरिया का छिड़काव पाले के नुकसान को कम कर देता है। लेकिन ,यदि यूरिया छिड़कने के बाद पाला जोरदार पड़े तो यूरिया कोशिकाओं के अन्दर के पानी को जमाने में मदद कर सकता है। जिससे जीवदृण्य शीघ्र मरता है और लाभ के बजाय हानि हो सकती है।
डी.एम.एस.ओ:- डाई - मिथाइल सल्फ ों - ऑक्साइड पौधों की कोशिकाओं से पानी आर - पार आने-जाने की क्षमता बढा़ता है, प्रोटीन को विकृत होने से बचाता है। फसल में पचास प्रतिषत फूल आने पर 78 ग्राम डी.एम.एस.ओ. को 750 से 1000 लीटर पानी में घोलकर छिड़के और 10-15 दिन बाद इस छिड़काव को दोहरा दे तो चना, अफीम, सरसों, आलू आदि की फसलों को पाले से रक्षा हो जाती है और उपज भी बढ़ती है।
ग्लूकोज:- ग्लूकोज से कोशिकाओं में घुलनशील पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे पाला पडऩे पर कोशिकाओं का पानी बाहर - अधिक नही निकलत है और कोशिकाओं के आकार - सुरक्षित बने रहते है। एक किलोग्राम ग्लूकोज को 1000 लीटर पानी में घोलकर फूल आते समय छिड़क दे और इसे 10-15 दिन पश्चात फिर दोहरायें तो पाले से रक्षा के साथ-साथ उपज भी बढ़ती है।
गंधक का तेजाब:- यह अन्य रसायनों से सस्ता और आसानी से प्रत्येक स्थान पर मिल जाने वाला रसायन है। इसके 0.1 प्रतिशत घोल का छिड़काव फसल को पाले से बचाता है । एक हजार लीटर पानी में एक लीटर गंधक के तेजाब का पहला छिड़काव जनवरी में पाला पडऩे की संभावना पर या पचास - प्रतिशत फसल में फूल आने पर छिड़के इसका दुसरा छिड़काव 10-15 दिन बाद फिर करे।