जड़ी-बूटी मरूधरा में नहीं बनी संजीवनी (सभी तस्वीरें- हलधर)
सरकारी नीति के अभाव में दम तोड़ रही है औषधीय फसलो की खेती
जयपुर। कम-पानी और कम लागत में तैयार होने वाली जड़ी-बूटियों की खेती को किसानों के लिए लाभकारी बताया जाता रहा है। लेकिन, प्रदेश में आयुर्वेदिक खेती का दायरा अब दो-चार जिलों में सिमट कर रह गया है। क्योंकि, इस खेती को बढ़ावा देने वाली नीतियों की दरकार अब भी है। जबकि, मरूधरा की आबोहवा जड़ी-बूटियों की खेती के अनुकूल है। लेकिन, आयुर्वेदिक खेती परवान नहीं चढ़ पाई है। इसकी वजह है कि औषधीय पौधों के बाजार उपलब्ध नहीं होना। ना ही इस दिशा में सरकार की ओर से कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। बाजार नहीं मिलने के कारण किसान अपने खेतों से औषधीय फसल तैयार करना उचित नहीं समझ रहे है। जबकि आयुर्वेदिक दवाओं में प्रयोग और विदेशों में भारी मांग होने का हवाला देकर कृषि विभाग ने मेडिशनल प्लांट बोर्ड भी गठित किया हुआ है।
ये थी योजना औषधीय फसलों की खेती के लिए प्रदेश स्तर पर मेडिशनल प्लांट बोर्ड का गठन किया गया। कृषि विभाग के अधीन बोर्ड की ओर से चंदन, गूगल, अश्वगंधा, ग्वारपाठा, मूसली सरीखे अन्य औषधीय पौधों पर अनुदान दिया जाना था। योजना का कृषि विभाग ने बढ़चढ कर प्रचार किया। इससे प्रभावित होकर किसानों ने अच्छी प्रजातियों के औषधीय पौधे मंगवाए। किसानों को औषधीय खेती के प्रति रूझान बना रहे इसके लिए अनुदान से पूर्व आवेदक का थर्ड पार्टी के रूप में क्रेता से अनुबंध करवाया गया। सौ रुपए के स्टाम्प पर होने वाले इस पेपर में निजी कम्पनियों की ओर से परम्परागत फसल की बजाए औषधीय खेती के भाव अच्छे दिलवाने का एग्रीमेंट किया।
गायब हो गई कम्पनियां
किसानों ने उद्यान विभाग से अनुदान लेकर खेतों में बूंद-बूंद सिंचाई के लिए लाखों रुपए खर्च कर पाइप लाइन डलवाई। आबोहवा अनुकूल होने के कारण औषधीय पौधों की फसलें भी हुई । लेकिन औषधीय फसल तैयार होने पर एग्रीमेंट करने वाली कम्पनी से सम्पर्क किया गया तो पता चला की कम्पनी ही काम नहीं कर रही है। कुछ कम्पनियों ने बाजार नहीं होने से कम भाव दिए तो किसान के सामने ने उपज बेचने का संकट हो गया।
अब खुद लगा रहे हैं किसान
सरकार की ओर से मेडिशनल प्लांट लगाने की योजना बंद करने के बाद प्रदेश के अधिकांश जिलों में जड़ी बूटी की खेती सिमट चुकी है। उदयपुर संभाग के एक-दो जिलों में किसान तुलसी, कलौंजी, सोनामुखी आदि फसलों की खेती अपने स्तर पर कर रहे है। किसानों का कहना है कि सरकार को किसानों के हितों के लिए यह योजना दुबारा शुरू करनी चाहिए। गौरतलब है कि आयुर्वेदिक फसलों की खेती करवाने के लिए वर्ष 2008-09 में मेडिशनल प्लांट बोर्ड ने योजनाएं तैयार की। इसके तहत किसान को लगाने वाले पोधों की संख्या और एस्टीमेट व इससे होने वाली आय और व्यय का ब्यौरा भरकर मेडिशनल प्लांट बोर्ड में फाइल जमा करवानी पड़ती है। कृषि विभाग के निर्देशन में पात्र किसान को औषधीय खेती करनी पड़ती है।
फसलवार यह है स्थिति
कलौंजी: प्रदेश में कलौंजी की खेती का दायरा अब झालवाड़-प्रतापगढ और टोंक जिले तक सिमित होकर रह गया है। हालात यह है कि हर साल बुवाई क्षेत्र कम हो रहा है। झालावाड़ जिलें में वर्ष 2021-22 के दौरान 3433 हैक्टयर क्षेत्र में कलौंजी की बुवाई हुई थी। जो वर्ष 2022-23 के दौरान घटकर 497 हैक्टयर रह गई। इसी तरह प्रतापगढ़ में 1023 हैक्टयर से घटकर 881 हैक्टयर और टोंक में 372 हैक्टयर से घटकर 25 हैक्टयर रह गई।
तुलसी: तुलसी की खेती उदयपुर, प्रतापगढ़, राजसमंद, हनुमानगढ़, चितौडग़ढ़, झालावाड़ तक सीमित हो चुकी है। वहीं, इन जिलों में भी तेजी से बुवाई क्षेत्र घट रहा है। वर्ष 2021-22 की तुलना में चितौडग़ढ़ जिले में वर्ष 2022-23 के दौरान 122 हैक्टयर में खेती की गई। जबकि, एक साल पहले बुवाई क्षेत्र का आंकड़ा 1050 हैक्टयर था। इसी तरह उदयपुर में एरिया 191 हैक्टयर से घटकर 2 हैक्टयर पर आ चुका है। जबकि पाली में वर्ष 2022-23 के दौरान 442 हैक्टयर क्षेत्र में तुलसी की खेती होना दर्ज हुआ है।
ग्वारपाठा: चितौडग़ढ़ जिले में ग्वारपाठा की खेती का सफाया हो चुका है। वहीं, चुरू , झुंझुनूं, जोधपुर, जैसलमेर, सीकर आदि जिलों में बुवाई क्षेत्र में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। चित्तौडग़ढ़ जिले में वर्ष 2021-22 के दौरान 330 हैक्टयर में ग्वारपाठा की बुवाई हुई। इसके अगले साल बुवाई का आंकड़ा शून्य हो गया। वहीं, चुरू में भी साल भर के अंतराल पर बुवाई क्षेत्र घटकर 579 हैक्टयर से घटकर 143 हैक्टयर पर आ टिका।
सोनामुखी: सोनामुखी की खेती भी बीकानेर, जोधपुर और पाली जिले में जिंदा है। लेकिन, इन जिलों में भी बुवाई क्षेत्र में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है। वर्ष 2021-22 के दौरान बीकानेर में 1855, जोधपुर में 2066 और पाली जिले में 847 हैक्टयर क्षेत्र में सोनामुखी की बुवाई दर्ज हुई। इसके अगले साल बुवाई का आंकड़ा घटकर क्रमश: 308, 828 और 440 हैक्टयर रह गया।