प्याज-लहसुन में रोग प्रबंधन -प्याज- लहसुन भारत में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसल (सभी तस्वीरें- हलधर)
दिव्या गुर्जर, पिंकी शर्मा, एसके एनएयू, जोबनेर
प्याज- लहसुन भारत में उगाई जाने वाली महत्वपूर्ण फसलें है। इनकों सलाद के रूप में, सब्जी में, आचार अथवा चटनी बनाते समय प्रयोग में लाते हैं। प्याज- लहसुन में विभिन्न औषधीय गुण भी पाये जाते हैं। प्याज- लहसुन की खेती रबी मौसम में की जाती है लेकिन इनको खरीफ (वर्षा ऋ तु) में भी उगाया जाता है। प्याज-लहसुन की फसल में विभिन्न प्रकार के रोग लगते हैं जिससे उत्पादन प्रभावित होता है। अच्छी गुणवत्ता वाली उच्च विपणन योग्य कन्द उपज पाने के लिए उचित तरीकों से रोग प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है। इसके अलावा, निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए।
नर्सरी में लगने वाले रोग
आद्र्रगलन: पौधशाला की क्यारियों को जमीन से 15-20 सेंमी. ऊपर बनाए। स्वस्थ बीज का चुनाव करें। पौधशाला की मृदा में थाइरम के घोल (2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी) अथवा बाविस्टीन के घोल (1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए। बुवाई से पूर्व कार्बेन्डाजिम अथवा थायरम 2.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीजोपचार करना चाहिए। जड़ और जमीन को ट्राइकोडर्मा विरडी के घोल (5.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करना चाहिए।
बैंगनी धब्बा : पौध रोपाई के 45 दिन बाद 0.25 प्रतिशत डाइथेन एम-45 अथवाा कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर)का चिपकने वाली दवा मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। यदि बीमारी का प्रकोप ज्यादा हो तो छिड़काव 3-4 बार प्रत्येक 10-15 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए।
झुलसा रोग : पौध रोपाई के 45 दिनों के बाद 0.25 प्रतिशत मैन्कोजेब (डाइथेन एम-45) अथवा डाईफेनाकोनाजोल अथवा अजोक्सीस्ट्रोबीन 0.1 प्रतिशत का छिड़काव प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर 3-4 बार करना चाहिए।
मृदुरोमिल आसिता : बीमारी का प्रकोप होने पर 0.25 प्रतिशत मैन्कोजेब अथवा कासु-बी अथवा 0.2 प्रतिशत सल्फर युक्त कवकनाशी का घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल पर दो से तीन बार छिड़काव करना चाहिए।
प्याज का कण्ड : बीज को बोने से पूर्व थाइरम अथवा कैप्टान 2.0-2.5 ग्राम प्रति कि.ग्रा. की दर से उपचारित करें।
श्याम वर्ण : रोग के लक्षण दिखाई देने पर मेंकोजेब (2ग्राम प्रति लीटर) अथवा कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर) दवा का छिड़काव रोग नियंत्रण होने तक 12-15 दिन के अंतराल में करना चाहिए। रोपाई के पूर्व पौधों को कार्बेन्डाजिम (2 ग्राम प्रति लीटर) के घोल में डुबाकर लगाने से रोग का प्रकोप कम होता है।
आधार विगलन: इस रोग से बचाव हेतु गर्मी में गहरी जुताई कर खेत को खुला छोडऩा चाहिए। पॉलिथीन की चादर से भूमि का सौर उपचार करना चाहिए। फसल चक्र अपनाना चाहिए और बाविस्टिन या थायरम 2 ग्राम प्रति किग्रा. बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।