बैंगन में सूत्रकृमि के लक्षण और रोकथाम

नई दिल्ली 09-Oct-2024 10:28 AM

बैंगन में सूत्रकृमि के लक्षण और रोकथाम

(सभी तस्वीरें- हलधर)

कविता चौधरी, डॉ एसपी बिश्नोई, राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान, दुर्गापुरा, जयपुर।
 

 यह सूत्रकृमि प्रजातियां  बैंगन में आर्थिक नुकसान पहुँचती है। यह सूत्रकृमि व्यापक रूप से नर्सरी,उपरी भूमि और अच्छी जल निकास वाली भूमि में पाये जाते हैं। वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध के आधार पर सूत्रकृमि का ज्यादा प्रकोप होने पर बैगन मे 50 से 60 प्रतिशत तक का नुकसान हो जाता है।  
सूत्रकृमि गांठ की पहचान
पौधों की जड़ पर दो तरह की गाँठे बनती है । एक सूत्रकर्मी द्वारा बनाई हुई और दूसरी राइजोबियम जीवाणु द्वारा बनाई हुई। सूत्रकर्मी विभिन्न प्रकार की फसलों अथवा पौधों में गाँठे बनाते है। जबकि, जीवाणु राइजोबियम, दलहनी फसलों की जडो में गाँठे बनाता है। सूत्रकर्मी जनित गाँठे फसल में पोषक तत्वो के ग्रहण करने की क्षमता को कम करती हैं। जबकि, राइजोबियम की गाँठे दलहनी फसलों में नाइट्रोजन  स्थरीकरण करके लाभ पहुँचती है। 
सूत्रकर्मी की गाँठे जड के चारों ओर गोल आकर्ति में बनती ह, जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता है।  जबकि, जीवाणु की गाँठे जड की एक तरफ  बनती है। जिन्हें रगडकर आसानी से अलग कर सकते है। 
सूत्रकृमि रोग के लक्षण
सूत्रकृमि के लक्षण खेत में गुच्छों में और कुछ क्षेत्र में पाये जाते है। बैंगन के सूत्रकृमि से ग्रसित पौधों की निचली पत्तियां पीली पड़ जाती है।  पौधे मुरझा जाते है। पौधे बौने  रह जाते है। पौधों में फूल और फल देरी से लगते हैं। फलों का आकार छोटा होता है और उनकी गुणवत्ता मे कमी आ जाती है। पौधों की जड़ को उखाड़कर देखने पर यह दिखता है, कि पौधे की जड़े सीधी न होकर आपस मे गुच्छा बना लेती है और  पौधे की जड़ों मे गांठें दिखाई देती है। 
रोग से हानियाँ 
बैंगन के खेत में सूत्रकृमि प्राथमिक और द्वितीयक जड़ों को प्रभावित करके फसल को नुकसान पहुंचते है। संक्रमित जडों भिन्न-भिन्न आकार की गांठे बनाते हैं। सूत्रकृमियों की संख्या अधिक होने पर पौधों द्वारा पानी और दूसरे पोषक तत्वों को प्राप्त करने में अवरोध उत्पन्न होता है। जिससे फसल की गुणवत्ता पर प्रभाव पडता है और उत्पादन मे भी कमी आती हैं।  क्योंकि,  पौधे कमजोर, बौने, पीले हो जाते हैं। इससे ग्रसित पौधों में अन्य रोग जैसे उकठा, फं फू दी आदि  भी शीघ्र लग जाते हैं। सामान्य अवस्था मे इस रोग से  20 से 40 प्रतिशत तक नुकसान होता ह। परन्तु रोग की अधिकता होने पर 70 से 80 प्रतिशत तक भी हानि हो सकती है।  
रोग का प्रबंधन 
फ सल चक्र: सूत्रकृमियों की कई प्रजातियां जैसे. मेलाइडोगायनी, ग्लोबोडेरा, हेटरोडेरा आदि मृदा मे लंबे समय तक सक्रिय नहीं रहते है। अत: फसल चक्र अपनाकर इनका रोकथाम की जा सकती है।  जिन खेतों मे जड़ गांठ सूत्रकृमि का प्रकोप हो रहा है, वहां ऐसी सब्जियों अथवा फ सलों का चुनाव करें, जिनमे यह नही लगता जैसे  मक्का, गेहूं , ज्वार , बाजरा आदि। 
स्वच्छ कृषि औजारों का प्रयोग:.  एक खेत से दूसरे खेत में कृषि औजारों के प्रयोग से पहले इन्हें अच्छी तरह से साफ कर लेना चाहिए। ताकि, सूत्रकृमि एक खेत से दुसरे खेत में कृषि औजारों के माध्यम से न जा पाएं।
रोग रहित पौध का चुनाव:  स्वस्थ,  साफ  और रोगरहित पौध का चुनाव करना चाहिये। 
कार्बनिक खाद का प्रयोग: . यह खादें सूत्रकृमियों के प्रति प्रतिरोध उत्पन्न करने वाले कुछ ऐसे कवक और  बैक्टिरिया को बढ़ावा देती है, जिससे इनका प्रभाव कम हो जाता है। खादों को भूमि की जुताई करते समय अथवा बीज बोने अथवा पौध लगाने के 20 से 25 दिन पहले डालना चाहिये। इनमें मुख्यत नीम, सरसों, महुआ, अरण्डी आदि की खली 25 से 30 किलो प्रति हैक्टयर की दर से डालना चाहिए। 
रक्षक फसलें: कुछ फसलें जैसे. शतावर आदि जड़ गांठ सूत्रकृमि की संख्या को कम कर देते है । ये फसलें रक्षक फसलें कहलाती है। इनके अलावा कुछ ऐसे फसलें, जिनकी जडों से ऐसे रासायनिक पदार्थ स्त्रावित होते हैं जो सूत्रकृमियों के लिये विष का काम करतें है जैसे गेंदा आदि।  इन्हे मुख्य फसलों के बीच मे या मुख्य फसल के चारो तरफ  2 से 3 कतारों मे लगाना चाहिए।
रोग ग्रस्त पौधों को नष्ट करके:  यदि शुरुआत में सूत्रकृमि का प्रकोप बहुत कम है, तो रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ देना चाहिये। इससे रोग का प्रकोप कम हो जाता है।
ग्रीष्म कालीन गहरी जुताई:  मई.जून के महीने मे खेतों मे 15 से 30 सेंटीमीटर गहरी जुताई करके छोड़ देनी चहिए जिससे सूत्रकृमियों के अण्डे और डिंभक उपरी सतह पर आ जातें हैं जो सूर्य ताप  द्वारा नष्ट हो जाते हैं।
खरपतवार नियंत्रण: खेतों में उगने वाले कई प्रकार के खरपतवारों पर सूत्रकृमि पनाह लेकर पोषण प्राप्त करके अपना जीवन चक्र पूरा कर लेते हैं। आने वाली फसल पर आक्रमण करके हानि पहुंचाते हैं। अत: समय-समय पर खरपतवारों का नियंत्रण करते रहें। 
रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन : सूत्रकृमियों के प्रबंधन का यह सबसे सरलए सस्ता और प्रभावकारी उपाय है कि प्रतिरोधी किस्मे उगानी चाहिए 
सूत्रकृमि का रासायनिक नियंत्रण 
कार्बोफ्यूरान 2 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैक्टयर भूमि मे मिलायें अथवा बीज दर से उपचारित करें।
पौध को कार्बोसल्फ ॉन 25 ईसी 500 पीपीएम से 1 घंटे तक उपचारित करने के बाद लगाये।
डाईक्लोरोप्रोपीन अथवा ऑक्सामिल को 5 से 10 क्विटंल प्रति हैक्टयर अथवा निमागान 120 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से भूमि मे मिलाना चाहिये। 
खेत में फ्लुओपायरोन 400 ग्राम प्रति लीटर पानी का घोल बनाकर 200-1000 लीटर पानी प्रति हैक्टयर छिडकाव करे।


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