कमलम (ड्रैगन फ्रूट) की खेती

नई दिल्ली 23-May-2024 01:13 PM

कमलम (ड्रैगन फ्रूट) की खेती (सभी तस्वीरें- हलधर)

कमलम एक फल है। किन्तु पिताया आमतौर पर स्टेनोकेरेस वंश के फल को कहते हैं। जबकि, हिलोकेरेस वंश के फल को पितहाया अथवा ड्रैगन फल कहते हैं। दोनों ही कैक्टेसी परिवार के सदस्य हैं। ड्रैगन फ्रूट एक बहुवर्षीय कैक्टस है, इसे अधिक तर लाल पितहाया के नाम से जाना जाता है। यह भारतीय किसानों में बहुत प्रचलित हो रहा है। क्योंकि, यह आकर्षक लाल और गुलाबी रंग का होता है। इसकी बाजार में मांग इसलिए भी अधिक है। क्योंकि, इसमें विटामिन्स और कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में होते है।  कैक्टस परिवार होने के नाते और फूल आने के लिए दीर्घकाल तक सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है। ड्रैगन फू्रट की खेती के लिए दक्षिणीए पश्चिमी और उत्तर पूर्वी भारत के कृषि जलवायु क्षेत्र अच्छी तरह से अनुकूलित है जो शुष्क हैं और ठंड से मुक्त है।

अमेरिका का देशज फ ल

ड्रैगन फूट अमेरिका का देशज फल है। लाल रंग के गुद्दे वाली प्रजाति का वानस्पतिक नाम हाइलोसेरस कोस्टारीसेंसिस है। फ ल के गुद्दे के रंग के आधार पर यह तीन प्रकार का होता है ।

पीले रंग के फल और सफ़े द गुद्दे वाला (हाइलोसेरस मेगालैंथस) इसको पिथेया अमरिलीयर या पीला पिथेया भी कहते है।

लाल रंग के फल और लाल गुद्दे वाला(हाइलोसेरस कोस्टारीसेंसिस ) इसको पिथेया रोजाओर भी कहते है।

गुलाबी रंग के फल और सफ ेद गुद्दे वाला (हाइलोसेरस अनडेटस) इसको पिथेया ब्लैंकार भी कहते है।

जलवायु

 उचित तापमान : 20 से 29 डिग्री सेंटीग्रेड होता है। लेकिन यह 38 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड अधिकतम और न्यूनतम 0 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान सह सकता है। लेकिन 40 डिग्री से अधिक तापमान पर पौधे पीले पडऩे लगते हैं। मिट्टी कार्बनिक पदार्थों से भरपूर और हल्की अम्लीय पीएच मान 5.5 से 6 हो।  चिकनी बलुई मिट्टी जिसमें जल निकास अच्छा हो इसके लिए उत्तम मानी जाती है। 

पौधे तैयार करना

ड्रैगन फ्रूट के पौधे तने की कटिंग काटकर तैयार की जाती है। सामान्य तौर पर 20 से 25 सेंटीमीटर लंबाई की कटिंग काम में ली जाती है। कटिंग लगाने से 1 से 2 दिन पहले तैयार कर लेनी चाहिए। कटिंग काटते समय इनमें से लेटेक्स निकलता है, उसे सुखा लेना चाहिए। कटिंग लेने का उचित समय फल तुड़ाई के बाद का होता है। इसकी कटिंग को कवकनाशी अथवा फफूंदनाशी से उपचारित कर लेना चाहिए। कटिंग को लगाने का के लिए 12 गुना 30 सेंटीमीटर आकार वाली पॉलीबैग काम में ली जाती है, जिन्हें 1:1:1 अनुपात में मिट्टी, गोबर की खाद और रेत के मिश्रण से भरें। जड़ों को सडऩे-गलने से बचाने के लिए ज्यादा मात्रा में नमी जमा नहीं होने देना चाहिए। यह कटिंग 5 से 6 महीने में पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है। बीज द्वारा तैयार किए गए पौधे ज्यादा अच्छी क्षमता वाले नहीं होते हैं, इसलिए इनको उपयोग में नहीं लिया जाता है।

किस्में: अमेरिकन ब्यूटी, गोल्डन ड्रैगन, ब्लैक ड्रैगन, थाई ड्रैगन, येल्लो ड्रैगन, मैक्सिकन रेडए ऑस्ट्रेलियाई रेड, ताइवान पिंक, डिलाइट, डेजर्ट किंग, डेजर्ट प्रिंसेस, व्हाइट किंग, रॉयल रेड, रूबी रेड, थाई रेड और गॉडज़िला आदि।

भूमि की तैयारी: मिट्टी अच्छी भुरभुरी हो।

पौध रोपण : इसको खुली धूप में लगाना चाहिए। अधिकतर छायादार स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है। सामान्य तौर पर इसको 3 गुना 3 मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। ड्रैगन फ्रूट को 1.5 से 2 मीटर की ऊंचाई वाले खंबे के पास लगाया जाता है। ताकि, अपनी वृद्धि के समय यह खंभे से सहारा ले सकें और टूटे नहीं। जगह के अनुसार कभी-कभी एक खंभे पर 3 से 4 पौधे एक साथ लगाए जाते हैं।

शाखाएं हटाना

पौधे के चारों तरफ  से निकली हुई दो से तीन प्रमुख शाखाओं को बढऩे दिया जाता है। दूसरी शाखाओं को समय-समय पर हटा देना चाहिए। इसकी बेल अथवा झाड़ी को सहारा देने के लिए खंबे के ऊपरी भाग में लोहे के तार अथवा सीमेंट का गोलाकार ढांचा बना देना चाहिए। इसकी बेल बहुत तेजी से लगभग 8.2 सेंटीमीटर प्रति सप्ताह की गति से बढ़ती हैं। रोपण के लगभग 8 महीने पश्चात इसका पौधा जाली के शीर्ष भाग पर मोटी शाखाओं वाला घना फैलाव बना लेता है, जो जमीन की तरफ  लटकता रहता है।

पुष्पन

ड्रैगन फ्रूट में शुरुआती समय पर पुष्पन एक घुमावदार बटन जैसी संरचना के रूप में होता ह। जो आगे चलकर 10 से 15 दिनों में कलिका के रूप में विकसित हो जाता है। इसके फू ल खूबसूरत, 25 से 30 सेंटीमीटर लम्बे और उभयलिंगी होते हैं। फूल अंदर से सफेद और बाहर से हरे पीले और हल्के बैंगनी रंग के होते हैं। ड्रैगन फू्रट के फूल सुगंधित होते हैं और रात के समय खिलते हैं। केवल एक रात तक ही रहते हैं। सामान्यत: इसमें फ ूल मई से अगस्त महीने में लगते हैं। फल लगने के 30 से 40 दिन बाद तोड़ लिए जाने चाहिए।

खाद और पोषक तत्वों का प्रबंधन

नाइट्रोजन 450 ग्राम, फास्फोरस 350 ग्राम और 300 ग्राम पोटेशियम प्रति पौधा देने पर सबसे अच्छा परिणाम मिलता है। पोषक तत्वों को चार भागों में दिया जाना चाहिए। एक साथ 3-4 पौधे वाले 1 खंबे पर 10, 10 और 30 प्रतिशत भाग फल तुड़ाई के 2 महीने बाद देना चाहिए। जैविक खादों में गाय का गोबर, नीम की खली लगभग 15-20 किग्रा प्रति पोल और संपूर्ण खाद 19:19:19 हर 3 से 4 महीने के अंतराल में देना चाहिए।

सिंचाई

इसकी जड़ों की गहराई 15 से 30 सेंटीमीटर होती है, इसलिए पर्याप्त मात्रा में इसकी सिंचाई करनी चाहिए।


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