कैटरपिलर, हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा ने बिगाड़ा बाजरे का हुलिया
(सभी तस्वीरें- हलधर)कृषि वैज्ञानिक और कृषि अधिकारी किसानों द्वारा बुवाई की गई फसलो का अवलोकन कर उचित सलाह दे रहे है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि बारिश के बाद भी तापमान में कमी नहीं आई है। इस कारण फसलो में कीट-रोग का प्रकोप बढ़ा है। हालांकि, कीट-रोग का प्रकोप आर्थिक हानि स्तर से कम है। इस कारण उत्पादन पर ज्यादा विपरीत प्रभाव नहीं पडेगा। किसानों से प्राप्त जानकारी के अनुसार जयपुर, दौसा, चुरू, सीकर, टोंक, झुंझुनूं, दौसा, सवाईमाधोपुर, बीकानेर, झालावाड़, चुरू, झुंझुनूं, सीकर सहित दूसरे बाजरा उत्पादक जिलों में फड़का, इयर हैड कैटरपिलर और हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा सुंडी का प्रकोप फसल में देखने को मिल रहा है। कीट के प्रकोप ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरे उकेर दी है। किसानों का कहना है कि फसल पकने की अवस्था पर कीट का प्रकोप होना सीधे-सीधे उत्पादन का ग्राफ गिराने का काम करेगा। बता दें कि बाजरे में फ ड़का, इयर हैड कैटरपिलर और हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा सुंडीका प्रकोप उत्पादन गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कृषि अधिकारियों की मानें तो बाजरा, ज्वार और मक्का फसल में इन दोनों कीट से अधिक नुकसान की आशंका रहती है। फड़का कीट के कारण यह फसलें चीर-चीर होकर जल जाती है। इसी तरह मूंग, मोठ की फसल मेें भी फड़का कीट नुकसान पहुचाता है। कीट प्रकोप से पौधे की बढ़वार भी प्रभावित होती है। कीट का अक्टूम्बर माह तक फसल में बना रहता है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि बाजरे में हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा सुंडी दूधिया अवस्था में दानो को चट करती है। इस सुंड़ी का प्रकोप टमाटर, चना आदि फसलों में भी होता है। नियंत्रण के अभाव में आगामी फसलों में भी इस कीट का प्रकोप देखने को मिल सकता है।
मादा कीट छोड़ती है अंडे
मादा कीट भूमि मेें अपने अण्डे देती है। भूमि मेें पड़े जून और जुलाई के बाद पंख रहित शिशु कीट अवस्था में आ जाते है। फड़का सर्वभक्षी सैन्य कीट है, जिसकी तीन अवस्थाएं पाई जाती हैं। यह अण्डा, निम्फ, और प्रौढ़ अवस्था फसलों को नुकसान पहुचाती है। खरीफ की फसल को सबसे अधिक प्रौढ़ अवस्था नुकसान पहुंचाती है।
ऐसे करें बचाव
फड़का कीट के शिशु अवस्था मेें नियंत्रण के लिए खेत में जगह-जगह 30 से 45 सेमी चौड़ी और 60 सेमी गहरी खाई खोद कर इन्हें नियंत्रण करें। खरपतवारों पर क्यूनॉलफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किग्रा प्रति. हैक्टयर की दर से भुरकाव करें।
केटरपिलर से नुकसान ऐसे
ईयर हैड़ कैटरपिलर कीट बाजरे के सिट्टो को ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। जिससे उत्पादन में कमी आती है। यह कीट बाली में दूधिया अवस्था में दानो को खाकर नुकसान पहुंचाते हैं। यह कीट बाजरे की बाली के अंदर फूल में छुप कर दानो को खाता रहता हैं। इस कीट का सर्वाधिक नुकसान ऊन खेतो में है, जिनमें अभी फूल आ रहा है और दाने दूधिया अवस्था पर हैं ।
ऐसे करें नियंत्रण
कीट नियंत्रण के लिए किसान प्रोफेनोफोस 50 ईसी 2 मिली अथवा क्यूनॉलफोस 50 ईसी 2 मिली अथवा इमामेक्टिन बेंजोएट 5 एसजी 5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा सुंडी
हेलिकोवर्पा आर्मिगेरा सुंडी दूधिया अवस्था वाले सिट्टों में ज्यादा नुकसान पहुंचाती है। इस सुंड़ी के नियंत्रण के लिए किसान भाई लेम्डा साईहेथोस्थ्रिन 5 प्रतिशत ईसी 0.5 मिली प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर सिट्टों और पत्तियों पर छिड़काव करें।
अगेती फसल की कटाई शुरू
उधर, अगेती बाजरा, मक्का और दलहनी फसल की बुवाई करने वाले किसान फसल की कटाई में जुट गए है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि खरीफ फसल पखवाडे भर में बाजार में दस्तक दे देगी।
बाली चट कर रही है लट
उधर, हाडौती संभाग में धान की फसल में ब्लास्ट रोग के साथ-साथ बाली खाने वाली लट का प्रकोप हो रहा है। किसानों का कहना हैकि लट बाली के अंदर दाने को खा रही है। कृषि विश्वविद्यालय कोटा के डॉ. डीएल यादव ने बताया कि धान की फसल में लट नियंत्रण के लिए किसान भाई इमामेक्टिन बेन्जोएंट 5 प्रतिशत 200 ग्राम प्रति टंकी पानी की दर से घोल बनाकर प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव करें।
ग्वार
रोग : ब्लाइट (झुलसा अंगमारी)
नियंत्रण : इस रोग की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टयर और 18 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
हरा तैला (जैसिड), तेलीया (एफिड) और सफेद मक्खी
नियंत्रण : रस चूसने वाले इन कीटों के नियंत्रण के लिए एसीटामाप्रिड 150 ग्राम प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
कपास
रोग : ब्लैक आर्म (जीवाणु अंगमारी)
नियंत्रण : इस रोग के नियंत्रण के लिए 18 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 2 किलोग्राम ताम्रयुक्त कवकनाशी प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।
हरा तैला (जैसिड) और सफेद मक्खी
नियंत्रण : इसके लिए एसीफेट 500 ग्राम प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।