जैविक विधि से मटर में कीट-रोग प्रबंधन

नई दिल्ली 26-Nov-2024 01:27 PM

जैविक विधि से मटर में कीट-रोग प्रबंधन

(सभी तस्वीरें- हलधर)

वही कीटों में लीफ माइनर और फ ली बेधक का प्रकोप होता है। अमूमन कीट-रोग नियंत्रण के लिए किसान कीटनाशक का उपयोग करते है। इससे कृषि लागत में इजाफा होता है। साथ ही, मृदा स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। ऐसे में कीट-रोग का जैविक विधि से नियंत्रण हर तरह से किसान के लिए लाभकारी है। 
रोग नियंत्रण
पाउडरी मिल्ड्यू :
रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इक_ा करके जला दें। रोग प्रतिरोधी किस्में लगायें। रोग के लक्षण दिखाई देने से पहले लहसुन की गठियों के द्रव्य 2 प्रतिशत का छिड़काव 7 दिन के अंतराल पर करें। अथवा दूध में हींग मिलाकर 5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। अथवा 2 किलोग्राम हल्दी का चूर्ण और 8 किलोग्राम लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें। अथवा अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं और 15 दिन के अंतराल पर तीन बार छिड़कने से चूर्ण आसिता सहित फ फूं द वाले रोग का  प्रकोप कम होता है।
एस्कोकाईटा ब्लाईट, रस्ट : बीज अमृत व पंचगव्य से बीजोपचार करें। बीमारी आने पर गौमूत्र और लस्सी का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। रोग ग्रसित पौधों को नष्ट कर दें। हल्की सिंचाई दें। जल निकासी का उचित प्रबन्ध करें।
फ्युजेरियम विल्ट: फ सल चक्र अपनाएं। स्वस्थ बीज का प्रयोग करें। बीमारी वाले खेत में केंचुआ खाद और सीपीपी डालें। गर्मियों में 45 दिन के लिए सौर ऊर्जा से उपचार करें।
सफेद विगलन: रोगग्रस्त पौधों के अवशेषों को इक_ा करके नष्ट कर दें। पंक्तियों का फ ासला 50 से 60 सेमी. रखें। खेत तैयार करते समय ट्राइकोडर्मा हरजियानम फ फूं द 120 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से मिट्टी में मिलाएं। 
डाऊनी मिल्ड्यू, जीवाणु अंगमारी : बीज को बुवाई से पूर्व  ट्राइकोडर्मा और बीजामृत से उपचारित करें।
मोजेक : रोगहवाहक कीटों की रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।खेत में परावर्ती बिछौना बिछाने से भी रोगवाहक कीटों की संख्या में कमी आ जाती है।
अगेता भूरापन : विषाणुमुक्त बीज का ही इस्मेताल करें। सेमवर्गीय खरपतवारों को नष्ट करें। रोगवाहक सूत्रकृमि की रोकथाम के लिए मिट्टी का उपचार ट्राइकोडर्मा से करें। तीन वर्षीय फ सल चक्र अपनाएं।
मटर के प्रमुख कीट
लीफ माईनर :
पंचगव्य अथवा दशपर्णी के 5 से 10 प्रतिशत घोल का छिड़काव करें।
फ ली छेदक : एक किलोग्राम मेथी के आटे को 2 लीटर पानी में डालकर 24 घंटे के लिए रख देते हैं। इसके उपरान्त इसमें 10 लीटर पानी डालकर फ सल पर छिड़काव करते हैं। इससे 50 प्रतिशत तक सुण्डियों की रोकथाम हो जाती है।


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