सोयाबीन में रोग नियंत्रण
(सभी तस्वीरें- हलधर)हाड़ौती और मेवाड़ संभाग में प्रमुखता से बुवाई की जाने वाली फसल सोयाबीन इन दिनों पीलिया रोग की चपेट में हैं। रोग के कारण खेत के खेत पीले नजर आ रहे हैं। इसके अलावा दूसरे रोग भी फसल के उत्पादन को प्रभावित कर रहे है। हालांकि, रोग की स्थिति आर्थिक हानि स्तर से नीचे है। किसान, आलेख की सहायता से रोग विशेष के लिए सिफारिश किये कृषि रसायनों का उपयोग कर रोग नियंत्रित कर सकते है।
पीलिया रोग
रोग नियंत्रण के लिए 0.1 प्रतिशत गंधक का तेजाब अथवा 0.5 प्रतिशत फेरस सल्फेट का छिड़काव करें।
जीवाणुरोग
रोकथाम हेतु 2 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 20 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़के। एक हैक्टेयर हेतु 50 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की आवश्यकता होती हैं। 100 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और एक किलो कॉपर ऑक्सीक्लोराइड़ 50 प्रतिशत घोल का छिड़काव अधिक प्रभावी रहता हैं।
विषाणु रोग
रोकथाम हेतु डाइमिथोएट अथवा मैटासिस्टोक्स 500-600 मिलीलीटर दवा को 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
पत्ती धब्बा रोग
रोकथाम के लिए एक से सवा किलो मैंकोजेब 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़के।
माइकोप्लाज्मा
रोग नियंत्रण हेतु डाइमिथोएट अथवा मिथाइल डिमेटोन 500 मिलीलीटर दवा को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
तनागलन
रोकथाम हेतु डेढ़ से दो किलो मैंकोजेब 600-700 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
फली झुलसा रोग
फसल में रोग के लक्षण नजर आते ही कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यूपी के 0.05 प्रतिशत घोल के दो छिड़काव एक पखवाड़े के अंतराल पर करें।