नुकसान से बीच उम्मीदों की जमीं तैयार

नई दिल्ली 03-Oct-2023 04:05 PM

नुकसान से बीच उम्मीदों की जमीं तैयार (सभी तस्वीरें- हलधर)

जयपुर। प्रदेश में इन दिनों विदाई लेते मानसून की मेहर के बीच किसान खरीफ का गम भुलाकर सरसों बुवाई के लिए जमीं तैयार करने लगे है। किसान बारिश से जमीन में व्याप्त नमी का पूरा फायदा उठाना चाहते है। गौरतलब है कि हर साल तापमान ज्यादा रहने के चलते किसान समय पर सरसों की बुवाई नहीं कर पाते थे। लेकिन, इस बार अक्टूबर की शुरूआत तक बारिश का दौर बना होने से सूखे के हालातों के बीच किसानों को उम्मीद की किरण दिखाई दे रही है। किसानों का कहना है कि बुवाई के बाद एक-दो पानी देने से सरसों की फसल घर आ जायेगी। इन दिनों वह किसान जमीन को तैयार करने में जुटे है, जो बरसात के धोखा दे जाने से खरीफ फसलों से अपेक्षित उत्पादन नहीं ले पाएं है। उधर, कमजोर मानसून का असर खरीफ फसलों पर अब साफ नजर आ रहा है। धान, सोयाबीन और दलहनी फसलों का उत्पादन 15-20 फीसदी तक घट सकता है। कई जगहों पर सोयाबीन सडग़लकर नष्ट हो चुकी ैहै। वहीं, कपास-ग्वार की फसल को कीट-रोग चट कर रहे है। कृषि अधिकारियों का कहना है कि आधा दर्जन से अधिक जिलें सूखे की चपेट में होने के कारण खरीफ फसलों का भरपूर उत्पादन नहीं मिल पायेगा। इसका असर निश्चित तौर पर उत्पादन पर भी पड़ेगा। 15-20 प्रतिशत तक उत्पादन घट सकता है। इससे ज्यादा चिंता की बात रबी फसलों के लिए है। भू-जल स्तर गिरने की वजह से पलेवा में दिक्कत आने का डर था। लेकिन, इन दिनों प्रदेश के कई जिलों में हो रही बारिश ने सरसों बुवाई की संभावनाओं में जान डालने का काम किया है। बारिश से दिन-रात का तापमान सरसों बुवाई के अनुकूल होने लगा है। हाड़ौती और बीकानेर संभाग की कृषि उपज मंडियों में नये दलहन और कपास की आवक भी दर्ज होना शुरू हो गई है। 

कर रहे है खेतो की जुताई 

टोंक, कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़, अलवर, भरतपुर आदि जिलों के किसान रबी फसलों के बुवाई की तैयारी में जुटने शुरू हो गए है। परिवार के साथ खेतों की हकाई-जुताई कर रहे है। तापमान कम होने से किसान रबी फसलों की बुवाई करना शुरू कर देंगे। गौरतलब है कि इन जिलों में इस बार सूखे के चलते कृषि के हालात नासाज नजर आ रहे है।  कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि सरसों की बुवाई के लिए 28 डिग्री सेल्सियस तापमान जरूरी है। इससे अधिक तापमान में बुवाई करने से बीज खराब होने का डर रहता है। 

ग्वार 

रोग : ब्लाइट (झुलसा अंगमारी)

नियंत्रण : इस रोग की रोकथाम के लिए कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 0.3 प्रतिशत 2 से 2.5 किलोग्राम प्रति हैक्टयर और 18 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें। 

हरा तैला (जैसिड), तेलीया (एफिड) और सफेद मक्खी

नियंत्रण : रस चूसने वाले इन कीटों के नियंत्रण के लिए एसीटामाप्रिड 150 ग्राम प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें।

कपास

रोग : ब्लैक आर्म (जीवाणु अंगमारी)

नियंत्रण : इस रोग के नियंत्रण के लिए 18 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन और 2 किलोग्राम ताम्रयुक्त कवकनाशी प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें। 

हरा तैला (जैसिड) और सफेद मक्खी

नियंत्रण : इसके लिए एसीफेट 500 ग्राम प्रति हैक्टयर के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काव करें। 

तिल

रोग : गॉल मक्खी की लट

नियंत्रण: इस रोग के कारण फलियां फूलकर गांठ का रूप धारण कर लेती है, इसके नियंत्रण हेतु मिथाइल पैराथियॉन 2 प्रतिशत अथवा क्यूनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से भुरकाव करें। 

झुलसा रोग:- झुलसा रोग नियंत्रण के लिए किसान मैन्कोजेब डेढ़ किलोग्राम प्रति हैक्टयर की दर से उपयोग करें।

अरंड़ी

सेमीलूपर: कीट नियंत्रण के लिए क्यूनॉलफॉस 1 लीटर प्रति हैक्टयर 500-600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टयर की दर से उपयोग करें।


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