पूर्व से पश्चिम बरसा, दक्षिण पूरा तरसा (सभी तस्वीरें- हलधर)
खरीफ फसलों की बुवाई लक्ष्य से 90 फीसदी
जयपुर। मानसून, पूर्व से पश्चिम नाप रहा है। इससे सूखे में भी हरियाली नजर आने लगी है। लेकिन, दक्षिणी जिलों में बारिश की खींच अब भी देखने को मिल रही है। इस कारण खरीफ फसलों में कीट-रोग की समस्या भी सिर उठाने लगी है। किसानो का कहना है कि फसलों को जीवनरक्षक सिंचाई भी नहीं दे सकते। क्योंकि, सिंचाई करने के बाद यदि बरसात की झड़ी लग जाएं तो फसलें गलने के कगार पर पहुंच जायेगी। उधर, कीट-रोग का सबसे ज्यादा प्रकोप उड़द, मंूग और मक्का की फसल में देखने को मिल रहा है। मक्का की फसल फॉल आर्मी वर्म कीट और सोयाबीन और उड़द-मूंग में सेमीलूपर, गर्डल बीटल, मंूगफली में काली जड़ के साथ-साथ यलो मौजेक वायरस की चपेट में है। इसके अलावा बाजरा फसल में फड़का कीट का प्रक ोप किसानों की चिंता बढ़ा रहा है। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि वातावरण में बढ़ती आद्र्रता को देखते हुए सोयाबीन की फसल में भी सेमीलूपर और गर्डल बीटल कीट फसल को नुकसान पहुंचा रहा है। गौरतलब है कि सेमीलूपर कीट की इल्लियां पत्तियों को खाकर छलनी कर देती है। किसानों से जानकारी के अनुसार उड़द की फसल पकने में अभी काफी समय शेष है। लेकिन, रोग प्रकोप के चलते बेहत्तर उत्पादन पर संकट गहरात नजर आ रहा है। हालांकि, कृषि विभाग के अधिकारी और कृषि वैज्ञानिक किसानों को बचाव के उपाय सुझा रहे है। साथ ही, रोग-कीट प्रभावित क्षेत्र का सर्वे कर रहे है। गौरतलब है कि प्रदेश में लक्ष्य के मुकाबले खरीफ फसलों की बुवाई 90 फीसदी हो चुकी है। एक करोड़ 64 लाख हैक्टयर की तुलना में 1.49 करोड़ हैक्टयर क्षेत्र में खरीफ फसलो की बुवाई पूर्ण हो चुकी है।
लक्ष्य से 31 फीसदी पिछड़ा उदड़
इस साल प्रदेश में दलहनी फसलों की बुवाई लक्ष्य से कम रही है। इससे उत्पादन में गिरावट देखने को मिल सकती है। कीट-रोग का प्रकोप भी उत्पादन के आंकडे को गिरायेगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है। जानकारी के अनुसार प्रदेश में मूंग की बुवाई लक्ष्य से 13 फीसदी, मोठ की 14 फीसदी, उड़द की 31 फीसदी और चंवला की 11 फीसदी कम बुवाई हुई है। इससे साफ हो चला है कि इस साल उत्पादन कम रहने से दलहनी फसलों के प्रति क्विंटल भाव में तेजी का रूख रह सकता है। हालांकि, पिछले साल उड़द उत्पादक किसानों को भाव ने निराशा ही हाथ लगी थी।
यलो मौजेक से नुकसान ऐसे
यह रोग मौजेक वायरस से फैलता है और इस रोग को एक ग्रसित पौधे से दूसरे स्वस्थ पौधे तक सफेद मक्खी (बेमेसिया टेवेसाई) नामक कीट पहुंचाता है। रोग प्रकोप से फसल की प्रारंभिक अवस्था में उपज गिरती है। रोग के प्रारंभिक लक्षण फसल पर अंकुरण के एक से दो सप्ताह बाद पौधे के सबसे ऊपरी पत्ती पर पीले-हरे रंग के धब्बों के रूप में दिखाई देते है जिससे ग्रसित पौधों की बढ़वार अधिकतर रूक जाती है। ग्रसित पौधे फसल में दूर से ही दिखाई ्रदेते है और द्वितीयक संक्रमण के लक्षण अंकुरण के 5 से 6 सप्ताह के बाद दिखाई देते है। जिसमें पत्तियों पर अनियमित आकार के हल्के पीले रंग के चकते दिखाई देते है जो एक साथ मिलकर तेजी से फैलते है जिससे पत्तियों पर पीले धब्बे, हरे धब्बों के अगल-बगल दिखाई देते है और संक्रमित पत्तियॉ धीरे-धीरे पीली होकर अन्त में ऊतकक्षयी हो जाती है। यह वायरस जनित रोग है जो सफेद मक्खी कीट द्वारा फ सल में फैलता है। रोग प्रकोप से फ सल पीली पड़ जाती है।
ऐसे करें प्रबंधन
कृषि विज्ञान केन्द्र डूंगरपुर के पौध संरक्षण वैज्ञानिक डॉ. बीएल रोत ने बताया कि किसान खेत की सतत निगरानी करें और रोगग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर दें। संभव हो तो खेत में पीली स्ट्रीप लगाएं। अन्यथा पुराने मटकों पर पीला कलर करके उस पर बेकार पड़ा ग्रीस लगाए। फिर मटकों को फसल से दो फीट ऊंचाई पर उल्टा लटका दें। ताकि, रसचूसक कीट पीले रंग की ओर आकर्षित होकर मटके पर चिपक जाएं। इसके बाद रासयनिक उपचार में एसिटामिप्रिड़ 20 एसपी अथवा इमिडाक्लोप्रिड़ 17.8 एसएल 7 ग्राम प्रति टंकी (16 लीटर पानी) में घोल बनाकर छिड़काव करें तो इस रोग पर काबू पाया जा सकता है। दवा छिड़काव से पहले रोग ग्रस्त पौधों को उखाड़ कर नष्ट करना आवश्यक है।
सोयाबीन में सेमीलूपर से बचाव
गर्डल बीटल और सेमीलूपर कीट नियंत्रण के लिए किसान डाईमिथोएट 30 ईसी. 750 मिली. अथवा थायोक्लोप्रिड 24 एससी. 750 मिली. प्रति हैक्टयर दवा का छिड़काव पानी में घोल बनाकर करें।
बाजरे में फड़का
फड़का कीट नियंत्रण के लिए किसान क्यूनालफॉस 25 ईसी 1 लीटर 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टयर की दर से छिड़काव करें।
फसल बुवाई एक नजर
फसल बुवाई
धान - 2.77
ज्वार - 6.40
बाजरा - 41.79
मक्का - 9.61
मूंग - 21.85
मोठ - 8.31
उड़द - 2.97
चौला - 0.53
तिल - 1.99
मूंगफली - 8.48
सोयाबीन- 11.05
गन्ना - 0.05
कपास - 5.11
ग्वार - 24.31
(बुवाई लाख हैक्टयर में)