इस साल आधी रह गई गेहूं-सरसों की पैदावार (सभी तस्वीरें- हलधर)
मौसम की खलनायकी
जयपुर। प्रदेश के गेहंू और सरसों उत्पादक किसानों को इस साल पैदावार में खासा नुकसान उठाना पड़ा है। उपज में कमी की स्थिति एक दो जिलों की नहीं, अधिकांश जिलों में देखने-सुनने को मिल रही है। किसानों का कहना है कि उन्नत किस्मों की बुवाई करने के बावजूद इस बार प्रति बीघा पैदावार आधी ही मिल रही है। इससे सरसों उत्पादक किसानों के लिए लागत निकालना भी मुश्किल हो रहा है। क्योंकि, इस फसल के बाजार भाव घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम बोले जा रहे है। पहले किसानों को उम्मीद थी कि सरकारी खरीद शुरू होने के बाद सरसों के बाजार भाव में बढौत्तरी देखने को मिलेगी। लेकिन, बाजार भाव की स्थिति अब भी किसानो को मायूस करने वाली बनी हुई है। बाजार जानकारो का कहना है कि लिवाली नहीं निकलने से सरसों के भाव कम चल रहे है। वहीं, सरकारी उत्पादन के आंकडे पैदावार मेें बढौत्तरी के संकेत दे रहे है। जबकि, गेहूं उत्पादक किसानों की स्थिति अलग है। पैदावार में जरूर कमी दर्ज हुई है। लेकिन, बोनस बाद भी बाजार भाव समर्थन मूल्य से 500-600 रूपए ज्यादा बोले जा रहे है। हालांकि, इस भाव से नुकसान की भरपाई तो संभव नहीं है। लेकिन, ज्यादा दाम मरहम का काम जरूर करेंगे। गौरतलब है कि धान का कटोरा कहे जाने वाले श्री गंगानगर जिले के नहरी सिंचित क्षेत्र में प्रति बीघा गेहूं की पैदावार 8-10 क्ंिवटल तक बैठ रही है। किसानो का कहना है कि गेहूं की औसत पैदावार 13-14 क्विंटल प्रति बीघा बैठती है। इसी तरह सरसों की पैदावार में भी गिरावट दर्ज हुई है। सरसों की पैदावार इस साल घटकर 4 क्विंटल प्रति बीघा रह गई है। कमोबेश यही स्थिति प्रदेश के दूसरे जिलों में सरसों और गेहूं की अगेती बुवाई करने वाले किसानों के यहां देखने को मिल रही है।
गेहूं पैदावार घटने का कारण
श्रीगंगानगर जिले के 9 एमएल के कृषि पर्यवेक्षक संदीप कुमार सेन ने बताया कि इस बार अगेती गेंहू की बालियों में दानों के विकास समय मौसमी परिस्थितियों अनुकूल नहीं रही । लगातार बादल की आवाजाही, धूप नही निकलने के कारण पौधो में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया प्रभावित हुई। नमी युक्त वातावरण, तापमान में लगातार कमी से पौधे भूमि से पर्याप्त पोषक तत्व अपटैक नहीं होने के कारण इस बार उत्पादन में कमी आई है। इसके अलावा पीली रोग का प्रकोप भी किसानों के खेतों में दर्ज हुआ है।
सरसों में रोली पड़ गई भारी
सरसों फसल में फलियां छोटी , दानों की संख्या कम , दानों का आकार छोटा रहा। जिसका कारण उपरोक्त अनुकूल मौसमी परिस्थितियों नही होना था। जिससे सफेद रोली और तना गलन रोग का प्रकोप भी हुआ। इसके कारण उत्पादन में गिरावट दर्ज हुई है।