दुधारू पशुओं का तापघात से बचाव (सभी तस्वीरें- हलधर)
तापघात अथवा हीटस्ट्रोक अथवा उष्माघात अवस्था, जिसे सामान्य भाषा में लू लगना भी कहते है। इस अवस्था में प्रभावित पशु का शारीरिक तापमान अत्यधिक धूप अथवा गर्मी की वजह से बढऩे लगता है। इस स्थिति में पशु के शरीर का प्राकृतिक सिस्टम ,जिससे अपने शरीर को वातानुकूलित रखता है , वह सुचारू रूप से काम करना बंद कर देता है। जिसकी वजह से पशु का शारीरिक तापमान लगातार बढ़ता जाता है। पशु को इस स्थिति में अच्छा उपचार न दिया जावे और अच्छी देखभाल न की जाए तो बहुत ही भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है और प्रभावित पशु की जान भी जान सकती है।
पशुओं में तापघात के कारण
> अत्याधिकगर्मी अथवा तेज धूप के संपर्क में आने के कारण तापघात होता है। जिसमें शरीर का तापमान बढऩे लगता है।
> जलाभावके कारण से भी यह स्थिति उत्पन्न होती है।
> हाइपोथेलमस-जोप्राकृतिक रूप से पशुओं में शरीर के तापमान को नियमित रखता है का आघात।
> पशुबाड़ोंमें हवा का पर्याप्त प्रवाह ना हो।
पशुओं में तापघात के लक्षण
> पशुनिढाल साए सुस्त और कमजोर महसूस करता है।
> पशुके शरीर का तापमान अत्यधिक 106 डिग्री से 110 डिग्री फार्नेहाइट तक पहुँच जाता है।
> पशुका प्राकृतिक कूलिंग सिस्टम फेल हो जाता है यानि पसीना आना बंद हो जाता है।
> पशुचरना.पीना बिलकुल कम अथवा छोड़ देता है।
> पशुके हृदय की धड़कन और श्वसन दर तेज हो जाती है। पशु मुँह खोलकर और जीभ बाहर निकालकर सांस लेने लगता है। इस कारण पशु हांफ ता हुआ प्रतीत होता है।
> आँखकी श्लेष्मा झिल्ली गहरे लाल रंग की हो जाती है।
> दुधारूपशु का दूध उत्पादन गिर जाता है।
> तापघातकी अंतिम अवस्था में पशु मूर्छित और शक्तिहीन होकर जमीन पर पसर जाता है।
तापघात का प्राथमिक उपचार
> सर्वप्रथमशरीर के तापमान का नियंत्रित करने के लिए पशु को छायादार, ठंडे स्थान जहा पर्याप्त हवा का आवागमन होए पर रखना चाहिए।
> तापघातके दौरान बढे हुए पशु शरीर के तापमान को कम करने के लिए ठन्डे जल से स्नान कराएं, माथे पर बर्फ रखें और सूती कपडे की ठंडे पानी में भीगी हुई पट्टी को बदल बदल कर लगाएं।
> यदिकिसी पशुबाडेे में फ ोग्गर की सुविधा है तो तापघात से पीडि़त पशु को तुरंत पानी की बौछारों के बीच खड़ा कर देवे । जिससे पशु शरीर पर होने वाले ठंडे पानी के छिड़काव से तुरंत आराम मिले।
> ठंडेपानी में तैयार किया हुआ चीनी, भुने हुए जौ का आटा और थोड़ा नमक का घोल बराबर पिलाते रहना चाहिए। जो पशु को निर्जलीकरण की अवस्था से बचाये रखेगा।
> शरीरके तापमान को कम करने वाली औषधि का प्रयोग करना चाहिए।
> शरीरमें पानी एवं लवणों की कमी को पूरा करने के लिए इलेक्ट्रो लाइट फ्लड थैरेपी देनी चाहिए।
> प्राथमिकउपचार के बाद नजदीकी पशु चिकित्सालय से संपर्क कर पशु चिकित्सक को बुलाकर पूरा उपचार कराएं।
> तापघातसे पीडि़त संकर नस्ल की गायों की विशेष देखभाल की जानी चाहिए। तापघात के फलस्वरूप जो गाय उठने में असमर्थता दिखाए । उन्हें समय समय पर स्लिंग मशीन द्वारा खड़ी करे और पैरों की मालिश करते रहे।
यह भी करें पशुपालक
पशुओं को सुबह 9 बजे से शाम छह बजे तक छायादार स्थान जैसे पेड़ों के नीचे या पशुबाड़ों में रखा जाए। पशुबाड़ों में हवा का पर्याप्त प्रवाह हो। अधिक गर्मी होने पर पशुओं विशेषकर संकर जाति अथवा अधिक दूध देने वाले पशुओं के बाड़ों के दरवाजों खिड़कियों पर पाल लगाकर दोपहर के समय पानी का छिड़काव किया जाए। पशुओं को शाम के समय नहलाया जाए।
> पशुओंको दिन में कम से कम चार बार ठंडा, शुद्ध और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध करवाया जाए।
> सूखेचारे के साथ साथ कुछ मात्रा हरे चारे की दी जाए। जिससे पशुओं में बंद लगने की समस्या अथवा अन्य पाचन संबंधी बीमारियां न हों।
> भारीसामान उठाने वाले पशुओं को सुबह और शाम को
ही काम में लिया जाए और दोपहर के समय उन्हें आराम करने दिया जाए।
> पशुओंमें तापघात की स्थिति होने पर तत्काल उन्हें छायादार स्थान पर ले जाकर पूरे शरीर पर पानी डालना चाहिए। सिर पर ठंडे पानी से भीगा कपड़ा बारी बारी से रखा जाना चाहिए और पशु चिकित्सक को जल्दी से जल्दी दिखाना चाहिए।