गर्मियों में पशुओं की देखभाल (सभी तस्वीरें- हलधर)
मई-जून के महीनें में हमारे यहाँ वातावरण का तापमान अत्यधिक होता है। इसका सीधा असर पशुओ के उत्पादन पर पडता है। सामान्यत: गाय भंैसो का शारीरिक तापमान 101.5 से 102.50 फ ोरेनहाईट होता है। समतापी होने के कारण इनको अपने शरीर का तापमान बढते वातावरण के तापमान में भी सामान्य बनाये रखने हेतु अनुकूलतम ऊष्मा क्षय करना जरुरी है। यह ऊष्मा क्षय वातावरण के तापमान , हवा में नमी और हवा कि गति पर निर्भर करती है ।
तापघात
गर्मी में यदि पशु अपने शरीर का तापमान सामान्य बनाये रखने में विफल रहता है तो इसे तापघात कहते है। ऐसी स्तिथि में पशु का तापमान बढ जाता है और दुग्ध उत्पादन असामान्य रूप से कम हो जाता है। पशु बीमार हो जाता है। अधिक दूध उत्र्पदन करने वाले पशु इससे अधिक प्रभावित होते हैं। क्यूंकि, अधिक दूध देने वाले पशुओं में ऊष्मा का उत्पादन भी अधिक होता है।
तापघात के लक्षण
> तापघात से प्रभावित पशु सुस्त हो जाते है।
> पशु अपना सिर नीचा रखते है। मुहं खोलकर साँस लेते है ।
> मुहं से लगातार लार गिरती रहती है। लार गिरने से खनिज लवणों का क्षय होता है।
> पशु की श्वास गति और शरीर का तापमान बढ जाता है।
> पशु का दूध उत्पादन अचानक अत्यधिक गिर जाता है।
> पेशाब की मात्रा कम हो जाती है। नाक-नथुने सुख जाते है।
> अत्यधिक तापमान से मस्तिष्क पर असर पड़ता है। पशु की मौत भी हो जाती है।
बचाव के उपाय
आहार प्रबंधन : पशुओं को चारा-दाना रात्रि में या देर शाम को 7-8 बजे के आस-पास और सुबह जल्दी 5-6 बजे देवें । क्यूंकि, चारा खाने के बाद पशु के शरीर में ऊष्मा का उत्पादन होता है। अत: दिन में और विशेषकर दोपहर में चारा-दाना कतई नहीं देवें।
हरा चारा
पशुओं को अधिक से अधिक हरा चारा देवें । इससे शरीर को आवश्यक खनिज तत्व एवं पानी कि पूर्ती होती रहेगी और हरा चारा पचाने में भी आसान रहता है।
सूखे चारे की मात्रा
पशुओं के आहार में सूखे चारे की मात्रा कम रखनी चाहिये। क्योंकि , इनके पाचन से जो वाष्पशील वसा अम्ल बनते हैं उनसे उनसे अधिक ऊष्मा उत्पादन होता है। अत: आहार में दाने की मात्रा अधिक रखनी चाहिए।
खनिज लवण
पशु आहार में 40-50 ग्राम नमक और 40-50 ग्राम खनिज लवण और विटामिन अवश्य देवें।
पीने का पानी
पीने का पानी हमेसा शुद्ध, शीतल और हमेशा उपलब्ध होना चाहिये। पीने के पानी को गर्म स्थान पर नहीं रखे। दिन में 3-4 बार पानी पिलाएं।
आवास प्रबंधन
> पशुओं का बाढा खुला, हवादार होना आवश्यक है। ताकि, हवा कि गति बनी रहे। ताप घात का सबसे अधिक असर आद्र्रता अधिक होने पर होता है । अत: पशु शाला का ऊपर की छत के पास का भाग आवश्यक रूप से खुला होना चाहिए।
> पशु शाला में टाट बोरियां आदि भिगो कर लगनी चाहिए। पंखो और पानी के फ व्वारों का उपयोग भी तापमान नियंत्रण में किया जा सकता है।
> कूलर का उपयोग उसी स्तिथि में करे जब हवा आर पार जा सकती हो।
> पशु शाला की छत पर बचा हुआ चारा, फ ूस घास आदि दाल कर ठण्डी रखनी चाहिए।
> पशुओं को सुबह शाम नहलाना चाहिए। उनके सिर पर पानी अवश्य डालना चाहिए। दिन के समय ठंडे पानी की पट्टी सिर पर रखी जा सकती है।
> भैंसों में तापघात कि ज्यदा सम्भावना रहती है। क्योंकि, उनके शारीर का रंग काला और शारीर पर बाल भी कम होतें हैं। अत: उनको दिन में दो बार अवश्य नहलाना चाहिए। अगर संभव हो तो दिन के समय भैंसों को तालाब अथवा जोहड में छोडऩा चाहिए।