पशुओं में टिटनेस रोग: एक मौन घातक संक्रमण

नई दिल्ली 21-Oct-2025 01:29 PM

पशुओं में टिटनेस रोग: एक मौन घातक संक्रमण

(सभी तस्वीरें- हलधर)

डॉ. निखिल श्रृंगी, डॉ. पारमेष्ट विष्णु कुमार शर्मा, पशु विज्ञान महाविद्यालय, जोधपुर 
स्वस्थ पशु न केवल अधिक दूध, मांस और श्रम शक्ति प्रदान करते हैं। बल्कि, किसान की आय का भी प्रमुख स्रोत होते है। ऐसे में संक्रामक रोगों का समय पर नियंत्रण और रोकथाम पशु चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।  इन्हीं गंभीर रोगों में से एक है टिटनेस, एक ऐसा मौन घातक संक्रमण जो दिखने में मामूली चोट से शुरू होकर पूरे शरीर की नस प्रणाली को प्रभावित कर देता है। यह रोग क्लोस्ट्रीडियम टेटानी नामक जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है जोकि मिट्टी, गोबर और धूल में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। जब यह जीवाणु किसी गहरे अथवा गंदे घाव में प्रवेश करता है तो यह टॉक्सिन बनाता है जोकि मांसपेशियों में कठोरता, ऐंठन और अंतत: मृत्यु का कारण बन सकता है। यदि पशुओं का टीकाकरण, घावों की उचित देखभाल और स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए तो इस रोग से आसानी से बचा जा सकता है। 
टिटनेस रोग के कारण
यह रोग क्लोस्ट्रीडियम टेटानी जीवाणु के कारण होता है जो मिट्टी, धूल और पशुओं के गोबर में स्वाभाविक रूप से पाया जाता है और वर्षों तक जीवित रह सकता है। जब यह जीवाणु किसी घाव अथवा जख्म के संपर्क में आता है तो यह शरीर में प्रवेश कर जाता है और एक अत्यंत शक्तिशाली विष उत्पन्न करता है जो पशु की नस प्रणाली को प्रभावित करता है।
यह जीवाणु दो रूपों में पाया जाता है
सक्रिय या गुणक रूप: जो शरीर के अंदर तेजी से बढ़ता है।
बीजाणु रूप: जो मिट्टी अथवा धूल में लंबे समय तक जीवित रहता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी नष्ट नहीं होता है।
प्रसार
पशुओं में इस रोग का संचरण नुकीली वस्तु, तार, कील अथवा पत्थर से चोट लगने पर भी हो सकता है। यह रोग पशुओं में पूंछ काटने, बधियाकरण और ऑपरेशन के दौरान स्वच्छता न रखने पर भी फैल सकता है। टिकाकरण अथवा इंजेक्शन के दौरान दूषित सुइयों के उपयोग से भी यह रोग फैल सकता है। स्थानीय उपचार के दौरान कई बार पशुपालक घाव पर कीटाणुनाशक लगाने के बजाय मिट्टी अथवा राख लगाते है जिससे इस रोग का संक्रमण और तेजी से फैलता है। घोड़े इस रोग के प्रति अत्यंत संवेदनशील होते हैं और किसी भी छोटी चोट या दूषित सुई के कारण संक्रमित हो सकते है। पशुओं में इस रोग की शुरुआत कटी-फटी चमड़ी अथवा छोटे-से घाव से होती है जो देखने में सामान्य लगती है। लेकिन, वही आगे चलकर पूरे शरीर को प्रभावित कर देती है। इसलिए हर छोटे घाव की भी सही तरह से सफाई और कीटाणुनाशक उपचार अत्यंत आवश्यक है।
यह है लक्षण 
पशुओं में टिटनेस के लक्षण धीरे-धीरे प्रकट होते हैं और कुछ ही दिनों में गंभीर रूप धारण कर लेते हैं। प्रारंभ में यह रोग सामान्य मांसपेशियों के अकडऩ से शुरू होता है जो आगे चलकर पूरे शरीर में ऐंठन और कठोरता उत्पन्न करता है। मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं। 
इस रोग की शुरुआत मांसपेशियों के अकडऩे से होती है जिससे पशु के शरीर में कंपन होने लगते हैं और मुंह से लगातार लार गिरती रहती है।
जबड़ों की जकडऩ  होने के कारण पशु चारा निगलने या खाने में असमर्थ हो जाता है। गले की मांसपेशियों में ऐंठन होने से पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है। शरीर का तापमान सामान्य से थोड़ा अधिक हो जाता है।
ऽ पशु के जबड़े पूरी तरह से बंद हो जाते हैं इसी कारण इस रोग को लॉकजा भी कहा जाता है। इस रोग से संक्रमित होने पर पशु खड़ा नहीं हो पाता और गिरकर ऐंठन की अवस्था में चला जाता है।
उपचार एवं नियंत्रण
पशुओं में टिटनेस रोग के लक्षण दिखाई देने पर तुरन्त अपने नजदीकी पशु चिकित्सालय से ईलाज करवायें। टिटनेस टॉक्सॉइड  का टीका नियमित रूप से लगवाना चाहिए। यह टिका सक्रिय प्रतिरक्षा प्रदान करता है व रोग से पूर्णत: बचाव करता है।
्रपशु के शरीर पर यदि कोई घाव अथवा चोट हो तो उसे रोगाणुनाशक दवा से तुरंत साफ करना चाहिए । ताकि मिट्टी अथवा गोबर के संपर्क से संक्रमण न फैले। नवजात बछड़ों में नाल के माध्यम से संक्रमण न फैले इसके लिए नाभि को लाल दवा या बीटाडीन से अच्छी तरह साफ करना चाहिए। पशुओं में इंजेक्शन अथवा सर्जरी के समय पूर्ण स्वच्छता का पालन करें। संक्रमित पशुओं को शांत, अंधेरे और आरामदायक स्थान पर रखे ताकि ऐंठन और झटकों से बचाव हो सके। टिटनेस संक्रमित मरे हुए पशओं के गोबर, मल-मूत्र और चारे को जला देना चाहिए। साथ ही, सुरक्षा व्यवस्था हेतु संक्रमित चीजों को किसी गहरे गड्डे में गाड देना चाहिए।   


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