सूखे और मोटे चारे की उपयोगिता (सभी तस्वीरें- हलधर)
डॉ. अनिल कुमार लिम्बा, पशु चिकित्सा अधिकारी, पांचोडी, नागौर
देश में उत्तम कोटि की पशुधन सम्पदा है। लेकिन, पौष्टिक पशु आहार का अभाव होने के कारण प्रति पशु दूध, मांस आदि की उत्पादकता अत्यन्त कम है। प्राकृतिक आपदाओं के कारण पशुओं की आवश्यकता के अनुसार उसी अनुपात में हरे चारे की पैदावर सम्भव नहीं हो पा रही है। विशेषकर राजस्थान जैसे प्रान्त जहां अकाल से प्रभावित क्षेत्र सर्वाधिक है। जिसकी वजह से राज्य का पशुधन और उसकी उत्पादकता प्रभावित होती है। भयंकर सूखे की स्थिति में यहां का पशुधन दूसरे राज्यों में पलायन तक कर जाता है या फिर चारे के अभाव में मृत्यु का शिकार हो जाता है।्र
सूखे- मोटे चारे की विशेषताएँ
सूखे और मोटे चारे में नमी-पानी की मात्रा 10-15 प्रतिशत तक होती है। शुष्क और अद्र्धशुष्क प्रदेशों में यह सूखा चारा बहुतायत में उपलब्ध रहता है। सूखे और मोटे चारे में मुख्यता तूड़ी का उपयोग किया जाता है। किसी भी फसल के पकने के बाद उसका प्रमुख उत्पाद तूड़ी होती है, जो उसकी टहनीए डंठल आदि से मिलकर बनी होती है। मुख्यतया पशुओं के लिये गेहूँ और चावल की तूड़ी को सूखे चारे के रूप में उपयोग करते हैं। ज्वार, बाजरा, मक्का इत्यादि की कडवी भी सूखे चारे के पशु आहार में उपयोग लाई जाती है।
सूखे चारे का पोषक मान
इसमें नमी की मात्रा कम होती है (10-15 प्रतिशत)
कच्चा रेशा अधिक मात्रा में पाया जाता है (40-50प्रतिशत)
इनकी पोषकता 2-3 प्रतिशत प्रोटीन व 30-40 प्रतिशत कुल पोषक तत्व होते हैं।
इनमें फ ॉस्फोरस और कैल्शियम कम मात्रा में पाया जाता है । मृदा की अधिकता होती है।
सूखे चारे की उपयोगिता
सूखे चारे का उपयोग आहार की मात्रा बढ़ाने के लिये हरे चारे के साथ किया जाता है। सूखे चारे में कच्चा रेशा अधिक होता है, जिसकी उपयोगिता दुधारू पशुओं में दूध में वसा की मात्रा बढ़ाने में है। अकाल और हरे चारे के अभाव में यह पशुओं का मुख्य आहार होता है। हरा चारा अकाल के समय पशुओं को उपलब्ध नहीं हो पाता है। सूखा चारा अथवा मोटा चारा जैसे तूड़ी बहुतायत में उपलब्ध होती है । लेकिन, सूखा- मोटा चारा स्वादानुकूल नहीं होने से पशु रूचि से नहीं खा पाते हैं। यह पोषक तत्वों की न्यूनता के कारण पशु की शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर पाता है। अत: यह आवश्यक है कि बहुतायत में उपलब्ध इस मोटा चारे को ही इस प्रकार से उपचारित किया जाये कि यह पशु के लिये आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति कर सके।
चारा पौष्टिकता बढ़ाने की उपचार विधियाँ
भौतिक विधियां
चारा कुट्टी तकनीक : पशु उत्पादों की मात्रा और पोषकता इस पर निर्भर करती है कि पशु को अपने आहार से कितनी ऊर्जा उत्पादन के लिये मिल पाती है। मोटे और सूखे चारे को चबाने में पशु की काफी ऊर्जा व्यय हो जाती है। सही तरीके से चबा न पाने के कारण इस चारे की पाचकता भी कम हो जाती है। चारा कुट्टी तकनीक के द्वारा चारे को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। जिसके निम्न लाभ हैं
चबाने में खर्च होने वाले समय और ऊर्जा की बचत होती है।
डंठल आदि के रूप में बचे हुए चारे के व्यय को रोक सकते हैं।
चारे को छोट-छोटे टुकड़ों में काटने से उसकी सतह का क्षेत्रफल बढ़ जाता है। जिससे पशुओं को रूमेन में उपस्थित सूक्ष्म जीवों द्वारा उस चारे को पचाकर उसमें उपस्थित पोषक तत्वों को ज्यादा मात्रा में पशु शरीर को उपलब्ध करवाकर अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
इस तकनीक द्वारा सूखे चारे की पाचकता और पोषकता में बढ़ोतरी से उत्पादन में वृद्धि होती है।
सूखे चारे में रेत की मिलावट प्राय: अधिक होती है। इस कारण चारे की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इस स्थिति में चारा कुट्टी करने के बाद चारा छानने की मशीन द्वारा रेत को अलग कर कुट्टी पशु को देनी चाहिए।
मोटे - सूखे चारे का भाप द्वारा उपचार : सभी भौतिक विधियों में इस विधि का मोटे चारे की पाचकता बढ़ाने में सर्वोत्तम प्रभाव है। इस विधि में उच्च दाब पर भाप द्वारा मोटे और सूखे चारे को उपचारित किया जाता है। जिससे चारे में उपस्थित लिग्नों सेल्यूलोज/ लिग्नोहेमीसेल्यूलोज बंध का विघटन होता है जिससे चारे की पाचकता में वृद्धि होती है।
रासायनिक विधियाँ
रासायनिक विधि द्वारा सूखे चारे के उपचार का उद्देश्य चारे में उपस्थित लिग्नीन और दूसरे अघटक (सेल्यूलोज/ लिग्नोहेमीसेल्यूलोज) बंध को तोडना होता है जिससे यह घटक रूमन में उपस्थित सूक्ष्मजीवों को पाचन के लिए उपलब्ध हो सके।
सूखे चारे का क्षारीय उपचार: इसमें चारे में सोडियम हाईड्रॉक्साईड का विलयन (1.25 प्रतिशत सोडियम हाईड्रॉक्साईड का 1 लीटर को घोल प्रति 1 किग्रा सूखे चारे के लिये) मिलाया जाता है। जिससे उसकी खाने की योग्यता और पाचकता बढ़ जाती है।
अमोनिया द्वारा उपचार : इसमें चारे में अमोनिया अथवा अमोनिया का विलयन मिलाया जाता है। जिससे इसकी पौष्टिकता बढऩे के साथ ही कच्चे प्रोटीन की मात्रा भी बढ़ जाती है।
यूरिया द्वारा उपचार : सूखे चारे में प्रोटीन की मात्रा बहुत कम होती है और पचनीय प्रोटीन नगण्य होता है। अत: केवल सूखा चारा खिलाने से पशु को पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं मिल पाता है । उनकी उत्पादन क्षमता में कमी आ जाती है। यूरिया द्वारा सूखे चारे ;को उपचारित करने में उसकी पोषकता में वृद्धि होती है। यूरिया तकनीक द्वारा उपचारित चारा नर्म होने के कारण पशु चाव से खाते हैं। साथ ही, सूखे चारे के प्रोटीन मान में 2-3 गुणा वृद्धि और पाचकता में 4 प्रतिशत तक वृद्धि होती है। इस तकनीक का यह लाभ है कि पशु के रूमन में उपस्थित सूक्ष्म जीव सीमित मात्रा में उपस्थित यूरिया को अमोनिया और इस अमोनिया को प्रोटीन में बदल देते हैं। जिससे यह प्रोटीन पशु को प्राप्त हो जाता है।
उपचार विधि: एक क्विंटल चारे को फ र्श पर इस प्रकार फैलाते हैं कि ऊंचाई 30 सेमी. से अधिक ना हो और चारा समान रूप में फैला हो। 4 किग्रा. यूरिया को 40.50 लीटर पानी में अच्छी प्रकार से घोलते हैं। इस यूरिया के घोल का छिड़काव चारे पर समान रूप से करते हैं और इसे अच्छी प्रकार से मिलाते हैं। पैरों द्वारा इस ढेर को भली प्रकार से दबाकर अन्दर की हवा निकाल देते हैं। पॉलिथीन से ढक देते हैं। इस उपचारित भूसे को लगभग तीन सप्ताह के लिये इसी अवस्था में छोड़ देते हैं । इस अवधि पश्चात् एक तरफ से ढेर को खोलकर पशुओं को खिलाते हैं। शुरू में अमोनिया की दुर्गन्ध की वजह से पशु इसे अच्छी प्रकार नहीं खा पाते हैं। परन्तु कुछ समय पश्चात् इसे चाव से खाने लग जाते हैं। इस उपचारित चारे को खिलाने से पशु के दूध उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
सम्पूर्ण आहार ईंट तकनीक
इस तकनीक में सूखे चारे का दाना मिश्रण के साथ मिलाकर संतुलित आहार बनाया जाता है। इस तकनीक का यह लाभ है कि पशु इसमें चारे और दाने का चुनाव करने के लिये स्वतंत्र नहीं होता है। अत: इस तकनीक में उन चारों का उपयोग आसानी से हो सकता है जिन्हें सामान्य अवस्था में पशु खाना पसन्द नहीं करता है। सम्पूर्ण ईंट का निर्माण बड़ी मशीनों के द्वारा किया जाता है। सर्वप्रथम चारे और दाना मिश्रण को भली प्रकार से मिलाया जाता है। फिर हाईड्रॉलिक दबाव के माध्यम से बडी इंट का रूप दे दिया जाता है। यह ईंट कम स्थान घेरती है और इनका परिवहन भी आसानी से किया जा सकता है। प्राकृतिक आपदाओं के समय जब हरे चारे का अभाव होता है। तब सम्पूर्ण आहार ईंट द्वारा पशु को संतुलित आहार देकर उसकी उत्पादकता में गिरावट रोकी जा सकती है।