जैविक अपनाने से आमदनी पहुंची 8 लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)खेती के आधुनिक तौर-तरीके के दम पर बदलाव की कहानी लिखने वाला यह किसान है देवी सिंह राव। देवी सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में समन्वित जैविक पद्धति को अपनाकर कृषिगत आमदनी का आंकड़ा पांच से 6 गुना तक बढ़ाने में सफलता हासिल की है। किसान देवी सिंह का कहना है कि पहले लाख से डेढ़ लाख रूपए की बचत खेती से देखने को मिलती थी। अब बचत का सालाना आंकड़ा 8 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। गौरतलब है कि किसान देवी सिंह डेढ़ हैक्टयर क्षेत्र में जैविक फसलों का उत्पादन ले रहे है। मोबाइल 81071-63978
खाम की मादड़ी, उदयपुर। समन्वित जैविक पद्धति से खेती करके किसान लाखों रूपए की बचत कर सकता है। यकीन नहीं है तो मिलिए किसान देवी सिंह राव से, जो डेढ़ हैक्टयर क्षेत्र में जैविक खेती करके सालाना 7-8 लाख रूपए का शुद्ध लाभ प्राप्त कर रहा है। किसान देवी सिंह का कहना है कि फसलें अब भी वहीं है। केवल किस्मों के साथ-साथ खेती के तौर-तरीकों में बदलाव किया है। इससे आमदनी 5-6 गुना तक बढ़ चुकी है। किसान देवी सिंह ने हलधर टाइम्स को बताया कि मेरे पास साढे तीन हैक्टयर जमीन है। उन्होंने बताया कि पिताजी के खेती संभालते थे। इस कारण वर्ष 1981 में हायर सैकेण्डरी करने के बाद रोजगार की तलाश में अहमदाबाद चला गया। वहां दो साल नौकरी करने के बाद दुग्ध का व्यवसाय करने लगा। करीब तीन दशक तक गुजरात में रहा। माता-पिताजी के नहीं रहने के बाद गांव लौट आया और खेती संभालने लगा। उस समय खेती-बाड़ी का ज्यादा अनुभव मुझे नहीं था। गांव के मिलने वालों से खेती से तौर-तरीके समझकर परम्परागत फसलो का उत्पादन लेता रहा। समय के साथ कृषि विज्ञान केन्द्र, बडग़ांव के कृषि वैज्ञानिकों से सम्पर्क हुआ। यहां से बागवानी का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद सब्जी फसल उत्पादन से जुड़ गया। पहले तो प्रचलित विधियों से ही सब्जी फसलों का उत्पादन लेता रहा। लेकिन, जैविक सब्जियों की बढ़ती मांग देखते हुए धीरे-धीेरे खेतों को जैविक बनाना शुरू किया। वर्तमान में डेढ़ हैक्टयर क्षेत्र में जैविक फसलों का उत्पादन ले रहा हॅू। सिंचाई के लिए मेरे पास दो कुएं, एक ट्यूबवैल है। जल बचत के लिए फव्वारा सिंचाई और पाइपलाइन का उपयोग कर रहा हॅू। परम्परागत फसलो में मक्क्का, गेहूं, मूंगफली, उड़द-मूंग का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलो से लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। वहीं, दो बीघा क्षेत्र में गन्ने के उत्पादन से डेढ़ से पौने दो लाख रूपए की बचत मिल जाती है।
सब्जी फसलो में यह
उन्होंने बताया कि आधा-आधा बीघा क्षेत्र में कं द फसलों का उत्पादन लेता हॅू। इस तरह करीब ढाई से तीन बीघा क्षेत्र में सब्जी फसलों का उत्पादन कर रहा हॅू। सब्जी फसलों में रतालू, हल्दी, चुकंदर, अरबी, शकरकंद, प्याज, नागरपेठा, कद्दू और लौकी की फसल शामिल है। कददू में विलुप्ता के कगार पर पहुंचा चाकी कद्दू भी शामिल है। जो बार में 120-160 रूपए प्रति किलो के भाव से बिक्री होता है। इन फलसो से सालाना ढ़ाई से तीन लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
दुग्ध से आय
उन्होंने बताया कि जैविक खेती शुरू करने के साथ ही पशुधन की संख्या बढ़ा दी थी। वर्तमान में छोटे बड़े करके दस पशुधन मेरे पास है। इनमें तीन गाय और एक भैंस दुधारू है। प्रतिदिन 20 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है। इसमें से एक समय का दुग्ध डेयरी को बिक्री कर देता हॅू। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। वहीं, घरेलू आवश्यकता पूर्ति के बाद शेष रहने वाले दुग्ध से घी तैयार करके बिक्री करता हॅू। उन्होंने बताया कि पशु अपशिष्ट से वर्मी खाद और वर्मी वॉश तैयार करके स्वयं भी उपयोग ले रहा हूॅ।
स्टोरी इनपुट: डॉ. दीपक जैन, केवीके, उदयपुर