अंडे का फंडा: खरीदी 4 बीघा जमीन, कमाई पहुंची 8 लाख सालाना
(सभी तस्वीरें- हलधर)हंसराज कड़कनाथ और प्रतापधन नस्ल का पालन कर रहे है। प्रतिदिन 800-1000 हजार रूपए की शुद्ध बचत हंसराज को मिल रही है। मुर्गीपालक हंसराज की माने तो इस व्यवसाय में बचत ज्यादा है। गौरतलब है कि किसान हंसराज लाल-सफेद चंदन के साथ बकरीपालन और पशुपालन से भी जुड़े हुए है। जिससे सालाना 7-8 लाख रूपए की बचत इनको मिल रही है। मोबाइल 99506-55242
परबती, झालावाड़। मुर्गी और अंडे की पहेली भले ही समझ से परे रहे। लेकिन, अंडे की गणित आपको मुर्गीपालक हंसराज की सफलता से समझ आ सकती है। कभी आपने सोचा कि खेती-बाड़ी के साथ अंडो का उत्पादन आपको क्या दें सकता है, अगर नहीं तो समझिए। एक अंडा आपको 40 रूपए प्रतिदिन की आय दें सकता है। मुर्गीपालक हंसराज की माने तो अंडो के उत्पादन से प्रतिदिन 800-1000 हजार रूपए की आमदनी मिल रही है। इसके अलावा सिरोही नस्ल का बकरीपालन भी लाभकारी साबित हो रहा है। गौरतलब है कि किसान हंसराज समन्वित खेती से अपना लाभ बढ़ा रहे है। किसान हंसराज ने हलधर टाइम्स को बताया कि पैतृक रूप से मेरे पास 6 बीघा जमीन थी। इससे मुनाफा कम मिलता था। इस स्थिति को देखते हुए वैज्ञानिक तौर-तरीकों से फसलों का उत्पादन लेना शुरू किया। साथ ही, संतरे का बगीचा भी स्थापित किया। लेकिन, मौसम के साथ नहीं देने से बगीचा अलाभकारी साबित हुआ। इसके बाद पशुपालन के साथ जैविक खेती पर जोर दिया। इससे कृषि लागत में कमी आई। साथ ही, आमदनी का ग्राफ भी बढ़ा। छोटी-छोटी बचत से कृषि में नवाचार अपनाता गया। इसी का परिणाम है कि कृषि जोत का आकार बढ़कर 12-13 बीघा पहुंच गया है। 4-5 बीघा जमीन की खरीदी है। गौरतलब है कि किसान हंसराज जैविक गेहंू को 3500 रूपए प्रति क्विंटल की दर से बिक्री कर रहे है। उन्होंने बताया कि गेहंू के अलावा मक्का, सोयाबीन, लहसुन, प्याज, सरसों, चना आदि फसलों का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से सालाना दो से तीन लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
2 बीघा में चंदन
उन्होंने बताया कि आय बढ़ाने के लिए दो बीघा क्षेत्र में लाल और सफेद चंदन के पौधें लगाए हुए है। यह पौधें आठ साल के हो चुके है। अब पौधों की मोटाई बढऩे लगी है। इसके अलावा खेत की मेड़ पर शीशम के पौधें लगाए हुए है। इस साल की शीशम की बिक्री से 1.65 लाख रूपए की आमदनी मिली है। इसके अलावा कटहल के पौधे भी लगे हुए है।
लाभकारी मुर्गी-बकरीपालन
उन्होने बताया कि आय बढाने के लिए दो साल पहले मुर्गी और बकरीपालन को अपनाया। वर्तमान में प्रतापधन नस्ल की 100 और कड़कनाथ नस्ल की 100 मुर्गियां मेरे पास है। इसके अलावा 13 सिरोही नस्ल की बकरियों के साथ बकरीपालन शुरू किया था। वर्तमान में इनकी संख्या 30 से ज्यादा है। इससे भी लाख से सवा लाख रूपए की सालाना आमदनी मिल जाती है।
पशुपालन से भी लाभ
उन्होने बताया कि जैविक खाद के लिए गौपालन से जुडा हुआ हॅू। 6 गिर गाय मेरे पास है। प्रतिदिन 30-32 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिल रहा है। दुग्ध का विपणन 50 रूपए प्रति लीटर की दर से डेयरी को कर रहा हूॅ। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। वहीं, थोड़ी बचत मिल जाती है। उन्होंने बताया कि पशु अपशिष्ट से वर्मी कम्पोस्ट सहित दूसरे जैविक आदान तैयार कर रहा हॅू। वर्मी कम्पोस्ट की 8 बेड मेरे पास है। जैविक खाद की बिक्री से भी 25-30 हजार रूपए की आमदनी हो जाती है।