मचान से सांध रहे लक्ष्य पर निशाना, सकल आय 11 लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)आय बढ़ाने का फलसफा सीखना है तो मिलिए किसान घनश्याम यादव से। जिन्होने अमरूद और सब्जी उत्पादन में सफलता पाने के बाद बिना पॉली हाउस के खीरा फसल के उत्पादन को संभव बना दिया है। उनका कहना है कि पॉली हाउस और ओपन फील्ड में पैदा होने वाले खीरे के उत्पादन में थोड़ा अंतर हो सकता है। लेकिन, ओपन फील्ड क्रॉप में ज्यादा रसायन छिड़काव की जरूरत नहीं रहती है। गौरतलब है कि किसान घनश्याम खेती से 10-11 लाख रूपए का शुद्ध मुनाफा प्राप्त कर रहे है। साथ ही, जैविक गेहूं का कारवां भी आगे बढ़ा रहे है। मोबाइल 63762-23863
सुहाना, कोटा। खेत में मचान बनाकर लघु-सीमांत किसान भी अपनी आमदनी को बढ़ा सकते है। जी हां, गुणवत्तापूर्ण बेलदार सब्जी फसल उत्पादन के लिए यह तरीका किसानों को काफी रास आ रहा है। बिना पॉली हाउस के ओपन फील्ड में खीरे की खेती करने वाले जिले के इकलौते किसान है घनश्याम यादव। जिन्होने एक एकड़ क्षेत्र में खीरे की फसल लगाई है। हालांकि, उत्पादन और आय का गणित समझना अभी बाकी है। लेकिन, बागवानी और सब्जी फसलों के उत्पादन से किसान घनश्याम को सालाना 10-11 लाख रूपए की आमदनी मिल रही है। किसान घनश्याम ने हलधर टाइम्स को बताया कि मेरे पास 25 बीघा जमीन है। सिंचाई के लिए ट्यूबवैल है। वहीं, जल बचत के लिए सूक्ष्म सिंचाई का उपयोग कर रहा हॅू। उन्होने बताया कि सीपीएड़ करने के बाद पहले तो नौकरी की दौड़ में शामिल हुआ। सफलता नहीं मिली तो वर्ष 1995 में खेती से जुड़ गया। उन्होने बताया कि समय के साथ खेती में कई बदलाव किए है। इससे आमदनी का आंकड़ा काफी बढ़ चुका है। उन्होंने बताया कि पहले बीघा भर जमीन में सोयाबीन उत्पादन से 8-10 हजार रूपए की आमदनी मिलती थी। लेकिन, सब्जी फसलो के उत्पादन से जुडऩे के बाद बचत का आंकड़ा तीन गुना तक बढ़ गया है। उन्होंने बताया कि अमरूद का बगीचा स्थापित करने के बाद से आय के आंकड़े में बूम देखने को मिला है। खेती से अच्छी आमदनी को देखते हुए अब परम्परागत फसलो से आय बढाने के लिए भी अलग-अलग उन्नत किस्मों का उपयोग कर रहा हॅू। इस वर्ष सोयाबीन की तीन नई किस्मों को खेतों में जगह दी है। इनमें एनआरसी-138, ब्लैक बोल्ड और 9560 शामिल है। इसके अलावा परम्परागत फसलोंं में जैविक गेहंू और धनिया की खेती करता हॅू। इन फसलों से सालाना दो से ढ़ाई लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। गौरतलब है कि किसान घनश्याम ने खीरे की फसल के चारो ओर कद्दू की बेल भी लगाई है। ताकि, उत्पादन का खर्च कद्दू की फसल से निकल जाएं।
आलू-खरबूज से अच्छा लाभ
उन्होंने बताया कि कृषि अनुसंधान केन्द्र, कोटा से सम्पर्क होने के बाद आलू और खरबूजे की खेती को अपनाया। इन फसलों में अच्छी बचत देखने को मिलती है। उन्होंने बताया कि 4 बीघा क्षेत्र में आलू का उत्पादन लेता हॅू। इससे 35-40 हजार रूपए प्रति बीघा की आमदनी मिल जाती है। वहीं, डेढ़ से दो बीघा क्षेत्र में खरबूज के उत्पादन से 70-80 हजार रूपए की शुद्ध बचत मिल जाती है।
मिश्रित बागवानी से लाखों
उन्होंने बताया कि आय बढ़ाने के लिए 6 साल पहले 13 बीघा क्षेत्र में अमरूद का बगीचा स्थापित किया। बगीचे में अमरूद के 1100 पौधें लगे हुए है। अमरूद के उत्पादन से सालाना साढे पांच से 6 लाख रूपए की आमदनी मिल रही है। इसके अलावा 22 पौधें चीकू, 40-45 पौधें संतरा, 20-22 पौधें नींबू के लगाएं हुए है। इनसे भी थोड़ी बहुत आमदनी हो जाती है।
पशुधन को खिलाते है नेपियर
उन्होने बताया कि पशुधन में मेरे पास आधा दर्जन पशुधन है। इनमें 1 भैंस और दो गाय है। जबकि, शेष छोटे पशु है। उन्होनें बताया कि उत्पादित दुग्ध घर में काम आ जाता है। वहीं, पशु अपशिष्ट जैविक कीटनाशक और वर्मी खाद बनाने के काम आ जाता है। पशुधन के लिए नेपियर घास लगाई हुई है।
स्टोरी इनपुट: डॉ. डीएल यादव, एआरएस, कोटा