रिटायर सूबेदार ने खेत में बसाया श्री नगर, सकल आय 20 लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)फौजी जब माटी को वंदन करता है तो खेतों में श्रीनगर बस जाता है। सेब नहीं, लेकिन, अक्षय आय अक्षय फल के बगीचें से भी प्राप्त हो जाती है। भारतीय सेना से रिटायरमेंट के बाद खेतों में श्रीनगर बसाने वाले ऐसे ही किसान है सूबेदार दलबीर सिंह यादव। जिन्होंने बूंद-बूंद से घट भरे की तर्ज पर बागवानी फसलों का रू ख किया। इसी का परिणाम है कि 24 बीघा में से साढ़े 19 बीघा क्षेत्र में आंवला, अनार, बीलपत्र और नींबू का बगीचा लहलहा रहा है। किसान दलबीर बताते है कि सारा खर्चा निकालने के बाद सालाना 18-20 लाख रूपए की औसत बचत मिल जाती है। मोबाइल 94601-32148
सियाखोह, खैरथल-तिजारा। भारतीय फौज से रिटायरमेंट के समय अपने दिल-दिमाग में श्रीनगर के सेब बगीचों की तस्वीर लेकर घर लौटा था। सोच लिया था कि खेतों में सेब नहीं तो कोई दूसरी बागवानी फसल ही उगाऊंगा। इस कार्य में मेरी उद्यानिकी विभाग ने मदद की। दो दशक पहले खेत में आंवला और नींबू का बगीचा स्थापित किया। बाद में अनार और बेलपत्र भी शामिल हो गए। यह कहना है कि 17 साल भारतीय फौज में नौकरी करने वाले सूबेदार दलबीर सिंह यादव का। जो वर्तमान में बागवानी फसलों से सालाना 18-20 लाख रूपए की आमदनी प्राप्त कर रहे है। किसान दलबीर ने हलधर टाइम्स को बताया कि 5वीं पास करने के बाद ही फौज में भर्ती हो गया। 17 साल नौकरी के बाद सूबेदार के पद से सेवानिवृत हुआ। मेरी अधिकांश सर्विस श्रीनगर में ही रही। वहां पर किसानों को सेब की खेती करते देखकर मन ही मन खुश होता था। यही मैं खेती में कुछ अलग करने का जज्बा मिला। उन्होंने बताया कि खेतों को श्रीनगर बनाने में पहले उद्यानिकी विभाग बाद में कृषि विज्ञान केन्द्र, बानसूर के कृषि वैज्ञानिकों का साथ मिला। इस तरह सकल 24 बीघा जमीन में से साढ़े 19 बीघा रकबा बागवानी फसलों के अन्तर्गत आ चुका है। शेष जमीन में परिवार की आवश्यकता पूर्ति के लिए परम्परागत जैविक फसलो का उत्पादन ले रहा हॅू। उन्होने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास ट्यूबवैल है।
बागवानी से 20 लाख
उन्होंने बताया कि बागवानी फसलों से सालाना 18-20 लाख रूपए की शुद्ध बचत मिल जाती है। उन्होंने बताया कि बागवानी फसलों में नींबू, आंवला, बेलपत्र और अनार के पौधें लगे हुए है। सभी फसलों से बंपर उत्पादन मिल रहा है।
ऐसे समझे श्रीनगर की कहानी
उन्होने बताया कि गांव लौटकर बगीचा स्थापना के लिए उद्यानिकी विभाग से सम्पर्क किया। अधिकारियों ने मुझे क्षेत्र की जलवायु के हिसाब से आंवला और नींबू का बगीचा स्थापित करने के लिए मार्गदर्शित किया। वर्ष 1999 में आंवल और नींबू के पौधें लगाएं। इसके बाद आंवला की खेती का दायरा बढ़ा दिया। वर्तमान में साढे सात बीघा क्षेत्र में आंवले के 400 पौधें लगे हुए है। जो 24 साल के हो चुके है। उन्होंंने बताया कि आंवला के साथ स्थापित नींबू का बगीचा पौधें खराब निकल जाने के कारण उखाडऩा पड़ा। इसके बाद 200 पौधें बील पत्र के लगाएं। बील पत्र से सालाना ढ़ाई से पौने तीन लाख रूपए की बचत मिल जाती है। इसके बाद अनार और नींबू की खेती का रूख किया। 8 साल पहले नींबू और आंवला का बगीचा स्थापित किया। उन्होंने बताया कि तीन बीघा क्षेत्र मे लगे अनार के बगीचे से सवा लाख रूपए बीघा की आमदनी मिल रही है। वहीं, नींबू की फसल से सालाना ढ़ाई से तीन लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
सैकड़ो को रोजगार
उन्होने बताया कि फल तुड़ाई और बिक्री के दौरान सैकड़ो मजदूरों को बगीचे से रोजगार मिल जाता है। वर्ष भर में अलग-अलग कार्यो से 800-900 लेबर को दिहाड़ी के रूप मेें रोजगार मिल जाता है।
स्टोरी, डॉ. प्रेमचंद गढ़वाल, डॉ. सुनील कुमार, केवीके, बानसूर