सहकार अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा का हिस्सा

नई दिल्ली 03-Dec-2024 09:36 AM

सहकार अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा का हिस्सा

(सभी तस्वीरें- हलधर)

देश में सहकारिता की एक विस्तृत परंपरा तो रही है। लेकिन, आजादी से पहले सहकारिता जिस प्रकार आर्थिक आंदोलन का माध्यम बनी, उसे और भी अधिक ऊर्जा और शक्ति के साथ आगे बढाने का कार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के कार्यकाल में शुरू हुआ। वर्ष 2021 में केंद्र सरकार ने सहकारिता का स्वायत्त मंत्रालय स्थापित कर सहकारिता के लिए अवसरों के सारे बंद दरवाजे खोल दिए। महज तीन वर्षों में देश में सहकारिता को मजबूत बनाने के लिए जितने कदम उठाये गये हैं, उससे भारत अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ सहकारी क्षेत्र में भी विश्वमित्र बनने की दिशा में आगे बढ रहा है।
अब भारत का सहकारिता आंदोलन एक ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने जा रहा है। देश आज से 30 नवंबर तक दिल्ली में अंतर्राष्ट्री य सहकारी गठबंधन (आईसीए) महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी करने को तैयार है। आईसीए के 130 वर्ष के इतिहास में यह पहला मौका है, जब भारत इसका आयोजक होगा। इस सम्मेलन से संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष 2025 का भी शुभारंभ होगा। आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन की मेजबानी वैश्विक सहकारी आंदोलन में भारत के नेतृत्व की स्वीकार्यता का प्रतीक है। केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद से निरंतर समाज के पिछड़े, अति पिछड़े, गरीब और विकास की दौड़ में पीछे छूट चुके लोगों के उत्थान की दिशा में कदम उठाये जा रहे हैं। सरकार मानती है कि यह परिवर्तन सहकारिता आंदोलन को मजबूत किये बिना नहीं हो सकता। यह आयोजन ऐसे समय में हो रहा है जब भारत ने सहकारी आंदोलन के पुनरुत्थान की दिशा में बड़े कदम उठाये हैं। कमजोर पड़ रही सहकारी संस्थाओं के सशक्तीकरण से लेकर उनके व्यापार को सरल बनाना, समितियों में पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के लिए मजबूत प्रशासनिक, नीतिगत और कानूनी उपाय किये गए हैं। प्रधानमंत्री ने सहकार से समृद्धि का मंत्र दिया है, जिसका उद्देश्य देश की सहकारी संस्थाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलंबी बनाना है। देश में सहकारी तंत्र का विस्तार कर एक नया आर्थिक मॉडल खड़ा किया जा रहा है, जो भारत की अर्थव्यवस्था को पांच ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को पूरा करने में सहायक साबित होगा। दुनिया के अन्य देशों के लिए यह एक विकास मॉडल के रूप में सामने आएगा। भारत में प्राचीन काल से ही सहकारिता का एक समृद्ध इतिहास रहा है। इसके संकेत कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी मिलते हैं। दक्षिण भारत में भी 'निधियोंÓ का प्रचलन सहकारी वित्तीय व्यवस्था की झलक प्रदान करता है। पाश्चात्य विचारों से प्रभावित कई अर्थशास्त्रियों ने 21वीं सदी की शुरुआत में ही यह चर्चा प्रारंभ कर दी थी कि सहकारिता का विचार आधुनिक युग में कालबाह्य हो गया है। यह स्पष्ट मानना है कि भारत जैसे 140 करोड़ की जनसंख्या वाले देश में किसी 3 करोड़, 5 करोड़ अथवा 10 करोड़ जनसंख्या वाले देशों का आर्थिक मॉडल उपयुक्त नहीं हो सकता। देश को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने के लिए, आर्थिक विकास के सभी मानकों में वृद्धि के साथ-साथ यह आवश्यक है कि 140 करोड़ लोगों की समृद्धि हो, सभी व्यक्तियों को काम मिले और उन्हें सम्मान से जीने का अधिकार भी प्राप्त हो, और यह केवल सहकारिता के माध्यम से ही संभव है। देश के इतिहास में इसके कई उदाहरण भी हैं। अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक ने पिछले 100 वर्ष में 100 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है। बैंक न केवल अपने एनपीए को शून्य पर बनाये रखने में सफल रहा है बल्कि उसके पास 6,500 करोड़ रुपये से अधिक की जमाराशि भी है। अमूल भी सहकारी आंदोलन का उल्लेखनीय उदाहरण है। वर्तमान में, इससे 35 लाख परिवार सम्मान और रोजगार प्राप्त कर रहे हैं, और इन परिवारों की महिलाएं अग्रिम पंक्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। परिणामस्वरूप, अमूल का वार्षिक कारोबार 80,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है। दिलचस्प बात यह है कि इन महिलाओं में से किसी ने भी 100 रुपये से अधिक का प्रारंभिक निवेश नहीं किया था। सहकारिता आंदोलन को मजबूती प्रदान करने की दिशा में सरकार ने 60 से अधिक पहलों पर काम शुरू किया है। दशकों की उपेक्षा और प्रशासनिक कुरीतियों के परिणामस्वरूप अधिकांश प्राथमिक कृषि ऋण समिति (पैक्स) आर्थिक रूप से कमजोर और निष्क्रिय हो गई थी। सरकार ने पैक्स के कार्यक्षेत्र में विस्तार के साथ-साथ उन्हें आर्थिक रूप से व्यवहार्य बनाने का काम शुरू किया। इनके लिए नए बाय-लॉ अपनाने से अब पैक्स डेयरी, मत्स्य पालन, अन्न भंडारण, जन औषधि केंद्र आदि जैसे 30 से अधिक विविध क्षेत्रों में व्यावसायिक गतिविधियां संचालित करने में सक्षम हुए हैं। तीन नई राष्ट्रीय स्तर की बहु-राज्यीय सहकारी समितियों के गठन से सहकारिता का क्षितिज और व्यापक हुआ है। राष्ट्रीय सहकारी निर्यात, ने विदेशी बाजारों तक सहकारी उत्पादों की पहुंच को सुगम बनाया तो राष्ट्रीय सहकारी जैविक लिमिटेड ने जैविक प्रमाणीकरण और बाजार का मंच तैयार किया। भारतीय बीज सहकारी समिति लिमिटेड ने उन्नत बीजों की सुलभता सुनिश्चित की है। वित्तीय सहायता, कर राहत और इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम से सहकारी चीनी मिलें समृद्ध हो रही हैं। सहकारी बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए सहकारी संस्थाओं के पैसे को सहकारी बैंकों में ही जमा करने पर बल दिया गया है। राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के माध्यम से सहकारी समितियों को पारदर्शी बनाने और प्रक्रिया को आसान बनाने से देश के सहकारी रूप से कम विकसित क्षेत्रों में सहकारी समितियों की पहुंच बनी है। इसके अतिरिक्त सरकार एक समग्र और व्यापक नई राष्ट्रीय सहकारिता नीति पर भी काम कर रही है। आईसीए महासभा और वैश्विक सम्मेलन 2024 का मंच भारत के सहकारी आंदोलन द्वारा वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने, आर्थिक सशक्तीकरण, लैंगिक समानता सुनिश्चित करने और संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) की प्राप्ति केलिए भारत के अभूतपूर्व प्रयासों को रेखांकित करेगा। सम्मेलन का एक मुख्य एजेंडा एक ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण है, जो सहकारी समितियों को उभरती चुनौतियों का सामना करने और अवसरों के उपयोग के लिए सशक्त बनाए।
जब हम इस ऐतिहासिक आयोजन की मेजबानी करने जा रहे हैं, दुनिया भर के सहकारी नेताओं, नीति निर्माताओं और मानव विकास के पक्षधरों का आह्वान है कि आइए! हम वैश्विक सहकारी आंदोलन को मजबूत करने के लिए : सीखने, साझा करने और सहकार की भावना के साथ एकजुट हों। सहकार से समृद्धि के प्रति भारत की प्रतिबद्धता सामूहिक समृद्धि, सातत्यता और साझा प्रगति जैसे मूल्यों पर आधारित उज्ज्वल भविष्य का संकल्प है।
अमित शाह, केंद्रीय गृह-सहकारिता मंत्री सहकार अर्थव्यवस्था की  मुख्यधारा का हिस्सा 
 


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