विज्ञान, कला और सौंदर्य का संगम टोपियरी

नई दिल्ली 05-Dec-2025 01:24 PM

विज्ञान, कला और सौंदर्य का संगम टोपियरी

(सभी तस्वीरें- हलधर)

टोपियरी, उद्यान सजावट की एक प्राचीन परंतु अत्यंत आकर्षक कला है।  जिसमें पौधों को इस प्रकार काट-छाँट किया जाता है कि वह किसी निर्धारित आकार अथवा रूप में ढल जाएँ। यह रूप प्राकृतिक ;जैसे पक्षी, जानवर, मनुष्य आदि, अथवा ज्यामितीय (जैसे गोला, घन, पिरामिड, शंकु) भी हो सकता है। इसे जीवित मूर्तिकला कहा जाता है। क्योंकि, इसमें पौधों को जीवित रहते हुए ही कलात्मक मूर्तियों में रूपांतरित किया जाता है। टोपियरी कला न केवल सौंदर्य प्रदान करती है। बल्कि, बागवानी के वैज्ञानिक सिद्धांतों का अनुप्रयोग भी प्रदर्शित करती है। टोपियरी बागवानी का एक ऐसा सुंदर संगम है जिसमें विज्ञान, कला और सौंदर्य तीनों का समावेश होता है। 

टोपियरी के लिए उपयुक्त पौधें 

>>जो सदाबहार हों।  जिनकी पत्तियाँ छोटी और शाखाएँ सघन और लचीली हों।

>>पौधे तेजी से बढऩे वाले होने चाहिए। पत्तियाँ छोटी, हरी अथवा पीली रंग की होनी चाहिए।  बार-बार छँटाई सहन करने की क्षमता हो।  अधिक संख्या में पाश्र्व कोंपलें उत्पन्न करें। प्रमुख पौधे जो टोपियरी के लिए उपयुक्त है, फ़ाइकस, मोरपंखी एड्यूरांटा, यूजेनिया, सिजिलियम ,क्लेरोडेन्ड्रम, कसुअरीना आदि। 

टोपियरी निर्माण की तकनीक 

>>स्थल और मिट्टी का चयन: टोपियरी निर्माण के लिए खुली धूप वाले स्थान का चुनाव करना चाहिए। दोमट मिट्टी जिसमें जैविक पदार्थ भरपूर हो, इसके लिए उपयोगी है ।

>>पौधारोपण:  पौधों को कतारों में लगाएँ। जिनके बीच उचित दूरी 30 गुना 45 सेमी. हो। पौधे स्वस्थ और रोगमुक्त होना चाहिए।

>>आकार निर्धारण:  आकृति का चयन स्थान और उद्देश्य के अनुसार करें । सार्वजनिक उद्यानों में जानवर, पक्षी, प्रतीकात्मक आकृतियाँ और घरों मेंरू गोला, कोन, पिरामिड, अर्धवृत्त आदि।

>>छँटाई और आकार देना: ये चरण टोपियरी का सबसे महत्वपूर्ण भाग है। इसमें पौधे को विशेष दिशा अथवा रूप में बढऩे के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। प्रारंभ में पौधों को वांछित दिशा में बढऩे देना चाहिए। आकार बनने के बाद हर 20-30 दिन पर हल्की छँटाई करें। जंगरोधी तार अथवा लोहे के फ्रेम का उपयोग करके जटिल आकृतियाँ (हाथी, मोर, खरगोश, अक्षर आदि) बनाई जाती हैं। पौधे की प्रमुख शाखा को फ्रेम के मुख्य दिशा में मोड़ें। साइड शाखाओं को खाली स्थानों की ओर निर्देशित करें। शाखाओं को हल्के तार अथवा प्लास्टिक क्लिप से बाँधें। पौधा फ्रेम की सतह तक आने लगे तो बढ़वार को मनचाही दिशा में फैलाएँ। पौधा धीरे-धीरे फ्रेम को ढकता है और उसके आकार में ढल जाता है। फ्रे म के उपयोग से आकार निश्चित रहता है और पौधा जल्दी आकार ग्रहण करता है। छँटाई में आसानी होती है। जैसे ही पौधा पूर्ण रूप से फ्रेम को ढक लेए फ्रेम स्थायी अथवा अस्थायी रखा जा सकता है। कोन अथवा गेंद आकार के लिए गोलाकार कटर और कैंची का प्रयोग किया जाता है। 

रखरखाव

छँटाईरू: हर 15-30 दिन में हल्की छँटाई करें।

उर्वरक: प्रति माह 100-150 ग्राम एन पी के (10:10:10) प्रति पौधा अथवा जैविक खाद दें।

सिंचाई: ग्रीष्म ऋ तु में नियमितए परंतु जलभराव से बचें।

कीट-रोग नियंत्रण: एफिड्स, मिलीबग्स आदि  नियंत्रण के लिए नीम तेल अथवा सुरक्षित कीटनाशक प्रयोग करें।

डॉ. मोनिका जैन , आरएनटी कृषि महाविद्यालय, कपासन- चित्तौडग़ढ़


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