भारत में कृषि मशीनीकरण की क्रांति: बढ़ेगी उत्पादकता, घटेगा खर्च
(सभी तस्वीरें- हलधर)कृषि उपकरणों पर माल और सेवा कर (जीएसटी) को 12-18 फीसदी से घटाकर 5 फीसदी कर दिए जाने के कारण इनकी कीमतें कम हो गई हैं। इससे भारतीय कृषि में मशीनीकरण को आवश्यक प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद है। खेतों में काम हाथ से करने के बजाय मशीनों से करना मानव श्रम पर निर्भरता कम करने के लिए आवश्यक है, जिसकी वैसे भी ग्रामीण क्षेत्रों से लगातार हो रहे पलायन के कारण कमी होती जा रही है। यही नहीं उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के वास्ते कृषि कार्यों में अधिक सटीकता सुनिश्चित करने के लिए भी यह आवश्यक है। इससे कृषि कार्य में होने वाली थकान भी कम होती है, जो ग्रामीण युवाओं को खेती से दूर कर रही है। कम जीएसटी की वजह से ट्रैक्टरों की कीमतों में हॉर्सपावर रेंज के आधार पर 40,000 रुपये से 60,000 रुपये तक की गिरावट आई है। पावर टिलर लगभग 12,000 रुपये तक सस्ते हो गए हैं। पराली जलाने की समस्या को कम करने के लिए जिन मशीनों को बढ़ावा दिया जा रहा है, जैसे स्ट्रॉ रीपर, सुपर सीडर और हैप्पी सीडर, उनकी कीमतों में 10,000 रुपये से 20,000 रुपये तक की कटौती हुई है। सबसे बड़ी 1,87,000 रुपये से अधिक की गिरावट बड़े आकार के हार्वेस्टर-कम्बाइन की कीमतों में आई है, जिनका इस्तेमाल ज्यादातर सेवा प्रदाता गेहूं और धान की कटाई के लिए करते हैं। दरअसल, जीएसटी सुधार के लाभ कृषि मशीनरी तक ही सीमित नहीं हैं। यह कृषि से जुड़े कई क्षेत्रों जैसे पशुपालन, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, मधुमक्खी पालन और कृषि वानिकी में इस्तेमाल होने वाली कई चीजों (इनपुट) को अपने दायरे में समेटते हैं। इनमें जैव कीटनाशक, जैव उर्वरक, सूक्ष्म पोषक तत्त्व और ट्यूबवेल चलाने और अन्य कृषि कार्यों में इस्तेमाल होने वाले सौर ऊर्जा उपकरण शामिल हैं। कोल्ड स्टोर और अन्य प्रकार के पर्यावरण-नियंत्रित गोदामों के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले उपकरण, साथ ही जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के परिवहन के लिए रेफ्रिजरेटेड वाणिज्यिक मालवाहक वाहनों में इस्तेमाल होने वाले उपकरण भी सस्ते हो गए हैं। कीमतों में इन कटौतियों के साथ-साथ केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही उदार सब्सिडी और कृषि मशीनरी खरीदने के लिए संस्थागत ऋण की आसान पहुंच ने किसानों के लिए इन यांत्रिक उपकरणों तक पहुंच को बढ़ाया है। इस उपाय के लाभार्थियों में स्वयं सहायता समूह, कृषि स्टार्टअप और कस्टम-हायरिंग केंद्र भी शामिल हैं, जो किसानों को मशीन किराये पर देते हैं अथवा किसानों के खेतों पर ठेके पर काम करते हैं।

कृषि यंत्रीकरण के आर्थिक लाभों का मूल्यांकन विभिन्न अध्ययनों द्वारा किया गया है और उन्हें काफी महत्त्वपूर्ण पाया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि फसलों की बोआई और पौध पोषक तत्वों के उपयोग के लिए उपयुक्त मशीनों का उपयोग करके बीज और उर्वरक जैसे महंगे निवेश पर होने वाले खर्च में 15-20 फीसदी की कमी की जा सकती है। इसके अलावा, जब मशीनों के माध्यम से बोआई की जाती है और बीजों को मिट्टी में सही गहराई और समान अंतराल पर रखा जाता है, तो फसल का अंकुरण सामान्यत: 10-25 फीसदी अधिक होता है। अनुमान है कि किसी कार्य को मशीन से करने में लगने वाला समय पारंपरिक तरीकों की तुलना में 20 से 30 फीसदी कम होता है। बीज, उर्वरक और पौध संरक्षण रसायनों सहित सभी नकद निवेशों के उपयोग से प्राप्त शुद्ध लाभ, यंत्रीकृत खेती में कहीं अधिक पाया गया है। अब जरूरत इस बात की है कि कृषि उत्पादकता को बेहतर बनाने के लिए भू-स्थानिक प्रोग्रामिंग और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस जैसी नवीन और अत्याधुनिक तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए।