धैर्य, सौन्दर्य और सृजन की कला- बोनसाई

नई दिल्ली 03-Nov-2025 11:58 AM

धैर्य, सौन्दर्य और सृजन की कला- बोनसाई

(सभी तस्वीरें- हलधर)

बोनसाई सजावटी बागवानी की एक विशिष्ट और सजीव कला है।  जिसमें पौधों को इस प्रकार प्रशिक्षित किया जाता है कि वे आकार में छोटे रहेंए परंतु उनका स्वरूप पूर्ण विकसित वृक्ष जैसा दिखाई दे। बोनसाई वृक्ष का छोटा रूप है जिसमे वृक्ष के सारे गुण विद्यमान होते है   केवल बागवानी तकनीक नहीं, बल्कि, एक ध्यानमय और कलात्मक अभ्यास है। जो प्रकृति, धैर्य और सृजनशीलता का प्रतीक माना जाता है।


बोनसाई के उद्देश्य
प्रकृति को लघु रूप में प्रस्तुत करना, सीमित स्थान में विशाल वृक्ष की अनुभूति देना।
सौंदर्य और कलात्मक आनंद प्रदान करना।
धैर्य, अनुशासन और मनोयोग का अभ्यास।
शहरी परिवेश में हरियाली बनाए रखना।
वैज्ञानिक दृष्टि से पौधों की वृद्धि नियंत्रण का अध्ययन।


बोन्साई की मुख्य तकनीक 
पौधे का चयन:
बोन्साई बनाने के लिए ऐसा पौधा चुना जाता है जिनकी आयु लंबी होए जड़ प्रणाली जयादा गहरी न हो, पत्तियां छोटे आकार की और जो बार-बार छँटाई सहन करने योग्य हों। छोटे बर्तन में बढ़ सके, उपयुक्त पौधे, (फ ाइकस, जुनिपर, बोगनवेलिया, जेड प्लांट, पिपल, बरगद, कैमेलिया, जैस्मिन, पाइन, मेपल, एडेनियम, टैमरिंड आदि)
प्रवर्धन विधि: बोन्साई तैयार करने के लिए पौधे को बीज (धैर्य की आवश्यकता होती है क्योंकि धीरे बढ़ता है) अथवा वानस्पतिक प्रवर्धन जैसे कटिंग, लेयरिंग, ग्राफ्टिंग आदि (तेज़ और आसान तरीका) विधियों से तैयार किया जा सकता है।
गमले का चयन: बर्तन की गहराई और चौड़ाई पौधे की ऊँचाई के अनुपात में होनी चाहिए। मिट्टी निकालने के लिए नीचे ड्रेनेज होल होना चाहिए। गमला भरने केलिए मिट्टी का मिश्रण 40 प्रतिशत लाल मिट्टी, 30 प्रतिशत रेत या परलाइट और 30 प्रतिशत गोबर खाद या पत्ती खाद के अनुपात मे लिया जाता है।
छँटाई: बोन्साई कला में यह प्रक्रिया सबसे महत्वपूर्ण है।
जड़ छँटाई: पौधे की वृद्धि को नियंत्रित करने और छोटे आकार में रखने के लिए हर 1-2 वर्ष में जड़ों की छँटाई करें।
शाखा छँटाई: अनावश्यक शाखाओं को काटें। ताकि , उचित आकार बन सके। बढ़त की दिशा तय करने के लिए श्पिंचिंग  (नई कोपलों को हल्का तोडऩा) भी की जाती है।
तार लगाना: शाखाओं को मोडऩे और दिशा देने के लिए कॉपर अथवा एल्युमिनियम वायर का उपयोग किया जाता है। तार को बहुत कसकर न बाँधें। नहीं तो छाल को नुकसान हो सकता है। सामान्यत: 2-3 महीने में जब शाखाएँ स्थिर हो जाएँ तो वायर हटा दें ।
पुनप्र्रतिरोपण: हर 1-3 वर्ष में पौधे को नई मिट्टी और नए बर्तन में स्थानांतरित करें। पुरानी मिट्टी हटाकर नई पोषक मिट्टी भरें। यह जड़ों को नई ऊर्जा देता है और वृद्धि को नियंत्रित रखता है।
्सिंचाई:बोन्साई में नियमित लेकिन नियंत्रित सिंचाई आवश्यक है। मिट्टी हमेशा थोड़ी नम रहेए लेकिन पानी जमा न हो। गर्मियों में दिन में 2 बार, सर्दियों में दिन में 1 बार पर्याप्त होता है।
खाद प्रबंधन:  हर 15-20 दिन में जैविक खाद अथवा तरल पोषक तत्व दें। संतुलित नाइट्रोजन, फास्फ ोरस और पोटेशियम खाद 1:1:1 अनुपात में उपयोग करें। बढ़ते मौसम(बसंत और वर्षा ऋतु) में खाद देना सबसे उपयुक्त होता है।


आकार देना:
बोन्साई को विभिन्न शैलियो मे तैयार किया जाता हैंए जैसेरू
औपचारिक सीधा :
यह सबसे प्राकृतिक शैलियों में से एक है। जिसमें तना पूरी तरह सीधा होता है। शाखाएँ बाएँ और दाएँ बारी-बारी से निकलनी चाहिए। ताकि, पेड़ की आयु का आभास हो। निचले एक-तिहाई भाग की शाखाएँ हटा दी जाती हैं और शेष शाखाओं को नीचे की ओर झुकाया जाता है।
अनौपचारिक सीधा : यह शैली हल्के मुड़े हुए तने द्वारा पहचानी जाती है।  जो प्रकृति की कठोर परिस्थितियों को दर्शाता है। इसे तारों अथवा रस्सियों की सहायता से आसानी से बनाया जा सकता है। यह शैली शंकुधारी और पर्णपाती  दोनों प्रकार के वृक्षों के लिए उपयुक्त होती है।
तिरछी शैली: इसे यह नाम इसलिए दिया गया है क्योंकि तने का झुकाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। शाखाएँ क्षैतिज रूप में अथवा हल्की नीचे की ओर झुकी हुई होनी चाहिए। सतही जड़ें देखने में अस्थिर प्रतीत होती हैं।  लेकिन वे मिट्टी में मजबूती से जमी होती हैं।
पवन प्रभावित शैली: यह प्रकृति में बहुत दुर्लभ पाई जाती है। इस प्रकार के वृक्ष सामान्यत: पर्वतों या चट्टानों पर उगते हैं। तनाए शाखाएँ और टहनियाँ सभी एक ही दिशा में प्रशिक्षित की जाती हैं ताकि यह ऐसा प्रतीत हो जैसे उन पर तेज़ हवा या तूफ़ान का प्रभाव पड़ा हो।
शिला.आलिंगन शैली: यह एक आकर्षक परंतु चुनौतीपूर्ण कला है, जिसमें पौधा चट्टान को ऐसे जकड़े रहता है मानो उससे चिपका हो। चट्टान का आकार पौधे के अनुरूप होना चाहिए।  ताकि, दोनों का संयोजन स्वाभाविक लगे। इसे सामान्यत: कंकड़ों अथवा पानी वाले पात्र में लगाया जाता है। यह शैली पौधे की दृढ़ता और सुंदरता दोनों को दर्शाती है।
झाड़ू शैली : इस शैली में तना सीधा होता है, जो ऊपर जाकर कई शाखाओं में विभाजित हो जाता है। इसकी मुख्य विशेषता घना और बारीक शाखाओं वाला मुकुट होता है। 
कैस्केड शैली: बोन्साई की कैस्केड शैली उस प्राकृतिक वृक्ष का प्रतिनिधित्व करती है जो किसी ढलान अथवा खड़ी चट्टान की सतह पर नीचे की ओर बढ़ता है। इस शैली में तना पहले मिट्टी से ऊपर की ओर बढ़ता है। फिर अचानक नीचे की दिशा में मुड़ जाता है और अंतत: पात्र के निचले किनारे से भी नीचे तक पहुँच जाता है। सेमी.कैस्केडिंग- जहाँ तना गमले के आधार के पास या उसके ठीक नीचे तक होता है।  
वन शैली : वन शैली का बोन्साई एक ऐसी कला है जिसमें एक ही पात्र में कई वृक्षों को एक साथ लगाया जाता है। ताकि वे मिलकर एक छोटे से प्राकृतिक वन का दृश्य प्रस्तुत करें। यह शैली प्रकृति के उस दृश्य को दर्शाती है जहाँ कई पेड़ एक साथ उगते हैंए परंतु प्रत्येक का स्थान और आकार अलग.अलग होता हैए जिससे एक सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनता है।
संरक्षण और देखभाल: बोन्साई को अच्छी रोशनी, हवा और छाया का संतुलन चाहिए। कीट- रोग नियंत्रण के लिए समय-समय पर नीम तेल अथवा जैविक कीटनाशक छिड़कें।नियमित अवलोकन करें। जड़ सडऩ, पत्तों का पीला होना आदि लक्षणों पर तुरंत ध्यान दें। छँटाई नियमित रूप से करें। ताकि , पौधे का आकार बना रहे। पुन: रोपण हर 2-3 वर्ष में करें। 
डॉ. मोनिका जैन 
आरएनटी कृषि महाविद्यालय, कपासन, चित्तौडग़ढ़ 


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