पौधशाला की तैयारी
(सभी तस्वीरें- हलधर)
खासकर बागवानी से संबंधित पौधों की मांग बढऩे से यह व्यवसाय तेजी से बढ़ रहा है। ग्रामीण इलाकों में सब्जियों के पौधों की भी खासी मांग रहती है। गोभी, टमाटर, मिर्च, पपीता अथवा केला आदि को सीधे खेत में लगाने से परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं । इसलिए इन्हें पहले पौधशाला में तैयार किया जाता है।
स्थान- पौधशाला की जगह थोड़ी ढलान वाली होनी चाहिए। ताकि, क्यारियों में पानी नहीं रुके। साथ ही, वहां पर्याप्त सूर्य की रोशनी का प्रबंध होने चाहिए। अच्छी रोशनी और हवा से पौधौं का विकास तेजी से होता है।
मिट्टी और जलवायु- पौधशाला के लिए साधारणत: उपजाऊ दोमट मिट्टी होनी चाहिए। जिसका पीएच मान 5.5 से 6.5, पीएच मान जमीन का ऊसर अथवा अम्लीय होने का पैमाना हो। इसके बीच खेती अच्छी रहती है। अच्छी मिट्टी की गहराई 70 से 80 मिमी के बीच होनी चाहिए।
पानी की व्यवस्था- पौधशाला में पौधों को पानी की बार-बार आवश्यकता होती है। इसलिए उस क्षेत्र में जहां साफ पानी हो और समय-समय पर मिलता रहे, पौधशाला वहीं स्थापित करनी चाहिए।
उर्वरक की आवश्यकता- पौधशाला के लिए गोबर की खाद, पत्ती की खाद और उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है। यह खाद- उर्वरक उस क्षेत्र में जहां पौधशाला स्थापित करनी है, उचित मात्रा में उपलब्ध होने चाहिए।
मातृ वृक्ष- पौधशाला में स्वस्थ और अच्छे मातृ पौधों का विशेष स्थान होता है। मातृ पौधे जिसके संकुर से नये पौधे बनाने हो, स्वस्थ और सही गुणों वाले होने चाहिए। मातृ पौधे किसी अच्छी पौधशाला से खरीदकर लगाने चाहिए।
बीज की क्यारियां- बीज क्यारियां पौधशाला का वह स्थान है । जहां बीज से पौधे तैयार किये जाते हैं। इस कार्य को उठी हुई, ऊंची, क्यारियां खुले स्थान में बनाई जानी चाहिए। प्रत्येक 2-3 वर्षों में इसे बदलते रहना चाहिए।
क्यारियों के लिए खाली स्थान- एक आदर्श पौधशाला में कुछ खाली स्थान अवश्य ही रखा जाना चाहिए, जिससे कि समय-समय पर पौधशाला में बीजारोपण अथवा क्यारियों की अदला-बदली की जा सके।
पैकिंग स्थान- पौधशाला में पैकिंग एक बहुत जरूरी काम है। पौध के बेचने अथवा दूरदराज के क्षेत्रों में भेजने से पहले पैकिंग की जाती है। जहां तक सम्भव हो, पैकिंग क्षेत्र कार्यालय के समीप हो, जिससे पैकिंग के लिए आवश्यक सामग्री, पॉलीथीन बैग, रस्सी, मॉस घास, सरकंडा घास, नामपत्र, पुआल आदि आसानी से पहुंचाई जा सके।
सिंचाई की व्यवस्था- सिंचाई के लिए व्यवस्था विशेष स्थान पर होनी चाहिए। सिंचाई के लिए आधुनिक पौधशाला में कुहासा तकनीक, छपकाव विधि अथवा छिड़काव प्रणाली की व्यवस्था होनी चाहिए।
खाद का गड््ढा- पौधशाला के किसी दूर के कोने में खाद का गड्ढ़ा होना चाहिए। जगह-जगह खाद के गड्डे होने से पौधशाला के आकर्षण और सुन्दरता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
पौधशाला का प्रबंधन - छोटे पौधों को पानी की अत्यंत आवश्यकता होती है। नाजुक पौधों को गर्मियों में 2 दिन और सर्दियों में 10-12 दिन के अंतराल पर पानी देना चाहिए। क्यारियों में पानी के निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। ड्रिप सिंचाई प्रणाली बहुत जरूरी है।
पोषण- पौधों की अच्छी बढ़वार के लिए शुरू में क्यारियों में खाद के अतिरिक्त 25 किग्रा प्रति हैक्टयर की दर से यूरिया देना चाहिए।
खरपतवार नियंत्रण- पौधशाला में खरपतवार छोटे-छोटे पौधों को काफी नुकसान पहुंचा सकते हैं। उथली निराई-गुड़ाई करके पौधशाला को सदैव ही खरपतवार रहित रखना चाहिए। आवश्यकतानुसार किसी खरपतवारनाशी का भी उपयोग किया जा सकता है।
पौध सुरक्षा- पौधशाला के पौधों को प्राकृतिक आपदा से बचाया जाना आवश्यक होता है। गर्मियों और सर्दियों में घास,पुआल आदि का छप्पर अथवा पॉलीघर बनाकर पौधों की सुरक्षा की जा सकती है।