प्राकृतिक खेती के आदान - प्राकृतिक खेती के चार स्तंभों- बीजामृत, आच्छादन,जीवामृत (सभी तस्वीरें- हलधर)
बजरंग लाल ओला, डॉ सुनील कुमार, डॉ सुशील कुमार शर्मा, डॉ पीके राय, कृषि विज्ञान केन्द्र, गूंता-बानसूर, अलवर
प्राकृतिक खेती के चार स्तंभों- बीजामृत (सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा बीजोपचार), जीवामृत और घनजीवामृत (खाद का सर्वोत्तम विकल्प जो लाभदायक जीवाणुओं को बढ़ाता है), आच्छादन (फसल अवशेष से मिट्टी की सतह को ढकना) और वाफ्सा (मिट्टी में हवा और नमी को बरकरार रखना) को अपनाकर किसान खेती लागत को कम कर सकते हैं। इस विधि के तहत फसल विविधिकरण पर जोर दिया जाता है और मुख्य फसल के साथ फसल बढ़वार के लिए भूमि में नाइट्रोजन की उपलब्धता बनाए रखने हेतु दलहनी फसलें लगाने पर बल दिया जाता है। देसी गाय के गोबर और मूत्र पर आधारित विभिन्न आदानों के प्रयोग से देसी केंचुओं की संख्या में वृद्धि कर भूमि की जल धारण करने की शक्ति को बढ़ाया जाता है, जो अंतत: भूमि की उर्वरा शक्ति को पुनर्जीवित करता है। फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए स्थानीय वनस्पतियों के साथ लहसुन और हरी मिर्च का प्रयोग किया जाता है।
बीजामृत (बीज अमृत)
बुवाई करने से पहले बीजों का संस्कार अथवा संशोधन करना बहुत जरूरी है। इसके लिए बीजामृत बहुत ही उत्तम है। बीजामृत द्वारा शुद्ध हुए बीज जल्दी और ज्यादा मात्रा में उगते हैं। जड़ें तेजी से बढ़ती हैं। पौधे, भूमि द्वारा लगने वाली बीमारियों से बचे रहते हैं और अच्छी प्रकार से पलते-बढ़ते हैं। जीवामृत की भांति ही बीजामृत में भी वही चीजें डाली हैं जो हमारे पास बिना किसी कीमत के मौजूद हैं।
100 किलोग्राम बीज के लिए आवश्यक सामग्री
देशी गाय का गोबर-5 किग्रा.
गोमूत्र- 5 लीटर
चूना या कली- 250 ग्राम
पानी-20 लीटर
खेत की मिट्टी मुट्ठी भर
इन सभी पदार्थों को पानी में घोलकर 24 घंटे तक रखें। दिन में दो बार लकड़ी से इसे हिलाना है। इसके बाद बीजों के ऊपर बीजामृत डालकर उन्हें संस्कार अथवा संशोधन करना है। उसके बाद छाया में सुखाकर फिर बुवाई करनी है।
जीवामृत
जीवामृत एक अत्यधिक प्रभावशाली जैविक खाद है जिसे गोबर के साथ पानी मे कई और पदार्थ जैसे गौमूत्र, बरगद अथवा पीपल के नीचे की मिटटी, गुड़ और दाल का आटा मिलाकर तैयार किया जाता है। जीवामृत पौधों की वृद्धि और विकास के साथ-साथ मिट्टी की संरचना सुधारने में काफी मदद करता है । यह पौधों में अनेक रोगाणुओं से सुरक्षा करता है और पौधों की प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाने का कार्य करता है, जिससे पौधे स्वस्थ बने रहते हैं तथा फसल से बहुत ही अच्छी पैदावार मिलती है।
जीवमृत बनाने की सामग्री
प्लास्टिक का एक ड्रम (लगभग 200 लीटर)
देशी गाय का गोबर-10किलो
पुराना गौमूत्र-10 लीटर
गुड-1-2 किलो
एक मुट्ठी बरगद या पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी
दाल का आटा/बेसन-1-2 किलो
ढकने का कपड़ा -1
पानी-180 लीटर
जीवामृत निर्माण की विधि
सबसे पहले एक प्लास्टिक बड़ा ड्रम लिया जाता है जिसे छायां में रखकर दिया जाता है। इसके बाद 10 किलो देशी गाय का ताजा गोबर, 10 लीटर पुराना गोमूत्र, 1-2 किलोग्राम किसी भी दाल का आटा/बेसन (अरहर, चना, मूंग, उड़द आदि का आटा), 1-2 किलो पुराना सड़ा हुआ गुड़ और एक मु_ी बरगद अथवा पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी को 180 लीटर पानी में अच्छी तरह से लकड़ी की सहायता से मिलाया जाता है। अच्छी तरह मिलाने के बाद इस ड्रम को कपड़े से इसका मुह ढक दें। इस घोल पर सीधी धूप नही पडऩी चाहिए, अगले दिन भी इस घोल को फिर से किसी लकड़ी की सहायता से दिन में दो अथवा तीन बार हिलाया जाता है। लगभग 5-6 दिनों तक प्रतिदिन इसी कार्य को करते रहना चाहिए। लगभग 6-7 दिन के बाद, जब घोल में बुलबुले उठने कम हो जाये तब समझ लेना चाहिए कि जीवामृत तैयार हो चुका है। जीवामृत का बनकर तैयार होना ताप पर भी निर्भर करता है। अत: सर्दी में थोड़ा ज्यादा समय लगता है। किन्तु गर्मी में 2 दिन पहले तैयार हो जाता हो जाता है।
जीवामृत का प्रयोग
फ सल को दी जाने वाली प्रत्येक सिंचाई के साथ 200 लीटर जीवामृत का प्रयोग प्रति एकड़ की दर से उपयोग किया जा सकता है, अथवा इसे अच्छी तरह से छानकर बूंद-बूंद या स्पिं्रकलर सिंचाई के माध्यम से भी प्रयोग कर सकते है, जो कि एकड़ क्षेत्र के लिए पर्याप्त होता है, छिड़काव के लिए 10 से 20 लीटर तरल जीवामृत को 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।
घन जीवामृत
घनजीवामृत एक अत्यन्त प्रभावशाली जीवाणुयुक्त सूखी खाद है जिसे देशी गाय के गोबर में कुछ अन्य चीजें मिलाकर बनाया जाता है। यह विधि भी बिल्कुल जीवामृत बनाने की तरह ही है इसमें जब जीवामृत तैयार हो जाता है तब इसे गाय के गोबर के साथ मिलाकर 48 से लेकर 72 घंटे तक छाया में विघटित होने के लिए रखा जाता है । इसके बाद यह खेत में प्रयोग करने के लिए तैयार हो जाता है। अथवा इसे बनाने के लिये 100 किग्रा देसी गाय के गोबर को, 2 किग्रा गुड़, 2 किग्रा दाल का आटा और 1 किग्रा सजीव मिट्टी (पेड़ के नीचे की मिट्टी अथवा जहां रासायनिक खाद न डाली गयी हो) डाल कर अच्छी तरह मिश्रण बना लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा गोमूत्र डालकर अच्छी तरह गूंथ लें । ताकि घन जीवामृत बन जाए। जीवामृत और घन जीवामृत दोनों को ही खेत में बुवाई से पहले मिट्टी में अच्छी तरह से मिला दिया जाता है। इसके बाद खेत में लाभदायक केंचुए जो मिट्टी के अंदर रहते हैं वह मिट्टी के ऊपर आ जाते हैं जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है और इससे मिट्टी की उर्वराशक्ति में काफी हद तक सुधार होता है। इसके साथ-साथ उत्पादन व फसल उपज की गुणवत्ता भी इनके प्रयोग से काफी अच्छी हो जाती है।