बदला खेती का तरीका, मुनाफा 45 हजार कच्चा बीघा

नई दिल्ली 26-Sep-2024 02:36 PM

बदला खेती का तरीका, मुनाफा 45 हजार कच्चा बीघा

(सभी तस्वीरें- हलधर)

गौरतलब है कि किसान दानाराम ने दशक पूर्व एक बीघा क्षेत्र से सब्जी फसलो का उत्पादन लेना शुरू किया था। वर्तमान में एक से डेढ़ हैक्टयर क्षेत्र में फार्मपौंड पानी के सहारे सब्जी फसलों का उत्पादन ले रहे है। साथ ही, परम्परागत फसलों के साथ पशुपालन से भी इनकों अच्छी आमदनी हो रही है। मोबाइल 99504-43635
मंड़ाभोपा, जयपुर। नौकरी करते हुए आपकी तनख्वा बढे ना बढ़े। लेकिन, खेती में आय बढौत्तरी के लिए फसल उत्पादन के तौर-तरीकों में बदलाव करना ही काफी है। आइए, आपको  किसान दानाराम नटवाडिया से रूबरू करवाते है। दानारामअ ने लो-टनल तकनीक से सब्जी फसलो का उत्पादन लेना शुरू किया और आमदनी का ग्राफ दोगुना कर दिखाया। किसान दानाराम अब एक कच्चे बीघा से 45-50 हजार रूपए की बचत ले रहे है। जबकि, पहले जमीन से 3 लाख रूपए की बचत मिलती थी। किसान दानाराम ने हलधर टाइम्स को बताया कि दशक पहले बीघा भर क्षेत्र से सब्जी फसलों का उत्पादन लेना शुरू किया। मुनाफा अच्छा मिला तो सब्जी फसल का दायरा बढ़ाता चला गया। इसी का परिणाम है कि टमाटर और ककड़ी की फसल से अच्छी आमदनी होने लगी है। उन्होंने बताया कि 10वीं पास करने के साथ ही खेती से जुड़ गया। पहले परम्परागत फसलों का उत्पादन लेता रहा। लेकिन, बाद में आमदनी बढ़ाने के लिए सब्जी फसलों का उत्पादन करना शुरू कर दिया। जो अब भी बदस्तूर जारी है। गौरतलब है कि किसान दानाराम के साथ 4 हैक्टयर जमीन है। उन्होंने बताया कि खेती को तकनीक के सांचे में ढालने के बाद खेती कभी घाटे का सौदा साबित नहीं हुई। छोटा ग्रीन हाउस कही जाने वाली लो-टनल से जायद सब्जी फसलों के उत्पादन में बढौत्तरी देखने को मिली है। फल की गुणवत्ता और आय के आंकडे में भी काफी सुधार आया है। इसके बाद से ही खेतों में इस तकनीक का दायरा बढा रहा हॅू। गौरतलब है कि किसान दानाराम ने अपनी एक से डेढ़ हैक्टयर जमीन को सब्जी फसलों के नाम कर दिया है। इससे प्रति कच्चा बीघा 45-50 हजार रूपए की आमदनी मिल रही है। उन्होंने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास ट्यूबवैल और दो फार्मपौंड है। इस कारण अब सिंचाई की कोई समस्या नहीं रही है।  
इन सब्जियो का उत्पादन
उन्होंने बताया कि सब्जी फसलो में टमाटर और जायद में ककड़ी की फसल शामिल है। टमाटर की बुवाई एक हैक्टयर में और ककड़ी की बुवाई डेढ़ हैक्टयर क्षेत्र में करता हॅू। उन्होंने बताया कि पहले पिताजी परम्परागत तौर तरीकों से फसलों का उत्पादन लेते थे। इस कारण रोग-कीट की समस्या बनी रहती थी। वहीं, उत्पादन में भी नुकसान उठाना पड़ता था। लेकिन, अब प्लास्टिक मल्च, लो-टनल और ड्रिप सिंचाई के उपयोग से फसल उत्पादन में बढौत्तरी देखने को मिल रही है। गौरतलब है कि पिछले एक दशक से सब्जी फसलों का उत्पादन कर रहा है।
परम्परागत फसलो का उत्पादन
उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों में बाजरा, ग्वार, सरसों, जौ और गेहूं की फसल शामिल है। इन फसलों से खर्च निकालने के बाद 3 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
पशुधन से भी आय
पशुधन में मेरे पास 8 भैंस और 4 गाय है। प्रतिदिन 35-40 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिल रहा हैं। दुग्ध का विपणन डेयरी को कर रहा हॅू। भैंस का दुग्ध 75-80 लीटर प्रति लीटर की दर से कर रहा हॅू। इससे 50-60 हजार रूपए मासिक की बचत मिल रही है। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग कम्पोस्ट खाद बनाने में कर रहा हॅू।


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