गुरूजी ने पढ़े खेत, कमाई पहुंची 10 लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)जिससे खेती से बचत का सालाना आंकड़ा 8-10 लाख रूपए तक पहुंच गया है। किसान विशनाराम ने बताया कि शिक्षक पद से रिटायर होने के बाद मैने खेतों में जान भरना शुरू किया। परम्परागत फ सलों के उत्पादन में वैज्ञानिक तौर-तरीकों का समावेश किया। साथ ही, पशुंधन का कुनबा बढ़ाया। वहीं, सब्जी उत्पादन से भी जुड़ा। इससे आमदनी का आंकड़ा पहले से काफी बढ़ गया है। मोबाइल-96727-27278
तारातरा, बाड़मेर। जब आमदनी बढ़ाने का जुनून चढ़ जाता है तो रास्ते की मुश्किलें मायने नहीं रखती। कुछ ऐसे ही हौसलों के साथ खेती में नवाचार कर रहा है किसान विशनाराम नेहरा। इस किसान के पास जमीन का रकबा ज्यादा है। लेकिन, पानी की मार के चलते 30-35 बीघा क्षेत्र में फसल का उत्पादन ले रहे है। इससे सालाना 8-10 लाख रूपए की आमदनी हो रही है। गौरतलब है कि किसान विशनाराम शिक्षक पद से रिटायर होने के बाद खेती में नवाचार कर रहे है। किसान विशनाराम ने हलधर टाइम्स को बताया कि हायर सैकण्डरी करने के साथ ही शिक्षक पद नौकरी लग गई। इस कारण खेती पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाया। लेकिन, रिटायर होने के बाद पूरा समय खेती को दे रहा हॅू। इसके सकारात्मक परिणाम भी खेतों में देखने को मिल रहे है। सभी फसलो का अच्छा उत्पादन मिलने लगा है। गौरतलब है कि किसान विशनाराम के पास जोत का आकार तो बड़ा है। लेकिन, सिंचाई पानी की उपलब्धता कम है। उन्होने बताया कि मेरे पास 120 बीघा जमीन है। इसमें से 30-35 बीघा क्षेत्र में फसलो की बुवाई करता हॅॅू। उन्होने बताया कि खरीफ फसलों में बाजरा, ग्वार, मूंग और मोठ का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से 2 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। जबकि, रबी में जीरा और मूंगफली के उत्पादन से 4-5 लाख रूपए की आमदनी हो जाती है।
किचन गार्डन में सब्जी उत्पादन
उन्होंने बताया कि परिवार की आवश्यकता पूर्ति के लिए किचन गार्डन भी स्थापित किया हुआ है। इसमें मौसम के आधार पर सब्जी फसलों की बुवाई कर देता हॅू। परिवार की आवश्यकता पूर्ति के बाद शेष रहने वाली सब्जियों की बिक्री गांव में ही कर देता हॅू। इससे सालाना लाख से ड़ेढ़ लाख रूपए की आय मिल जाती है। इसके अलावा 25 पेड़ नींबू के है। इनके उत्पादन से दो से सवा दो लाख रूपए की आमदनी हो जाती है।
घी से आय
उन्होने बताया कि पशुधन में मेरे पास 4 भैंस है। प्रतिदिन 20-25 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिल रहा है। गांव शहर से दूर होने के कारण दुग्ध का विपणन नहीं करता हॅू। पशुपालन से बचत निकालने के लिए घरेलू आवश्यकता पूर्ति के बाद शेष रहने वाले दुग्ध से घी तैयार करता हॅू। सालाना 10-12 टिन घी का उत्पादन होता है। इससे लाख से सवा लाख रूपए की सालाना बचत हो जाती है।
स्टोरी इनपुट: डॉ. रावताराम, डॉ. जोरावर सिंह ज्यानी, डॉ. भारती गुर्जर, पशुपालन विभाग, बाड़मेर