बरसाती तरबूज से सालाना 7 लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)खेत बारानी है। इस कारण खेतों में दाने का उत्पादन रामभरोसे है। पहले भी यही स्थिति थी, अब भी है। लेकिन, बरसात में तरबूज उत्पादन के नवचार ने परिवार की आर्थिक समृद्धि बढ़ाने का काम किया है। एक एकड़ से शुरू हुई तरबूज खेती का रकबा 7 एकड़ क्षेत्र तक पहुंच चुका है। इससे सालाना 7 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। वहीं, परम्परागत फसल और बकरीपालन से 8 लाख रूपए की आय मिल रही है। यह कहना है कि किसान वीर विक्रम सारण का। जिन्होने पांच साल पहले खरीफ में तरबूज उगाना शुरू किया। मोबाइल 70233-72162
नाड़ी, बाड़मेर। अपने हाथों अपनी किस्मत लिखने का जज्बा दिखाने वाला किसान है वीर विक्रम सारण। सारण ने बरानी जमीन को रसीली बनाने का काम किया है। इससे आमदनी का अंाकड़ा 10-15 लाख रूपए सालाना तक पहुंच गया है। गौरतलब है कि किसान विक्रम ने खेतों से आय बढ़ाने के लिए खरीफ के मौसम में तरबूज की फसल लेना शुरू किया। मुनाफा अच्छा मिला तो बरसाती तरबूज के उत्पादन में बाड़मेर जिले के किंग बन गए। इससे 7 लाख रूपए की अतिरिक्त आमदनी किसान विक्रम को मिल रही है। किसान विक्रम ने बताया कि परिवार के पास स्थानीय नाप के अनुसार 76 एकड़ जमीन है। परिवार की स्थिति सामान्य होने के चलते बीएसटीसी करने के बाद स्नातक की। इसके बाद खेतों से जुड़ गया। उन्होने बताया कि जमीन बारानी होने के चलते पहले बकरीपालन को अपनाया। बाद में तरबूज की खेती में भाग्य आजमाया। यहीं से परिवार का आर्थिक चक्र घूमाने का जरिया मिल गया। उन्होने बताया कि पांच साल पहले बरसाती तरबूज का उत्पादन लेकर देखा। बाजार में फलों की बिक्री हुई और भाव अच्छे मिले तो अगले साल इस फसल का रकबा बढा दिया। वर्तमान में 7 एकड़ क्षेत्र में बरसाती तरबूज का उत्पादन ले रहा हॅू। उन्होने बताया कि पहली अच्छी बारिश होने के साथ ही बीज की बुवाई कर देता हॅॅू। इससे अक्टूबर से नवम्बर तक उत्पादन मिलता रहता है। उन्होने बताया कि तरबूज की फसल से सालाना 7 लाख रूपए की आमदनी हो रही है।
परम्परागत से 5 लाख
उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों के उत्पादन में भी थोड़ा बदलाव किया है। बाजरा , मूंग और मोठ की उन्नत किस्मों का उपयोग कर रहा हूॅ। साथ ही, संतुलित मात्रा में उर्वरक दे रहा हॅू। इन फसलों से सालाना 5 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
बकरीपालन से अच्छी आय
उन्होंने बताया कि बकरीपालन का काफी साल हो चुके है। यह पिताजी ने शुरू किया था। मैने सिर्फ बकरियों की नस्ल में बदलाव किया है। अब सिरोही, सोजत और तोतापारी नस्ल का पालन कर रहा हॅू। वर्तमान में 50 से ज्यादा बकरिया मेरे पास है। इनसे सालाना दो से तीन लाख रूपए की आमदनी हो जाती है। पशु अपशिष्ट खाद के रूप में खेतों मे काम आ जाता है।