एमटेक पास, गोबर से ब्रांड तक, सालाना कमाई सवा लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)जिन्होंने घर बैठे कमाई के लिए वर्मी खाद और वर्मी वॉश का उत्पादन करना शुरू किया। इससे ना केवल खुद के खेतों को जैविक बनाने में मदद मिली। बल्कि, दुसरे किसानों को भी स्थानीय स्तर पर ही जैव आदान उपलब्ध होने लगा। निलेश बताते है कि वर्मी खाद और वर्मी वॉश से सालाना लाख से सवा लाख रूपए की आमदनी हो जाती है। वहीं, खेती से ढ़ाई से तीन लाख का लाभ मिल रहा है। मोबाइल 70141-85098
बड़ावली, चित्तौडग़ढ़। जैविक उत्पादों के स्वाद और गुणवत्ता से भले ही अधिकांश किसान अनजान है। लेकिन, पढ़े-लिखे युवा जैविक की मांग को पहचान चुके है। शायद यही कारण है कि बाजार में गाय-भैंस का गोबर भी अब ब्रांड बनकर बिक्री हो रहा है। ऐसे ही युवा है निलेश धाकड़। जिन्होने फार्म मशीनरी और पावर इंजीनियरिंग में एमटेक करने के बाद जैव आदान तैयार करने में अपना स्टार्टअप शुरू किया है। निलेश का कहना है कि डिग्री पूरी करने के बाद कमाई का कोई जरिया तलाश रहा था। जानकारी और जमीन मेरे पास थी है। बस फिर क्या था। चार साल पहले शुरू किए इस व्यवसाय से अब सालाना लाख से सवा रूपए की आमदनी घर बैठे मिल रही है। बड़ी बात यह है कि इससे स्वयं के खेत भी जैविक बन चुके है। क्योंकि, अब कृत्रिम खाद का उपयोग करना बंद कर दिया है। किसान निलेश ने हलधर टाइम्स को बताया कि परिवार के पास 15 बीघा जमीन है। उन्होंने बताय कि परिवार जनों के खेती संभालने से मैने इस ओर कभी ध्यान नहीं दिया। एमपीयूएटी उदयपुर से वर्ष 2018 में एमटेक करने के बाद पहले तो नौकरी की तैयारी की। लेकिन, भर्ती परीक्षा में दो-चार नम्बर से रह गया। उसके बाद कोई वैंके सी निकली नहीं। इस कारण घर बैठे कुछ करने का सोचा। उन्होंने बताया कि पढ़ाई के दौरान मेरा ध्येय यही था कि नौकरी राजकीय ही करूंगा या फिर अपना व्यवसाय शुरू करूंगा। इसी सोच के साथ एक दो बेड के सहारे वर्मी कम्पोस्ट और वर्मी वॉश तैयार करना शुरू किया। पहले तो उत्पादित खाद का खेतों में उपयोग करता रहा। परिणाम जानने के बाद शेष रहने वाले खाद की बिक्री करना शुरू कर दिया। इससे आय भी मिलने लगी। वहीं, क्षेत्र के किसानों को स्थानीय स्तर पर जैव आदान भी उपलब्ध हो रहे है। गौरतलब है कि निलेश के पास वर्मी खाद की 100 बेड़ है। उन्होंने बताया कि सालाना 40 किलोग्राम के 1500 बैग वर्मी खाद का उत्पादन हो रहा है। तैयार वर्मी खाद को श्री कृष्णा ऑर्गेनिक इनपुट के ब्रांड नाम के साथ बिक्री कर रहा हॅू। इससे मुझे सालाना लाख से सवा रूपए की बचत मिल रही है।
परम्परागत फसलों का उत्पादन
उन्होंने बताया कि परिवार के पास 15 बीघा कृषि भूमि है। परम्परागत फसलों में सोयाबीन, मक्का, मंूगफली, बाजरा, सरसों, लहसुन, गेहंू का जैविक विधि से उत्पादन ले रहा हॅू। सिंचाई के लिए कुआं, ट्यूबवैल है। खर्च निकालने के बाद इन फसलों से ढ़ाई से तीन लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
पशुपालन से भी आय
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 3 गाय और 7 भैंस है। वर्तमान में प्रतिदिन 14-15 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है। दुग्ध का विपणन दूधियों को 45-50 रूपए प्रति लीटर की दर से कर रहा हॅू। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग वर्मी खाद बनाने में हो जाता है। उन्होंने बताया कि घरेलू पशुधन का गोबर कम पडऩे पर गांव के पशुपालकों से भी गोबर की खरीद कर रहा हॅू।