गांव-गांव जैविक की अलख जगा रहा है दुर्गाशंकर - किचन गार्डन के लिए नि:शुल्क खाद
(सभी तस्वीरें- हलधर)परम्परागत फसल शुरू से ही आमदनी का मुख्य आधार रही है। कीट-रोग नियंत्रण के लिए हर 10 दिन में किसी ना किसी रसायन का छिड़काव करना पड़ता था। इससे जमीन बिगड़ रही थी। साथ ही, फसलों के उत्पादन में भी गिरावट आने लगी। इसी स्थिति को देखते हुए जैविक खाद और कीटनाशक का उपयोग करना शुरू किया। शुरूआत में गौशाला से खाद की खरीद करके लाता और खेत में डालता। लेकिन, अब स्वयं जैविक आदान तैयार कर रहा हॅू। साथ ही, आस-पास क्षेत्र के किसानों को भी जैविक आदान उपयोग के लिए प्रोत्साहित कर रहा हॅू। गौरतलब है कि किसान दुर्गाशंकर पारीक को स्कूलों में किचन गार्डन प्रोत्साहन के लिए हाल ही में उपखंड स्तर पर सम्मानित किया गया। इससे पूर्व आत्मा योजना के तहत जिला स्तरीय पुरस्कार मिल चुका है। उन्होने बताया कि जैविक उपजाने के बाद से गेहंू का प्रति क्विंटल भाव बाजार दर से ज्यादा मिलने लगा है। इससे आय का सालाना आंकडा 3 लाख रूपए के करीब पहुंच चुका है। गौरतलब है कि यह अपना जैविक आदान आयु ब्रांड नाम से बिक्री कर रहे है। मोबाइल 9602143174
आवां, टोंक। ... दूर कहां है मंजिल, जब हौंसला अडिग हो। जैविक से जमीन को सरसब्ज करने वाला यह किसान है दुर्गाशंकर पारीक। इनका का कहना है कि पहले खेती में लाभ और हानि का अंतर करना ही मुश्किल था। हालात यह थे कि फसलों में कीट-रोग नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करते-करते परेशान हो जाते थे। लेकिन, जैविक अपनाने के बाद अब जहरमुक्त अनाज का उत्पादन खेतों में हो रहा है। जैविक से आत्म संतुष्टि तो मिली ही है। साथ ही, आय भी काफी बढ़ रही है। बड़ी बात यह है कि अब खेतों में पैदा होने वाली उपज को कृषि उपज मंड़ी में बिक्री करने की जरूरत नहीं रही है। उल्लेखनीय है कि किसान दुर्गाशंकर पिछले 5-6 साल से जैविक खेती कर रहा है। किसान दुर्गाशंकर ने हलधर टाइम्स को बताया कि मेरे पास 40 बीघा पक्की जमीन है। उन्होंने बताया कि डबल एमए करने के साथ ही आजीविका के लिए मैं खेतों से जुड़ गया। दूसरे किसानो की तरह मैं भी ज्यादा उत्पादन लेने के लिए रासायनिक खाद और कीटनाशकों का उपयोग किया करता था। लेकिन, अब जैविक की राह पर निकल चुका हॅू। अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि पानी की कमी के चलते परम्परागत फसल ही आमदनी का मुख्य आधार रही है। इन फसलों में कीट-रोग नियंत्रण के लिए हर 10-15 दिन में किसी ना किसी रसायन का छिड़काव करना पड़ता था। उन्होंने बताया कि उपयोग लिए गए रसायनों का प्रभाव मुझे जैविक खेती से जुडऩे के बाद पता चला। हालत यह थी कि जैविक अपनाने के पहले वर्ष तो थोड़ी दिक्कत आई। दूसरे साल भी थोड़ा नुकसान उठाना पड़ा। लेकिन, लगातार प्रयासों से अब जैविक फसल उत्पादन का स्तर पहले के जैसा हो चुका है। लागत काफी कम हो चुकी है। पहले मंहगी दवा बाजार से लाते थे। लेकिन, अब सारे जैव कीटनाशक खेत पर तैयार हो रहे है। उल्लेखनीय है कि किसान दुर्गाशंकर बाजरा, गेहूं, सरसों, उड़द की फसल का जैविक उत्पादन ले रहा है। उन्होंने बताया कि जैविक कृषि कार्यक्रमों में भाग लेने से जैविक उत्पादों का बाजार मिल चुका है। इसलिए अब फसल तैयार होने के साथ ही उपभोक्ताओं की मांग मिलना शुरू हो जाती है। उन्होने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास कुआं है। परम्परागत फसलो के उत्पादन से सालाना ढ़ाई से तीन लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। इसके अलावा थोड़ी बहुत आय नींबू के पौधों से मिल जाती है। विद्युत बचत के लिए सौर उर्जा संयंत्र लगाया हुआ है। उन्होंने बताया कि पहले गेहंू सहित दूसरी फसल बाजार दर से बिक्री करना पड़ता था। लेकिन, अब घर बैठे ही गेहूं 3200 रूपए प्रति क्विंटल पर बिक्री हो रहा है। इसी तरह दाल और सरसों से भी अच्छी आमदनी हो रही है।
किचन गार्डन के लिए नि:शुल्क दी खाद
उन्होने बताया कि जैविक के फायदे जानने के बाद आस-पास क्षेत्र की स्कूलों में अध्ययनरत बच्चो को जैविक का महत्व समझाने के लिए एक अभियान चलाया। गांव-गांव जाकर बच्चों के साथ ग्रामीणों को जैविक का फायदा समझाने लगा। साथ ही, स्कूलों में जहरमुक्त सब्जी उत्पादन के लिए किचन गार्डन स्थापना के लिए अध्यापकों को भी प्रोत्साहित किया। सब्जी फसलो में कीट-रोग नियंत्रण के लिए वर्मी कम्पोस्ट खाद, वर्मीवॉश सहित दूसरे जैव कीटनाशक मैने नि:शुल्क उपलब्ध करवाएं। इस अभियान की बदौलत क्षेत्र के काफी किसान जैविक अपना रहे है। गौरतलब है कि किसान दुर्गाशंकर को जैविक जनजागरूकता अभियान के लिए इसी 15 अगस्त को उपखंड स्तर पर सम्मानित किया गया है। इससे पूर्व आत्मा परियोजना के तहत जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके है।
गौशालाओं को भी लाभ
उन्होंने बताया कि जैविक खेती की शुरूआत में गोबर की दिक्कत आई। जैविक के प्रति मेरी लगन को देखते हुए गांव के सरपंच ओमेन्द्र भारद्वाज ने मेरा सहयोग किया। उन्होंने गांव के आस-पास की गौशालाओं से सम्पर्क करवाया। इसके बाद कभी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा। जरूरत के आधार पर गौशालाओं से गोबर की खरीद करके वर्मी खाद तैयार कर रहा हॅू। वर्मी कम्पोस्ट की 8-10 बेड मेरे पास है। पशुधन में मेरे पास गौधन है। दुग्ध घर में काम आ जाता है। वहीं, अपशिष्ट से वर्मी वॉश तैयार कर रहा हॅू।