खेती की कमाई से बेटे को बनाया मास्टर, महिलाओं की बदली जीवन रेखा (सभी तस्वीरें- हलधर)
चावण्डिया, नागौर। आइए आपसे रूबरू कराते है रेखा देवी मिश्रा से। जिन्होंने अपने गांव की महिलाओं को गरीबी की रेखा से ऊपर उठाने का काम किया है। साथ ही, झोपड़ी में रहते हुए अपने एक लाल को शिक्षक भी बनाया। गौरतलब है कि रेखा खेती के साथ-साथ पशुपालन से जुड़ी हुई है। वहीं, सखी के रूप में ग्रामीण महिलाओं का हौंसला बढ़ाते हुए पशुओं के लिए हर्बल दवाएं भी तैयार कर रही है। रेखा देवी बताती है कि लखनऊ के एक गौ सेवा ट्रस्ट से 10 दिवसीय प्रशिक्षण लेने के बाद एक नई उम्मीद नजर आई। इसी का परिणाम है कि बूंद-बूंद से घट भरता जा रहा है। इससे सालाना आमदनी का आंकड़ा 5-7 लाख रूपए सालाना तक पहुंच चुका है। उल्लेखनीय है कि रेखा को राज्य सरकार ने वर्ष 2023 मेें उत्कृष्ट पशु सखी सम्मान भी प्रदान किया है। रेखा देवी ने हलधर टाइम्स को बताया कि खेती से नाता तो शुरू से ही रहा है। लेकिन, लखनऊ के गौ सेवा ट्रस्ट से प्रशिक्षण लेने के बाद कुछ अलग करने की ठानी। इस प्रशिक्षण से मुझे एक नया हौंसला मिला। पशुओं के उपचार की जानकारी के साथ हर्बल दवा निर्माण की जानकारी भी मिली। इसी ज्ञान को आधार बनाते हुए पशुपालन और कृषि में नवाचार का सिलसिला शुरू किया। साथ ही, महिला समूह भी बनाया। इससे गांव की दूसरी महिलाओं भी आर्थिक रूप से सशक्त हुई। अब समूह से जुड़ी महिलाएं छोटी-छोटी बचत से परिवार की आर्थिकी में हाथ बटा रही है। यह सब देखकर अच्छा लगता है। गौरतलब है कि रेखा देवी 12वीं पास है। उन्होने बताया कि झोपड़ी में रहकर खेती और पशुपालन से जो भी बचत मिली, उससे ही लड़कों की पढ़ाई का खर्च भी निकाला। एक लड़का द्वितीय श्रेणी शिक्षक बन चुका है। लेकिन, मेरी दिनचर्या झोपड़ी से शुरू होकर वापिस झोपड़ी पर खत्म होती है। उन्होने बताया कि खेती के लिए 24 बीघा जमीन और एक ट्यूबवैल मेरे पास है। इसमें जौ, गेहंू, चना, सरसों, मैथी, बाजरा, मूंग, मोठ, ग्वार आदि फसलों का उत्पादन लेती हॅू। इससे एक सीजन में खर्च निकालकर ढ़ाई से तीन लाख रूपए की बचत मिल जाती है।
सब्जी उत्पादन से 500 रोजाना
उन्होने बताया कि आय बढ़ाने के लिए सब्जी फसलों का उत्पादन शुरू किया। एक बीघा क्षेत्र में गाजर, मूली, नागौरी मैथी, मटर, आलू, प्याज, पालक आदि सब्जी फसलों का उत्पादन करती हॅू। इससे प्रतिदिन 300=500 रूपए की आमदनी मिल जाती है।
वर्मी के साथ अजोला से आय
उन्होने बताया कि वर्मी कम्पोस्ट की दो बेड़ मेरे पास है। वहीं, एक यूनिट अजोला की है। वर्मी यूनिट में तैयार होने वाला खाद खेतों में काम आ जाता है। वहीं, अतिरिक्त केंचुओं का 300 रूपए प्रति किलो की दर से बिक्री कर देती हॅू। इसी तरह मेरे यहां अजोला उत्पादन का प्रशिक्षण लेने वाले किसानों को 100 रूपए प्रति किलो के भाव से अजोला बीज की बिक्री करती हॅू।
पशुपालन के साथ हर्बल दवा
उन्होने बताया कि पशुधन में मेरे पास एक गाय, एक भैंस, 5 बकरी और तीन बकरे है। उन्होने बताया कि गाय-भैंस में से जो भी दुधारू हो, उसका एक समय का दुग्ध डेयरी को बिक्री कर देती हॅू। वहीं, बकरा पालन से 65-70 हजार रूपए सालाना की आमदनी मिल जाती है। उन्होने बताया कि पशुओं के लिए हर्बल दवा भी तैयार करती हॅू। इसमें पशु चाट, लीवर टॉनिक सहित दूसरी हर्बल दवा शामिल है। गौरतलब है कि रेखा देवी पशुओं की छोटी-मोटी बीमारी का उपचार भी स्वयं कर लेती है। इनके ज्ञान का फायदा ग्रामीणों को भी मिल रहा है।
स्टोरी इनपुट: डॉ.एलआर चौधरी, डॉ. धीरज बागड़ी, केवीके मौलासर, नागौर