पहले गेहूं की रोटी को तरसे, सब्जी से अब लाखों बरसे

नई दिल्ली 13-Aug-2024 02:22 PM

पहले गेहूं की रोटी को तरसे, सब्जी से अब लाखों बरसे (सभी तस्वीरें- हलधर)

दाने-दाने की मोहताजी से रूबरू कराने वाली यह कहानी है किसान सुरेश कुमार भील की। जिन्हें आर्थिक दुश्वारियां विरासत में मिली। इस कारण कॉलेज में दाखिला नहीं ले पाएं। दो दशक पूर्व खेती से जुड़े। लेकिन, घर खर्च चलाने के लिए मजदूरी से भी परहेज नहीं किया। उनका कहना है कि कल का संघर्ष अब धीरे-धीरे रंग ला रहा है। सब्जी उत्पादन से दो पैसे की बचत देखने को मिल रही है। इससे परिवार के सामाजिक और आर्थिक स्तर में बदलाव का अहसास होने लगा है। गौरतलब है कि किसान सुरेश, खेती से सालाना 4 लाख रूपए की आमदनी ले रहे है। मोबाइल 81073-60010

बाघेर, झालावाड़। खेती में विकास की इबारत कैसे लिखी जाएं? यह यक्ष प्रश्र प्रत्येक खेतीहर के सामने है। इस बात का जवाब तलाशने के लिए आपसे रूबरू कराते है किसान सुरेश कुमार भील से। जिन्होंने ना केवल खेती से अपनी आमदनी बढ़ाने में सफलता पाई है। बल्कि, जिले के किसानों के बीच भी अपनी नई पहचान बनाई है। गौरतलब है कि किसान सुरेश ने सब्जी उत्पादन से परिवार की किस्मत संवारने का काम किया है। खेती से सालाना 3-4 लाख रूपए की आमदनी इनको मिल रही है। किसान सुरेश ने हलधर टाइम्स को बताया कि पहले परिवार के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। पिताजी मजदूरी करते थे। परिवार के लिए गेहूं की रोटी भी एक सपने जैसी थी। मजदूरी के बदले जो भी पैसा मिलता, उससे पिताजी 10-10 दिन के हिसाब से ज्वार, मक्का के साथ-साथ परचून की खरीद करते। इस कारण मैं 12वीं से ज्यादा पढ़ नहीं पाया। गांव से कॉलेज दूर थी। परिवार की हैसियत शहर भेजने और आगे की पढ़ाई का खर्च उठाने की नहीं थी। इस कारण खेती से जुड गया। पहले तो परम्परागत फसलों का उत्पादन लेता रहा। फिर, आस-पास गांवों के किसानों को देखते हुए सब्जी फसलों का उत्पादन लेना शुरू किया। मुनाफा अच्छा मिला तो सब्जी फसलों का दायरा बढा दिया। इससे परिवार की आर्थिक और सामाजिक जीवन स्तर में काफी बदलाव देखने को मिला है। उन्होने बताया कि खेती से जुडे हुए दो दशक का समय हो चुका है। इसके चलते कृषि विज्ञान केन्द्र, झालावाड के कृषि वैज्ञानिकों से भी मुलाकात हुई। फिर, उनके मार्गदर्शन में उन्नत बीजों और आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए खेती में विकास की इबारत लिखना शुरू किया। उन्होंने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास ट्यूबवैल है। परम्परागत फसलों में सोयाबीन, धनिया, सरसों और गेहूं का उत्पादन लेता हॅू। गौरतलब है कि किसान सुरेश के पास 6 बीघा जमीन है। उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों से सालाना डेढ़ से दो लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। 
बैंगन ने बढ़ाया हौंसला
उन्होने बताया कि सब्जी फसलों की शुरूआत बैंगन की खेती से हुई। इसकी खेती में अच्छी बचत मिली, इसके बाद दूसरी सब्जी फसलों का भी उत्पादन लेने लगा। उन्होने बताया कि वर्तमान में डेढ़ से दो बीघा क्षेत्र में सब्जी फसलों का उत्पादन ले रहा हॅू। सब्जियों में लौकी, भिंड़ी और बैंगन की फसल शामिल है। इन फसलों से से सलाना डेढ से दो लाख रूपए की आमदनी हो जाती है। 
लाभकारी पशुपालन
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 1 भैंस और 1 गाय है। प्रतिदिन 8-10 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है। दुग्ध घर में काम आ जाता है। परिवार की आवश्यकता पूर्ति के बाद शेष रहने वाले दुग्ध से घी तैयार कर लेता हॅू। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। पशु अपशिष्ट कम्पोस्ट खाद के रूप में खेत में काम आ जाता है। 
स्टोरी इनपुट: डॉ. एसआर रूंडला, डॉ. एम युनुस, डॉ. टीसी वर्मा, केवीके, झालावाड़


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नौकरी को बाय-बाय: बीटेक पास उपजा रहा है खरबूज, सकल आय 10 लाख

इंजीनियरिंग करके दो साल के भीतर ही नौकरी को टाटा, बाय-बाय कहने वाला यह किसान है सतीश पवार। जो साल में तीन फसलो का उत्पादन लेकर कृषिगत बचत का आंकड़ा दोगुना कर चुका है। कोटा क्षेत्र में सतीश ने आलू और जायद फसलों के उत्पादन में अलग पहचान बनाई है। सतीश का कहना है कि नौकरी से जरूरतें पूरी होती। कभी, समृद्धि की झलक देखने को नहीं मिल पाती। अब परिवार के साथ रहकर जीवन का असली सावन देख रहा हॅू। उन्होने बताया कि मुझे नई पहचान और कृषि आय को नया फलक देने में कृषि वैज्ञानिको का मार्गदर्शन भी मेरे लिए अमूल्य है। गौरतलब है कि सतीश खरीफ में धान, रबी में आलू और जायद में खरबूज सहित दूसरी सब्जी फसलों का उत्पादन ले रहे है। जिससे सालाना बचत का आंकड़ा 8-10 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। मोबाइल 78283-03623



दुबई रिटर्न ने सब्जी से हरे किए धोरे, सालाना कमाई 12 लाख

कहते है कि परिवार के आर्थिक हालात ठीक नही हो तो सफलता के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। किसान औंकारमल मेघवाल के साथ भी यही हुआ है। औंकार ने बताया कि पहले खेतों से पैदावार कम मिलती थी। इससे परिवार का खर्च निकालना भी मुश्किल लगता था। मजबूरी में रोटी-रोटी की तलाश ने मुझे दुबई पहुंचा दिया। आठ साल में जो कमाया, यहां लौटकर खेतों में निवेश किया। इसी का परिणाम है कि अब खेतों से 10-12 लाख रूपए सालाना की आमदनी मिल रही है। गौरतलब है कि किसान औकारमल डेढ़ दशक से सब्जी फसलो की खेती कर रहे है। साथ ही, इन्होने प्रति बीघा परम्परागत फसलों का उत्पादन बढ़ाने में भी सफलता पाई है। मोबाइल 9983231901