नौकरी को बाय-बाय: बीटेक पास उपजा रहा है खरबूज, सकल आय 10 लाख (सभी तस्वीरें- हलधर)
अर्जुनपुरा, कोटा। मन में कुछ कर गुजरने का जज्बा और आजीविका अर्जन के साथ भविष्य निर्माण की सही योजना है तो नौकरी को ठोकर पर रखा जा सकता है। नौकरी व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने का साधन भर है। लेकिन, खेती समृद्धि का प्रतीक। इस बात को सच साबित कर दिखाया है किसान सतीश पवार ने। जिन्होंने दो साल के दौरान ही नौकरी का गणित जानने के बाद अपने पैतृक खेतों में खरबूजा उपजाना शुरू कर दिया। सतीश का कहना है कि मेरे खेती से जुडऩे के बाद साल में तीन फसल उत्पादन का सपना सच हो रहा है। साथ ही, तकनीक आधारित खेती से लागत कम होने के साथ ही आमदनी का ग्राफ भी बढ़ रहा है। गौरतलब है कि सतीश 12 बीघा जमीन में जायद सब्जी फसलों का उत्पादन करके प्रति बीघा 25-30 हजार रूपए का मुनाफा कमा रहे है। वहीं, आलू से प्रति बीघा 40 हजार रूपए का मुनाफा लेते है। इससे सकल बचत का आंकड़ा 8-10 लाख रूपए तक पहुंच चुका हैं। किसान सतीश ने हलधर टाइम्स को बताया कि परिवार के पास 12 बीघा कृषि भूमि है। परिवार की आर्थिक स्थिति सामान्य होने के चलते बीटेक के बाद दो साल तक प्रदेश की नामी कम्पनियों में नौकरी की। लेकिन, दो साल के भीतर ही नौकरी का गणित समझ आ गया। इस कारण नौकरी छोड़कर घर लौट आया और खेती का जिम्मा संभाल लिया। उन्होने बताया कि मेरे खेती से जुडऩे तक खेत में रबी-खरीफ फसल का ही उत्पादन होता था। इस स्थिति को देखते हुए कृषि अनुसंधान केन्द्र, उम्मेदगंज के कृषि वैज्ञानिकों से सम्पर्क किया। उनकी सलाह पर जायद सब्जी फसलों का उत्पादन लेना शुरू किया। उन्होने बताया कि वैज्ञानिक मार्गदर्शन में तकनीक आधारित खेती से उम्मीदों के साथ आमदनी को भी एक नया फलक मिला। इसके बाद फसलों का दायरा बढ़ाना शुरू कर दिया। इसी का परिणाम है कि वर्तमान में 12 बीघा क्षेत्र में जायद सब्जी फसलों का उत्पादन खेतों में हो रहा है। पानी की बचत के लिए जमीन के पूरे रकबे में ड्रिप का जाल बिछाया हुआ है। उन्होंने बताया कि परम्परागत फसल चक्र में भी बदलाव किया है। परम्परागत फसल में केवल धान का उत्पादन लेता हॅू। इसके अलावा रबी और जायद में सब्जी फसलों की ही बुवाई करता हॅू। गौरतलब है कि पहले खेतों से सालाना 3-4 लाख रूपए तक आमदनी सालभर में मिलती थी।
6 बीघा में खरबूजा
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों की सलाह पर शुरू की गई खरबूजें की खेती काफी लाभकारी साबित हो रही है। इसके उत्पादन से प्रति बीघा 25-30 हजार रूपए तक बचत मिल रही है। उन्होने बताया कि खरबूज के अलावा ककड़ी, टमाटर, बैंगन, खीरा, लौकी आदि सब्जी फसलों का उत्पादन लेता हॅू। खरीफ में धान की बुवाई के साथ बैंगन की बुवाई करता हॅू। इससे फसल का खर्च निकल जाता है। वहीं, रबी में जमीन के पूरे रकबे में आलू की उन्नत किस्मों की बुवाई करता हॅू। इससे प्रति बीघा 40 हजार रूपए तक बचत मिल जाती है।
पशुपालन से आय
पशुपालन में 4 गाय और 3 भैंस मेरे पास है। प्रतिदिन 10-15 लीटर दुग्ध को डेयरी को बिक्री कर देता हॅू। शेष दुग्ध घर पर काम आ जाता है। उन्होने बताया कि दुग्ध बिक्री से पशुधन के साथ-साथ परिवार का दैनिक खर्च निकल जाता है। पशु अपशिष्ट से कम्पोस्ट खाद तैयार कर रहा हॅू।
स्टोरी इनपुट: डॉ रामराज मीणा, डॉ. डीएल यादव, एआरएस, कोटा