फार्मपौंड से पड़त हुई सरसब्ज, 6 लाख पहुंचा कमाई का आंकड़ा
(सभी तस्वीरें- हलधर)फार्मपौंड से खेतों के साथ-साथ आमदनी के आंकड़े को आसमां देने वाला यह किसान है देवकिशन गुर्जर। जिसने जल बचत से खेती को नए आयाम दिए है। उन्होने बताया कि दशक पहले तक रबी के मौसम में दो से तीन बीघा क्षेत्र में फसलों का उत्पादन लेते थे। लेकिन, फार्मपौंड़ बन जाने के बाद रबी फसलों का बेहत्तर उत्पादन होने लगा है। इससे आमदनी का सालाना आंकड़ा 5-6 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। उन्होने बताया कि मुझे नई पहचान देने में कृषि विज्ञान केन्द्र, भीलवाड़ा के कृषि वैज्ञानिकों का भी काफी सहयोग रहा है। मोबाइल 9780520520
सातोला का खेड़ा, शाहपुरा। बिन पानी सब सुन, यह कहावत आप सभी ने सुनी होगी। लेकिन, इस स्थिति के चश्मदीद है किसान देवकिशन गुर्जर। देवकिशन ने जल बचत करके खेतों को सरसब्ज किया है। इससे सालाना बचत का आंकड़ा भी लाखों में पहुंच गया है। उनका कहना है कि दशक पहले केवल खरीफ फसलों से ही आमदनी होती थी। रबी मौसम में पानी का बंदोबस्त नहीं होने से जमीन पड़त ही छोडनी पड़ती थी। पशुओं के लिए दो-तीन बीघा क्षेत्र में चारा फसलों का उत्पादन लेते थे। लेकिन, फार्मपौंड खुदवाने के बाद आय का आंकड़ा बढ़कर 6 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। किसान देवकिशन ने हलधर टाइम्स को बताया कि परिवार के पास 40 बीघा जमीन है। जब मैं खेती से जुड़ा खेतों से खरीफ फसलों से दो-तीन लाख रूपए की आमदनी मिलती थी। उन्होने बताया कि खेती करते हुए कृषि विज्ञान केन्द्र, भीलवाड़ा के कृषि वैज्ञानिकों से सम्पर्क हुआ। उन्होने मुझे बरसाती पानी संग्रहित करके खेती करने की सलाह दी। उनके मार्गदर्शन में दशक पूर्व फार्मपौंड खुदवाया। साथ ही, जमीन को भी खेती लायक बनाया। इससे रबी फसलों का भी अच्छा उत्पादन मिलने लगा। इसके बाद खेती में अच्छे दिनों की शुरूआत हुई। गौरतलब है कि किसान देवकिशन वर्तमान में ट्रेक्टर के मालिक है। साथ ही, खेती के काम आने वाली जरूरी मशीनरी इनके पास है। उन्होने बताया कि परम्परागत फसलों में मक्का, उड़द, सरसों, गेहूं, चना का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से सालाना साढे तीन से चार लाख रूपए की बचत हो जाती है।
पशुपालन से बेहत्तर आय
उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों की सलाह पर ही पशुपालन को व्यवसाय का रूप दिया। उन्नत नस्ल के पशु खरीदें। साथ ही, दुग्ध की बिक्री करने लगा। वर्तमान में मेरे पास 5 भैंस, 2 गाय है। इनसे 20 लीटर के करीब दुग्ध का उत्पादन मिल जाता है। दुग्ध का विपणन 55-60 रूपए प्रति लीटर की दर से कर रहा हॅू। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। वहीं, मासिक 5-6 हजार रूपए की बचत मिल जाती है। पशु अपशिष्ट को कम्पोस्ट बनाकर उपयोग ले रहा हॅू।
बकरी से भी लाभ
उन्होने बताया कि केवीके के मार्गदर्शन में आय बढौत्तरी के लिए बकरीपालन को अपनाया। वर्तमान में एक दर्जन करीब बकरिया मेरे पास है। उन्होने बताया कि बकरी पालन में ज्यादा खर्च नहीं लगता है। चराई खेतों में हो जाती है। इससे खेतों में खरपतवार निकालने में भी मदद मिलती है। वहीं, बकरा विपणन से सालाना 50-60 हजार रूपए की आमदनी मिल जाती है।
स्टोरी इनपुट: डॉ. सीएम यादव, डॉ. केसी नागर, डॉ. राजेश जलवानियां, केवीके, शाहपुरा