पशुपालन से खेती में आया राम, कमाई 10 लाख सालाना

नई दिल्ली 26-Sep-2024 02:46 PM

पशुपालन से खेती में आया राम, कमाई 10 लाख सालाना

(सभी तस्वीरें- हलधर)

गौरतलब है कि सुखाराम को घी उत्पादन से सालाना दो लाख रूपए की बचत मिल रही है। वहीं, रबी-खरीफ की नगदी फसलों के उत्पादन से सालाना 8 लाख रूपए की बचत हो रही है। मोबाइल 90014-58652
भुनिया, बाड़मेर। पशुधन से सरसब्ज होने के बाद बीजीय मसाला और औषधीय फसलों का रूख करने वाला किसान है सुखराम देहडू। इन्होंने परम्परागत फसलों के उत्पादन को सीमित करके अब बीजीय मसाला और औषधीय फसलों का उत्पादन लेना शुरू किया है। इससे सालाना बचत का आंकड़ा 8 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। वहीं, दो लाख रूपए की आमदनी घी की बिक्री से हो जाती है। जबकि, पहले परम्परागत फसलों से सालाना दो से ढ़ाई लाख रूपए की आमदनी भी नहीं मिलती थी। किसान सुखराम ने बताया कि परिवार के पास 30 बीघा जमीन है। लेकिन, सिंचाई की मार से चलते परम्परागत फसलो के उत्पादन तक सीमित रहा। बाद में पशुपालन को व्यवसाय का रूप दिया। इससे परिवार की आर्थिकी स्थिति में सुधार देखने को मिला। जमा पूंजी से खेत में ट्यूबवैल खुदवाया। इससे रबी फसलों का भी उत्पादन मिलने लगा। उन्होंने बताया कि अब रबी में बीजीय मसालों में जीरा और औषधीय फसल ईसबगोल की खेती कर रहा हॅू। इन फसलों के उत्पादन से अच्छी आमदनी मिल जाती है। वैज्ञानिकों तौर-तरीके अपनाने से सभी फसलों का उत्पादन अच्छा मिल रहा है।  उन्होंने बताया कि बीजीय मसाला फसलों से लाभ कमाने के लिए जैविक खाद का ज्यादा प्रयोग करता हॅू। जब रोग-कीट का प्रकोप ईटीएल स्तर से ज्यादा हो जाता है, तब ही रासायनिक दवा उपयोग में लेता हॅू। वहीं, खरीफ में बाजरा, मूंग, ग्वार का उत्पादन लेता हॅू।
घी से आय
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेेरे पास 8 भैंस 6 गाय है। प्रतिदिन 55-60 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है। स्थानीय स्तर पर दुग्ध के भाव कम होने से इसका उपयोग घी बनाने में करता हॅू। घी बनाने से सालाना 2 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती हे। पशु अपशिष्ट से कम्पोस्ट खाद तैयार करके उपयेाग ले रहा हॅू। 
पशुओं के लिए नेपियर
उन्होने बताया कि पशुधन को वर्ष भर हरा चारा उपलब्ध कराने के लिए डेढ़ बीघा क्षेत्र में नेपियर घास लगाई हुई है। यह घास खिलाने से पशुधन का स्वास्थ्य और दुग्ध उत्पादन में सुधार देखने को मिला है। 
स्टोरी इनपुट: डॉ. रावताराम, डॉ. विनय खत्री, डॉ. नारायण सिंह सोलंकी, पशुपालन विभाग, बाड़मेर


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