खेतों में सब्जियों रंगत से लाल हुआ लाला, सकल आय 8 लाख (सभी तस्वीरें- हलधर)
जीवन की सारी कशमकश दो पैसे की बचत के इर्द-गिर्द ही रहती है। यदि व्यक्ति की सोच सकारात्मक हो तो समय के साथ दिन भी बदल जाते है। आइए, आपको रूबरू कराते है 5वीं पास किसान लालाराम कुमावत से। जिन्होने सब्जी उत्पादन और पशुपालन से परिवार की आर्थिक तस्वीर बदली है। किसान लालाराम का कहना है कि पाई-पाई की बचत की आदत ने ही आज ये दिन दिखाए है। उन्होंने बताया कि दशक पहले सब्जियो की पैदावार लेना शुरू किया। मुनाफा अच्छा मिला तो एक तिहाई जमीन सब्जी फसलों के नाम कर दी। जो भी बचत मिली, उससे पशुधन का कुनबा बढ़ा लिया। इस तरह सालाना बचत का आंकड़ा बढ़कर 7-8 लाख रूपए तक जा पहुंचा है। जबकि, पहले सालाना दो से ढ़ाई लाख रूपए की आमदनी होती है। मोबाइल 95217-71164
बरना, जयपुर। जिम्मेदारियों का बस्ता जब कंधों पर आ जाता है तो आय बढ़ाने की फ्रिक में इंसान दिन-रात मेहनत के साथ पाई-पाई बचाने में जुट जाता है। क्योंकि, पाई-पाई की बचत ही समय आने पर कुछ कर गुजरने का जज्बा भर देती है। किसान लालाराम के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। परम्परागत फसलों के उत्पादन से जो भी बचत मिली, उसका खेतों में ही निवेश किया। परिणाम रहा कि आमदनी के साथ-साथ अब खेतों में भी सब्जियों की रंगत चढ़ चुकी है। इससे सालाना ढ़ाई से तीन लाख तक ठीठका रहने वाला बचत का आंकड़ा बढ़कर 7-8 लाख रूपए तक पहुंच चुका है। किसान लालाराम ने हलधर टाइम्स को बताया कि मेरे पास 8 बीघा जमीन है। जमीन के इस रकबे पर ही परिवार की आर्थिकी का दारोमदार है। उन्होने बताया कि पहले जमा पूंजी का अभाव था। इस कारण सूरत संभालने के बाद परम्परागत फसलों का उत्पादन लेता रहा। लेकिन, खेतों का हुलिया बदले अब दशक हो चला है। सब्जी फसलों की खेती ने परिवार की दिन बहुर दिए है। उन्होने बताया कि यह छोटी-छोटी बचत का परिणाम है कि खेतों में तकनीक आधारित सब्जी फसलो का उत्पादन संभव हो रहा है। गौरतलब है कि किसान लालाराम पांचवी तक पढ़े-लिखे है। इस कारण शुरू से ही रोजी-रोटी का जरिया खेती-बाड़ी ही रही है। उन्होंने बताया कि सब्जी फसलों से परिवार की आर्थिकी में सुधार आने के बाद अब पुराने दिन याद आते है। लेकिन, अब घर बैठे सालाना 7-8 लाख रूपए की बचत देखने को मिल रही है। उन्होने बताय कि परिवार के बढ़ते खर्च को देखते हुए दशक पूर्व सब्जी फसलो का उत्पादन लेना शुरू किया। सब्जी फसलों में बचत अच्छी नजर आई तो जमीन का एक तिहाई रकबा सब्जी फसलों के नाम कर दिया। उन्होंने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास ट्यूबवैल है। जलबचत के लिए ड्रिप और मल्च का उपयोग कर रहा हॅू। परम्परागत फसलों में जौ, सरसों, गेहूँ, बाजरा का उत्पादन लेता हॅू। परम्परागत फसलों से सालाना दो से ढ़ाई लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
बिस्वा से 5 तक सब्जी
उन्होंने बताया कि सब्जी फसलों की शुरूआत 5-6 बिस्वा जमीन से की थी । समय के साथ क्षेत्रफल भी बढ़ाया। वर्तमान में 5 बीघा क्षेत्र में सब्जी फसलो का उत्पादन ले रहा हॅू। उन्होंने बताया कि तीन बीघा क्षेत्र में तरबूज लगाया हुआ है। वहीं, एक-एक बीघा क्षेत्र में मिर्च और टमाटर की फसल लगाई हुई है। जबकि, सर्दी के मौसम में गोभी और टमाटर का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से सालाना 3-4 लाख रूपए की बचत मिल जाती है।
पशुधन से बढ़ाई समृद्धि
उन्होने बताया कि पशुधन में मेरे पास 1भैंस, 9 गाय है। प्रतिदिन 75-80 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है। गाया का दुग्ध 35-40 रूपए प्रति लीटर की दर से डेयरी को विपणन कर रहा हॅू। इससे मासिक 35-40 हजार रूपए मासिक की बचत मिल जाती है। पशु अपशिष्ट से कम्पोस्ट खाद तैयार करके सब्जी फसलों में उपयोग कर रहा हॅू। उन्होने बताया कि सब्जी फसल और पशुपालन ने परिवार की आर्थिक तस्वीर बदलने में महत्ती भूमिका निभाई है।