भेडपालक भोजराज सालाना कमाता है 11 लाख (सभी तस्वीरें- हलधर)
मिमयाने वाली भेड़ लघु और सीमांत किसानों के लिए कितनी लाभकारी है, इस बात का अंदाजा 5वीं पास भेड़पालक भोजराज गुर्जर को देखकर आसानी से लगाया जा सकता है। हालांकि, भेड़पालन श्रम साध्य है। लेकिन, आय भी उतनी ही है। आपको यकीन नहीं करोगे कि भोजराज भेड़पालन से सालाना 10 लाख रूपए का शुद्ध मुनाफा कमा रहा है। वहीं, 30 बीघा जमीन भी भेड़ पालन से हुई आमदनी से खरीद चुका है। इससे जमीन का कुल रकबा बढ़कर 50 बीघा का आंकड़ा छू चुका है। भोजराज की आर्थिकी को आगे बढ़ाने का काम किया है नस्ल सुधार, उन्नत पशु आहार और वैज्ञानिक तौर-तरीकें से भेड़ों के प्रबंधन ने। मोबाइल 6367966552
चलते फिरते बैंक से 30 बीघा फाइनेंस
बाछेड़ा, टोंक। लघु-सीमांत किसानों के लिए चलता फिरता बैंक कहे जाने वाली भेड़ की आधुनिक दौर में बिसात ही क्या। लेकिन, वैज्ञानिक तौर-तरीकें से इसका प्रबंधन और नस्ल सुधार पर ध्यान दिया जाएं तो जमीन भी फाइनेंस हो सकती है। वह भी बिना ऋण की प्रक्रिया अपनाएं। यानी अपनी भेड़, देती है के स। जी हां, भेड़पालन से ऐसा ही कुछ कर दिखाया है किसान भोजराज गुर्जर ने। इस किसान ने भेड़पालन से हुए लाभ से 30 बीघा जमीन की खरीद की है। आपको शायद यकीन नहीं होगा कि किसान भोजराज सालाना एक-डेढ़ लाख रूपए के खर्च पर 10 लाख रूपए का शुद्ध मुनाफा ले रहा है। भेड़पालक भोजराज ने बताया कि परिवार के पास 20 बीघा पैतृक जमीन है। गांव में 5वीं तक स्कूल होने के चलते इससे ज्यादा नहीं पढ़ सका। स्कूल छोडऩे के बाद बचपन, जवानी और ढलती उम्र के साथ भेड़ से ऐसा जुड़ाव हो गया कि यह परिवार की आर्थिक समृद्धि का केन्द्र बनकर रह गई। उन्होंने बताया कि कोविड-19 के संक्रमण से पहले तक भेड़ो की संख्या 200 से करीब थी। लेकिन, अब भेड़ों की संख्या को 60-70 के बीच सीमित कर दिया है। लेकिन, आय का आंकड़ा पहले से बढ़ गया है। इसके पीछे मुख्य कारण नस्ल सुधार और वैज्ञानिक तौर-तरीके से भेड़ो का प्रबंधन रहा है। पिछले साल नेट 10 लाख रूपए का मुनाफा भेड़ पालन से मिला है। इसके अलावा 11 बकरिया और एक गाय और 2 भैंस है। उन्होंने बताया कि पहले भेड़ो में प्रबंधन के अभाव में बीमारी ज्यादा आती थी। लेकिन, अब समय-समय पर चिकित्सा और टीकाकरण करवाने से मुँह-पका खुर-पका, काला छेरा, फ ड़किया, माता का रोग आदि बीमारियों से काफी राहत मिली है।
ऐसे बढ़ा जमीन का रकबा
उन्होंने बताया कि केन्द्रीय भेड़ और ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर से जुडऩे के बाद वैज्ञानिकों की सलाहनुसार भेड़ पालन करने से ज्यादा आमदनी मिलने लगी है। इससे पैतृक जमीन से ज्यादा जमीन मैने खरीदी है। भेड़पालन से हुई आमदनी से करीब 30 बीघा जमीन की खरीद समय-समय पर की है। उन्होंने बताया कि संस्थान किसान सहभागिता कार्यक्रम से जुडऩे के बाद भेड़ों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है।
दो साल में तीन बार बच्चे
किसान भोजराज ने बताया कि उन्नत आहार खिलाने से 3 महीनों में ही मेमनों का वजन 17-19 किलोग्राम हो जाता हैं। संस्थान के शरीर क्रिया रसायन विज्ञान विभाग के माध्यम से वह दो साल में तीन बार बच्चे लेने में सफल रहा है। इन तीन सालों में उसके रेवड़ में मृत्यु दर कभी भी 7 प्रतिशत से ज्यादा नहीं गई है जो उसके लिए एक रामबाण साबित हुई। उसने हाल ही में 4-माह के 25 मेमने 5000 रुपए की दर से औरं 60 भेड़े 19000 रूपये प्रति भेड़ की दर से बेची हैं। उन्होंने बताया कि पहले सुबह से शाम तक भेड़ों को चराया करते थे। घर पर भेड़ों को खाने के लिए कुछ भी नहीं देते थे। परंतु जब से मैंने अपनी भेड़ों को रातिब मिश्रण खिलना शुरू किया है, भेड़ें स्वस्थ रहती हैं और उनका मूल्य भी अच्छा मिलता है।
परम्परागत से भी आय
उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलो में सरसों, बाजरा, गेहूं और ज्वार का उत्पादन लेता हॅू। सिंचाई के लिए कुआं और ट्यूबवैल है। पशुओं का दुग्ध घर में काम आ जाता है। वहीं, फसलों से सालाना 4-5 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
स्टोरी इनपुट: एलआर गुर्जर, अरूण कुमार तोमर
भा.कृ.अनु.प-केन्द्रीय भेड़ -ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर