देखते ही देखते गोबर से लखपति बन गया राजू
(सभी तस्वीरें- हलधर)जिनको वर्मी उत्पादक बने डेढ़ दशक हो चुका है। वहीं, घर बैठे वर्मी खाद के उत्पादन से लाख रूपए महीने की आमदनी प्राप्त कर रहे है। हालांकि, राजू सिंह, रबी और खरीफ फसलो का उत्पादन भी खेतों में कर रहे है। लेकिन, वर्मी खाद उत्पादन में ज्यादा मुनाफे के चलते अपना पूरा फोकस इसी व्यवसाय पर किए हुए है। गौरतलब है कि किसान राजू सिंह को वर्मी खाद और खेती से सालाना 17-18 लाख रूपए की आमदनी मिल रही है। 9680501765
धुंंधरा, जोधपुर। ना बोलते है, ना ही सुनते है। ये दो मुहें ही है जो देखते ही देखते आदमी को लखपति बना देते है। दरअसल, यहां हम बात कर रहे है केचुओं की। जिन्होंने ना जाने कितने किसानों की किस्मत को बनाने का काम किया है। ऐसे ही वर्मी कम्पोस्ट उत्पादक है राजू सिंह राठौड़। जिनके पास वर्मी कम्पोस्ट की 200 बेड है और सालाना 12-13 लाख रूपए की शुरू मुनाफा वर्मी खाद के उत्पादन से कमा रहे है। किसान राजू सिंह का कहना है कि खेती से होने वाली आमदनी कुछ नहीं है साहब। असली मुनाफा तो इन गोबर खाने वाले कीड़ो से मिल रहा है। गौरतलब है कि किसान राजू डेढ़ दशक से वर्मी खाद के उत्पादन से जुड़े हुए है। किसान राजू सिंह ने हलधर टाइम्स को बताया कि मेरे पास 30-35 बीघा जमीन है। लेकिन, वर्मी खाद उत्पादन से मिलने वाली आमदनी के सामने खेती अब फीकीं लगने लगी है। उन्होने बताया कि वर्ष 2003 में स्नातक करने के बाद उद्यानिकी फसल प्रबंधन में एक वर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम पूरा किया। इसके बाद खेती से जुड़ गया। उन्होने बताया कि पहले तो परम्परागत फसलों के उत्पादन तक सीमित रहा। फिर, जैविक खेती के बढ़ते चलन में मुझे वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन से जोड़ दिया। उन्होने बताया कि वर्ष 2015 में 4-5 बेड़ के सहारे वर्मी खाद का उत्पादन लेना शुरू किया। पहले खाद का उपयोग अपने खेतों में किया। फिर, सरकारी मानकों के अनुरूप खाद तैयार करना आरंभ कर दिया। परिणाम रहा है कि खाद की मांग बढने लगी और यह व्यवसाय अच्छा चल निकला। इसी का परिणाम है कि 5 बेड से शुरू हुआ वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन का सफर 200 बेड़ तक जा पहुंचा है। उन्होने बताया कि जितना खाद-बीज-पान और लागत फसल तैयार करने में लगती है, उससे आधा भी निवेश इस क्षेत्र में कर दिया जाएं तो यह रेंगने वाले कीड़े किसान की किस्मत बना देते है। उन्होने बताया कि उत्पादित वर्मी खाद की आपूर्ति सरकार की योजनाओं में कर रहा हॅू। सारा खर्च निकालने के बाद 12 लाख रूपए सालाना की बचत इस व्यवसाय से मिल रही है।
गाजर से 50 हजार बीघा
उन्होंने बताया कि गाजर भी लाभकारी फसल है। इस फसल के यदि 10 रूपए किलो भी भाव मिले तो प्रति बीघा 50 हजार रूपए की आमदनी आसानी से मिल जाती है। यदि अगेती बुवाई कर दी तो आय का आंकडा दोगुना के करीब पहुंच जाता है। उन्होंने बताया कि हर साल 455 बीघा क्षेत्र में गाजर का उत्पादन लेता हॅू। वहीं, परम्परागत फसलों में जीरा, सौंफ, बाजरा और ग्वार का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से सालाना 5-6 लाख रूपए सालाना की आमदनी मिल जाती है।
तैयार करते है घी
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 2 भैंस और दो गाय है। प्रतिदिन 25-26 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिलता है। परिवार संयुक्त होने के कारण दुग्ध की खपत हो जाती है। वहीं, शेष रहने वाले दुग्ध से घी तैयार कर लेता हॅू। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग वर्मी खाद बनाने में हो जाता है।