जड़ी-बूटी से फार्मेसी कंपनी का इरादा, वर्तमान में आय 9 लाख (सभी तस्वीरें- हलधर)
खेतों के असली वैज्ञानिक किसान ही है। किसान ही आमदनी बढाने के लिए नित नए प्रयोग करते
हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ते रहते है। ऐसे ही एक प्रयोगधर्मी किसान है शैलेन्द्र मेघवाल। शैलेन्द्र
मेघवाल ने फौजी बनने की जिद में अपनी पढ़ाई छोड़ दी और खेती से जुड़ गया। अब लड़के को
आयुर्वेद कम्पाउडर की पढ़ाई करते हुए देखकर औषधीय फसलों का उत्पादन शुरू किया है। मकसद
साफ है, खुद का स्टार्टअप। बेटे कि पढ़ाई पूरी होने के बाद खेत में उत्पादित औषधीय फसलों के
सहारे पंजीयन करके फार्मेसी कंपनी शुरू करना । गौरतलब है कि शैलेन्द्र खेती से सालाना 8-9 लाख
रूपए की आमदनी ले रहा है।
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जय जवान नहीं तो जय किसान सही। जी हां, फौजी बनने की चाहत में घर वालों
की रोक-टोक हुई तो गुस्से ही गुस्से में शैलेन्द्र ने पढ़ाई छोड़कर खेती का दामन थाम लिया। अब
लंबी छलांग की तैयारी में कई तरह की औषधीय फसलो की खेती शुरू की है। फूल उत्पादन के साथ-
साथ परम्परागत फसलों का उत्पादन भी शुरू किया है। इससे सालाना 8-9 लाख रूपए की आमदनी
होने लगी है। किसान शैलेन्द्र मेघवाल ने हलधर टाइम्स को बताया कि 10वीं पास करने के दौरान ही
भारतीय सेना में भर्ती निकली थी। फिजीकल टेस्ट भी पास कर लिया था। लेकिन, घरवालों से
अनुमति नहीं मिली। जबकि, मेरे सभी साथी फौज में भर्ती हो चुके थे। इस कारण गुस्से ही गुस्से में
आगे की पढ़ाई नहीं की। उन्होंने बताया कि एक उम्र के बाद खुद को खेतों में पाया। पहले तो
परम्परागत फसलों का उत्पादन लेता रहा। लेकिन, पिछले 3-4 साल से अलग-अलग रोगो के उपचार
में काम आने वाली औषधीय फसलों की खेती कर रहा हॅू। गौरतलब है कि शैलेन्द्र का पुत्र आयुर्वेद में
कम्पाउड़र का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा है। शैलेन्द्र का कहना है कि उसके ज्ञान और मेरी मेहनत से
फार्मेसी कंपनी खोलने का विचार है। यही कारण है कि अलग-अलग औषधीय पादपों की खेती को
अपना चुका हॅू। उन्होंने बताया कि औषधीय फसलों में गुडमार, 3 तरह की नरगुंड़ी, पत्थर चट्टा,
कसूंदी, अडूसा, भुई आंवला, स्वर्णकंद आदि शामिल है। यह औषधीय पौधे कई तरह से रोगोपचार में
काम आते है। कुछ औषधीय से दवा तैयार करना भी शुरू कर दिया है। जैसे-जैसे ऑर्डर मिलता है,
उसके घर पर औषधीयों को पहुंचा देता हॅू। उन्होंने बताया कि औषधीय फसलों से पिछले साल ढ़ाई
लाख रूपए की आमदनी मिली है। गौरतलब है कि औषधीय फसलो के अलावा किसान शैलेन्द्र हल्दी
और काली हल्दी का उत्पादन भी ले रहा है। उन्होंने बताया कि काली हल्दी के पौधें महाराष्ट्र से
मंगवाए है। इस हल्दी की बुवाई अभी प्रयोग के तौर पर है। यदि पौधों को जमीन की तासीर पसंद
आई तो भविष्य में इसकी खेती को विस्तार दूंगा।
उन्होंने बताया कि परिवार के पास 15 बीघा जमीन है। इस पर सरसों, चना, जौ, मसूर, सोयाबीन,
उड़द आदि फसलों का उत्पादन लेता हॅॅू। सिंचाई के लिए कुआं और ट्यूबवैल दोनों है। इन फसलों से
सालाना 4 लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। उन्होंने बताया कि इस साल प्रयोग के तौर पर
एक बीघा क्षेत्र में गेंदा फूल की बुवाई की है। इससे उत्पादन मिलना अभी शेष है।
उन्होंने बताया कि बीघा भर क्षेत्र में बरसात कालीन प्याज का उत्पादन लेता हॅू। इस फसल से भी
सालाना 70-80 हजार रूपए की आमदनी मिल जाती है।
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास दो गाय और 18-20 बकरियां है। बकरी नस्लों में मारवाड़ी,
देसी और बीटल नस्ल शामिल है। उन्होंने बताया कि गाय से उत्पादित दुग्ध घर में काम आ जाता
है। वहीं, बकरों की बिक्री से सालाना लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। उन्होंने बताया कि पशु
अपशिष्ट से केंचुआ खाद तैयार कर रहा हॅू। वर्मी कम्पोस्ट की दो बेड़ मेरे पास है। उन्होने बताया कि
जैविक खाद का उपयोग औषधीय फसलों में कर रहा हॅू।
स्टोरीइनपुट: डॉ. सेवाराम रूंड़ला, डॉ. टीसी वर्मा, डॉ. एम युनुस, केवीके, झालावाड़