जैविक खेती से किसान तेजाराम ने बदली जिंदगी और कमाई बढ़ाई
(सभी तस्वीरें- हलधर)
खांडी, पाली। कहते है एक नेक सलाह जिंदगी बना देती है। वर्ना जिंदगी के रंग और ढंग बदल जाते है। ऐसी ही स्थिति से दोचार रहा किसान तेजाराम पटेल। मार्गदर्शन के अभाव में उच्च कृषि शिक्षा हासिल नहीं कर पाया। रोजी-रोटी के लिए गांव छोडक़र मुंबई का रूख कर लिया। फिर वहां से लौटकर ऑटो मैकेनिक का काम करने लगा। करीब डेढ़ दशक तक इस काम के बाद शरीर ने जवाब देना शुरू किया तो सारा काम छोटे भाई के हवाले करके सुकून और स्वस्थ जीवन के लिए खेतों का रूख कर लिया। उन्होंने बताया कि खेतों से जुडऩे के बाद शरीर के साथ-साथ खेत की माटी भी स्वस्थ हो रही है। वहीं, अच्छी आमदनी भी मिल रही है। उन्होंने बताया कि खेती से जुडऩे के बाद निरोगी जीवन के लिए खेतों को जैविक बनाने का काम किया। इस कार्य में काजरी केवीके पाली से लिया गया प्रशिक्षण और वैज्ञानिक मार्गदर्शन मील का पत्थर साबित हुआ। उन्होंने बताया कि सूखे खेतों में पानी की व्यवस्था मेरे सामने एक बड़ी चुनौति थी। शुरूआत में टैंकर-टैंकर पानी से काम चलाया। बाद में कृषि विभाग की अनुदान योजना का लाभ उठाते हुए खेत तलाई, वर्मी कम्पोस्ट इकाई, सौर उर्जा संयंत्र, टीन शैड का निर्माण करवाया। गौरतलब है किसान तेजाराम के पास 20 बीघा जमीन है। उन्होने बताया कि जल बचत के लिए बूंद-बूंद सिंचाई का उपयोग कर रहा हॅू। परम्परागत फसलों में मूंग, बाजरा, तिल, ग्वार, मोठ, चना और सरसों का उत्पादन लेता हॅू। इन फसलों से सालाना डेढ़ लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है।
बेर-लसोड़ा का बगीचा
उन्होंने बताया कि आय बढौत्तरी के लिए 1-1 बीघा क्षेत्र में बेर, आंवला, लसोड़ा का बगीचा स्थापित किया है। इसमें से बेर के पौधों से आमदनी मिलने लगी है। पिछले साल बेर के बगीचे से करीब एक लाख रूपए कीआय मिली है। इसके अलावा खेत में करौंदा, अमरूद, आम, अनार के पौधें लगाए हुए है। जबकि, उत्तर-पश्चिमी दिशा में खेत की मेड़ पर शीशम, नीम, सागवान, मालाबार नीम, खारी बदाम, गुलमोहर, मोरछड़ी के 200 पेड़ लगाएं हुए है।
एक बीघा में सब्जी उत्पादन
उन्होंने बताया कि एक बीघा क्षेत्र में मिर्च, टमाटर, बैंगन की फसल का उत्पादन ले रहा हॅू। इसके बीच में ही पपीता के 50 पौधें लगाएं हुए है। उन्होने बताया कि सब्जी फसल से 15-20 हजार रूपए की शुद्ध बचत मिल जाती है। गौरतलब है कि किसान तेजाराम थार शोभा खेजड़ी के पौधें भी तैयार कर रहे है। साथ ही, बेर में ग्राफ्टिंग और बडिग़ भी स्वयं ही करते है।
दुग्ध से अच्छी आय
उन्होंने बताया कि जैविक उपजाने के लिए पशुधन का दायरा भी बढ़ाया ै। पशुपालन में मेरे पास 5 गाय है। प्रतिदिन 20 लीटर दुग्ध की बिक्री कर रहा हॅॅू। साथ ही, घी तैयार कर रहा हॅू। घी की ब्रिकी एक हजार रूपए प्रति किलो के भाव पर करता हॅू। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग वर्मी खाद, नीमास्त्र, बीजामृत, जीवामृत, घन जीवामृत सहित दूसरे कृषि आदान बनाने में हो जाता है।
स्टोरी इनपुट: डॉ. चंदन गुप्ता, काजरी केवीके, पाली मारवाड़