नौकरी छोड़कर धर्मेन्द्र उपजा रहे है खीरा
(सभी तस्वीरें- हलधर)संरक्षित खेती से सालाना कमाई सात से आठ लाख
खेती से नाता था। लेकिन, किसानी कभी नहीं की। यह कहना है पिताजी का रिटायरमेंट प्लान करते हुए खुद किसान बने धर्मेन्द्र सिंह चौधरी का। उन्होने बताया कि दशक से ज्यादा समय तक भारत सरकार की एक परियोजना में बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम किया। मासिक सवा लाख रूपए से ज्यादा का वेतन मिलता था। जिंदगी आराम से गुजर रही थी। उन्होने बताया कि पिताजी के रिटायरमेंंट से पूर्व ही मैने पॉली हाउस के लिए उद्यानिकी विभाग में आवेदन कर दिया था। पॉली हाउस स्थापना के लिए राशि का निवेश हो चुका था। लेकिन, पिताजी को संरक्षित ख्ेाती समझ नहीं आइ। इस कारण नौकरी छोड़कर मै किसान बन गया। वर्तमान में 6500 से अधिक वर्ग मीटर क्षेत्र में संरक्षित खेती कर रहा हॅू। जिससे सालाना 7-8 लाख रूपए का शुद्ध मुनाफा हो रहा है। मोबाइल 96605-01004
निठारी, अलवर। ...वो ही लोग रहते है खामोश, अक्सर जमाने में जिनके हुनर बोलते हैं। ऐसे ही किसान है धर्मेन्द्र सिंह चौधरी। जो पहले सरकार से सवा लाख रूपए से ज्यादा मासिक वेतन पाते थे। लेकिन, अब खीरे का उत्पादन कर रहे है। इससे सालाना सात- आठ लाख रूपए की आमदनी मिल रही है। गौरतलब है कि धर्मेन्द्र उच्च शिक्षित युवा है। लेकिन, अब अपनी सोच को धरातल देने में दिन-रात एक कर रहे है। नौकरी पेशा से किसान बनने वाले धर्मेन्द्र ने हलधर टाइम्स को बताया कि परिवार के पास 4 बीघा कृषि भूमि है। पिताजी की पंचायत समिति में अच्छे ओहदे पर नौकरी होने के चलते खेती पर कभी ध्यान ही नहीं दिया। वर्ष 2022-23 तक यही हालात रहे। उन्होने बताया कि परिवार की आर्थिकी स्थिति सही होने के चलते मैं भी स्नातकोत्तर, एमएसडब्ल्यू और एमसीए करने के बाद भारत सरकार की एक परियोजना के तहत बतौर प्रोजेक्ट डायरेक्टर काम कर रहा था। करीब एक दशक से ज्यादा समय तक नौकरी की। इस दौरान मासिक रूप से सवा लाख रूपए से ज्यादा तनख्वा मिलती थी। उन्होने बताया कि नौकरी छोडऩे तक खेतों से सलाना 40 हजार रूपए की आमदनी मिलती थी।
ऐसे बने किसान
उन्होंने बताया कि पिताजी का रिटायरमेंट प्लान करते हुए मैने उद्यान विभाग में पॉली हाउस स्थापना के लिए आवेदन कर दिया। लेकिन, पिताजी को खेती का काम ज्यादा रास नहीं आया। उन्होने बताया कि पॉली हाउस में बड़ा निवेश हो चुका था। इस कारण पॉली हाउस को रामभरोसे छोडऩा मैने उचित नहीं समझा। नौकरी छोड़कर संरक्षित खेती का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद खीरे की खेती करना शुरू कर दिया।
अब 6500 वर्ग मीटर से संरक्षित खेती
उन्होने बताया कि पॉली हाउस में खीरे की पहली फसल से भाव कम होने पर भी साढे चार से पांच लाख रूपए की बचत देखने के बाद मैने उद्यान विभाग में दूसरे पॉली हाउस के लिए आवेदन कर दिया। इस तरह वर्तमान में 6500 से ज्यादा वर्ग मीटर क्षेत्र संरक्षित संरचना के दायरें में आ चुका है। इन दोनों पॉली हाउस से सालाना सात से आठ लाख रूपए की शुद्ध बचत मिल रही है।
बरसाती पानी खेती का आधार
उन्होंने बताया कि क्षेत्र में पानी की कमी को देखते हुए मैने शुरू से ही बरसाती पानी को खेती का आधार बनाया हुआ है। पॉली हाउस स्थापना के साथ ही एक फार्मपौंड खुदवा लिया था। अब ड्रिप सिंचाई के जरिए बरसाती का पानी का उपयोग सिंचाई में कर रहा हॅू। हालांकि, सिंचाई के लिए एक ट्यूबवैल मेरे पास है। लेकिन, पौंड में पानी रहने तक मैं ट्यूबवैल के पानी का उपयोग नहीं क रता हॅू। उन्होंने बताया कि आय बढौत्तरी के लिए पॉली हाउस के बाहर बेलदार सब्जी फसलों का उत्पादन भी शुरू किया है।