सवा बीघा से कमाएं साढे सात लाख
(सभी तस्वीरें- हलधर)जबकि, पहले खेती से सालभर में डेढ़ से दो लाख रूपए की आमदनी मिलती थी। किसान इंद्रा ने बताया कि परिवार के पास सात बीघा कृषि भूमि है। गिरते भू-जल स्तर के कारण परम्परागत फसलों का उत्पादन लेना मुश्किल होता जा रहा था। इस स्थिति को देखते हुए उद्यान विभाग की अनुदान योजनाओं का लाभ उठाते हुए पॉली हाउस लगाया। इसमें खीरा फसल का उत्पादन लिया। जिससे साढे सात लाख रूपए की शुद्ध आय मिली है। मोबाइल 72969-27834
बिराणी, जोधपुर। यह कहानी है रसातल समाते पानी के बीच हौसलेंमंद महिला किसान इंद्रा मेघवाल की। जिन्होंनें बरसाती पानी और भूजल की बूंद-बूंद को बचाकर अपनी आमदनी बढ़ाने में सफलता पाई है। गौरतलब है कि पहले इंद्रा को सालभर में डेढ़ से दो लाख रूपए की आमदनी मिलती थी। लेकिन, अब जमीन के छोटे से टुकड़े से साढे सात से आठ लाख रूपए की आमदनी ले रही है। स्नातक पास इंद्रा ने हाईटेक खेती को अपनाया और पहली ही फसल में यह कमाल कर दिखाया। किसान इंद्रा ने हलधर टाइम्स को बताया कि जमीन का रकबा कम होने के चलते परिवार की आर्थिक स्थिति शुरू से ही कमजोर रही। इसके अलावा जमीन रेतीली होना भी परिवार की समृद्धि नहीं बढ़ पाने का एक बड़ा कारण था। इन परिस्थितियों में जैसे-तैसे स्नातक की उपाधि ली। इसके बाद खेती के काम में हाथ बंटाने लग गई। उन्होंने बताया कि हाईटेक खेती से जुडऩे के लिए मेरे ससुर जयराम ने ही मुझे प्रोत्साहित किया। क्योंकिे, उन्होंने आस-पास क्षेत्र के किसानों को हाइटेक खेती से सम्पन्न होते देखा है। यही कारण रहा कि उन्होंने खेती में मेरी रूचि को पहचानते हुए मुझे इसके लिए तैयार किया। उन्होंने बताया कि 6 महीने पहले तक खेत में परम्परागत फसल का उत्पादन लिया करती थी। लेकिन, अब हाईटेक खेती से जुड़ चुकी हूॅ। इससे संरक्षित खेती किसानों के लिए कैसे फायदेमंद है, इस बात का पता मुझे चल चुका है। क्योंकि, कम जमीन के रकबे में लाखों में आमदनी होने से मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं है। गौरतलब है कि इंद्रा ने आमदनी का लक्ष्य भेदने के लिए खीरे की पहली ही फसल से खर्च निकालने के बाद साढे सात लाख रूपए की आमदनी प्राप्त की है। वह भी महज सवा बीघा क्षेत्र से। किसान इंद्रा की माने तो सवा बीघा क्षेत्र में परम्परागत फसलों के उत्पादन से 10-15 हजार रूपए की आमदनी मिलती थी। उन्होंने बताया कि सिंचाई के लिए मेरे पास ट्यूबवैल है। लेकिन, साल दर साल रसातल समाते पानी को देखते हुए पॉली हाउस के साथ एक डिग्गी का भी निर्माण करवाया है। साथ ही, ड्रिप सिंचाई को अपनाया है। इस तरह परिवार की आर्थिक तस्वीर बदलने की अब उम्मीद बंध चुकी है।
अपना चुके है संरक्षित खेती
उन्होंने बताया कि पॉली हाउस में यह खीरे की पहली फसल है। खीरे का उत्पादन आ रहा है। उन्होंने बताया कि अब तक 9 लाख रूपए की आमदनी हो चुकी है। लेकिन, फसल तैयार होने में करीब डेढ़ से दो लाख रूपए खर्च का अनुमान है। ऐसे में साढे सात लाख रूपए की शुद्ध बचत मिलने का अनुमान है। गौरतलब है कि किसान इंद्रा ने उद्यानिकी विभाग की सहायता से पॉली हाउस का निर्माण करवाया है।
इन फसलों का उत्पादन
उन्होंने बताया कि परम्परागत फसलों में बाजरा, मूंग, मोठ, जीरा, रायड़ा, सौंफ आदि फसलों का उत्पादन लेती हॅू। इस साल पानी की सुविधा हो जाने से ओपन फील्ड में सब्जी फसलों का भी श्रीगणेश किया है। सब्जी फसलों में मिर्च, गोभी और टमाटर की फसल लगाई हुई है। गौरतलब है कि इंद्रा के परिवार के पास महज सात बीघा कृषि भूमि है।
दुग्ध से भी आय
पशुधन में मेरे पास 4 भैंस और 2 गाय है। प्रतिदिन 18-20 लीटर दुग्ध का उत्पादन मिल रहा हैं। परिवार में सदस्य ज्यादा होने के कारण दुग्ध का विपणन नहीं करती हॅॅू। शेष रहने वाले दुग्ध से घी तैयार कर लेती हॅू। इससे पशुधन का खर्च निकल जाता है। वहीं, पशु अपशिष्ट से वर्मी कम्पोस्ट खाद तैयार करके उपयोग ले रही हॅू।
स्टोरी इनपुट: रफीक अहमद कुरैशी, डॉ. जीवनराम भाकर, उद्यान विभाग, जोधपुर