ट्रांसपोर्ट कारोबारी ने वर्मी खाद को बनाया कमाई का जरिया

नई दिल्ली 21-Aug-2024 11:54 AM

ट्रांसपोर्ट कारोबारी ने वर्मी खाद को बनाया कमाई का जरिया (सभी तस्वीरें- हलधर)

किसानों की मेहनत को प्रोत्साहन मिले तो आर्थिकी को रफ्तार पकडते ज्यादा समय नहीं लगता है। किसान अरूण शर्मा को ही देखिए। ट्रांसपोर्ट का कारोबार छोड़कर गोबर में समृद्धि की तलाश में जुटे हुए है। उनका कहना है कि वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से मासिक 12-15 हजार रूपए की आमदनी मिलने लगी है। आय के इस आंकडे को देखते हुए वर्मी इकाई को विस्तार की तैयारी में जुटा हुआ हूूं। इसके अलावा खेती और पशुपालन से अच्छी आमदनी मिल जाती है। मोबाइल 7725912311
 
सवाईपुर, भीलवाड़ा। आधुनिक कृषि तकनीक का जलवा एक आम किसान के खेतों में भले ही नजर नहीं आए। लेकिन, गोबर अपना कमाल दिखा रहा है। शहरी हो या फिर ग्रामीण युवा। गोबर उनके लिए आकर्षण का केन्द्र बनता जा रहा है।   गोबर से मासिक हजारो की आय लेने वाले ऐसे ही किसान है अरूण शर्मा। जिन्होंने ट्रांसपोर्ट का कारोबार छोड़कर खेती पर फोकस किया है। उनका कहना है कि एक मित्र की सलाह पर वर्मी खाद उत्पादन से जुड़ा। अब मासिक 12-15 हजार रूपए की आमदनी घर बैठे प्राप्त कर रहा हॅू। किसान अरूण ने हलधर टाइम्स को बताया कि परिवार के पास 6 बीघा कृषि भूमि है। जीएनएम करने के बाद एक हॉस्पिटल में नौकरी की। लेकिन, मिलने वाली तनख्वा से परिवार की जिम्मेदारियां भी पूरी नहीं हो पाती थी। इस स्थिति को देखकर ट्रांसपोर्ट का कारोबार शुरू किया। इस व्यवसाय में अच्छी आमदनी मिलने लगी। लेकिन, मेरे मित्रों ने जब आधुनिक खेती का ककहरा लिखना शुरू किया तो मुझसे भी रहा नहीं गया। ट्रांसपोर्ट कारोबार के साथ-साथ खेती को समय देना शुरू किया। इसी बीच चित्तौडग़ढ़ जाना हुआ। वहां पर वर्मी खाद उत्पादन देखने का मौका मिला। इसके बाद कृषि विज्ञान केन्द्र से वर्मी उत्पादन की जानकारी प्राप्त की। उन्होंने बताया कि वर्मी खाद उत्पादन का सिलसिला 5-6 इकाई से शुरू किया। वर्तमान में मेरे पास 40 वर्मी बेड है। इससे सालाना 8-10 टन वर्मी खाद का उत्पादन मिल रहा है। जिससे मासिक 12-15 हजार रूपए का शुद्ध लाभ प्राप्त हो रहा है। 
परम्परागत फसलों का उत्पादन
उन्होंने बताया कि परिवार के पास 6 बीघा कृषि भूमि है। जिसमें से 4 बीघा क्षेत्र में परम्परागत फसलों का उत्पादन लेता हॅू। शेष दो बीघा जमीन में पशुओं के लिए हरे चारे का उत्पादन लेता हॅू। उन्होने बताया कि परम्परागत फसलों में मूंगफली, मक्का, सरसों, चंवला, गेहंू आदि का उत्पादन लेता हॅू। खर्च निकालने के बाद इन फसलों से डेढ़ से दो लाख रूपए की आमदनी मिल जाती है। 
पशुपालन से भी आय
उन्होंने बताया कि पशुधन में मेरे पास 7 गाय है। प्रतिदिन 12-15 लीटर दुग्ध का उत्पादन हो रहा है। दुग्ध का विपणन 50 रूपए प्रति लीटर की दर से उपभोक्ताओं को कर रहा हूॅ। वहीं, पशु अपशिष्ट का उपयोग वर्मी खाद बनाने में हो जाता है। 
स्टोरी इनपुट: डॉ. केसी नागर, डॉ. सीएम यादव, केवीके, भीलवाड़ा


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